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*��साधना हेतु अमृतकाल : चतुर्मास��*

*��(चतुर्मास : 4 जुलाई से 1 नवम्बर)��*

*चतुर्मास में भगवान नारायण जल में शयन करते हैं, अतः जल में भगवान विष्णु के तेज का अंश व्याप्त रहता है । इसलिए प्रातः सूर्योदय से पूर्व उठकर भगवद्-चिंतन, नाम-सुमिरन करते हुए स्नान करना समस्त तीर्थों से भी अधिक फल देता है ।*

*जो मनुष्य जल में तिल और आँवले का मिश्रण अथवा बिल्वपत्र डालकर उस जल से स्नान करता है, उसमें दोष का लेशमात्र भी नहीं रह जाता ।*

*चतुर्मासस में बाल्टी में कुछ बिल्वपत्र डालकर ‘ॐ नमः शिवाय’ का 4-5 बार जप करके स्नान करें तो विशेष लाभ होता है । इससे वायुप्रकोप दूर होता है और स्वास्थ्य की रक्षा होती है लेकिन भगवत्प्रीत्यर्थ स्नान करें, यह भक्ति हो जायेगी ।*

*जो सम्पूर्ण चतुर्मास नमक का त्याग करता है, उसके सभी पूर्तकर्म (परोपकार एवं धर्म संबंधी कार्य) सफल होते हैं ।*

*इस मास में श्रद्धापूर्वक प्रिय वस्तु का त्याग करनेवाला अनंत फल का भागी होता है । प्रिय वस्तु का त्याग करने से आसक्ति से मुक्त होकर अनंत फल - अनंत सुख का भागी होता है । अनंत तो है परमात्मा !*

*सद्धर्म, सत्कथा, सत्पुरुषों की सेवा, संतों के दर्शन, भगवान विष्णु का पूजन आदि सत्कर्मों में संलग्न रहना और दान में अनुराग होना - ये सब बातें चतुर्मास में अत्यंत कल्याणकारी बतायी गयी हैं ।*

*चतुर्मास में दूध, दही, घी एवं मट्ठे का दान महाफल देनेवाला होता है । जो चतुर्मास में भगवान की प्रीति के लिए विद्या, गौ व भूमि का दान करता है, वह अपने पूर्वजों का उद्धार कर देता है ।*

*चतुर्मास के चार महीनों में भूमि पर शयन, ब्रह्मचर्य का पालन, उपवास, मौन, जप, ध्यान, दान-पुण्य आदि विशेष लाभप्रद होते हैं ।*

*चतुर्मास में ताँबे के पात्र में भोजन विशेषरूप से त्याज्य है । इन दिनों धातु के पात्रों का त्याग करके पलाश के पत्ते में भोजन करना पुण्यप्रदायक है. चतुर्मास में काला व नीला वस्त्र पहनना हानिकारक है ।*

*चतुर्मास में परनिंदा का विशेषरूप से त्याग करें । परनिंदा को सुननेवाला भी पापी होता है । परनिंदा महान पाप है, महान भय है, महान दुःख है ।*

*��परनिंदा से बढ़कर दूसरा कोई पातक नहीं है ।��*

*यदि धीर पुरुष चतुर्मास में नित्य परिमित अन्न का भोजन करता है तो वह सब पातकों का नाश करके वैकुंठ धाम को पाता है ।*

*चतुर्मास में केवल एक ही अन्न का भोजन करनेवाला मनुष्य रोगी नहीं होता । एक समय भोजन करनेवाला ‘द्वादशाह यज्ञ’ का फल पा लेता है ।*

*जो मनुष्य चतुर्मास में केवल दूध पीकर अथवा फल खाकर रहता है, उसके सहस्रों पाप तत्काल विलीन हो जाते हैं ।*

*चतुर्मास में भगवान विष्णु के सामने खड़े होकर ‘पुरुषसूक्त’ का पाठ करने से बुद्धिशक्ति बढ़ती है ।*

*चतुर्मास में शादी-विवाह और सकाम यज्ञ नहीं होते । ये चार मास तपस्या करने के हैं ।*

*जो मनुष्य जप, नियम, व्रत आदि के बिना ही चतुर्मास व्यतीत करता है वह मूर्ख है और जो इन साधनों द्वारा इस अमूल्य काल का लाभ उठाता है वह मानो अमृतकुंभ ही पा लेता है

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