नाराज़ पत्नी ने अपने पति से कहा – आप बाहर खाना खिलाने ही नहीं ले जाते ,आज रात का खाना बाहर करेगें..
सिन्धी भाई – ठीक है पास के होटल में चलते हैं
पत्नी – नहीं..किसी फाइव स्टार होटल में चलते हैं....
सिन्धी भाई – (एक मिनट के लिए मौन) ठीक है... शाम 7 बजे चलते हैं.
ठीक सात बजे पति-पत्नी अपनी कार में घर से निकले...
रास्ते में – सिन्धी भाई बोले जानती हो... एक बार मैंने अपनी बहन के साथ पानीपूरी प्रतिस्पर्धा की थी. मैंने 30 पानी पूरी खाई और उसे हरा दिया....
पत्नी– क्या यह इतना मुश्किल है.??
सिन्धी भाई – मुझे पानी-पूरी प्रतियोगिता में "हराना" बहुत "मुश्किल" है।
पत्नी – मैं आसानी से आपको हरा सकती हूँ।
सिन्धी भाई– रहने दो ये तुम्हारे बस का नहीं ….!!
पत्नी – हमसे प्रतियोगिता करने चलिये….
सिन्धी भाई – तो "आप" अपने-आप को हारा हुआ देखना चाहती हैं.!!?
पत्नी– चलिये देखते हैं…
वे दोनों एक पानी-पूरी स्टॉल (लारी-ठेले) पर रुके और खाना शुरू कर दिया ….
25 पानी पूरी के बाद सिन्धी भाई ने खाना छोड़ दिया.
पत्नी का भी पेट भर गया था, लेकिन उसने सिंधी भाई को हराने के लिए एक और खा लिया और चिल्लाई , “तुम हार गये।”
बिल 100 रुपये आया...
सिन्धी भाई - अब होटल चलें खाना खाने …
पत्नी- नहीं अब पेट में जगह नहीं बची...वापस घर चलो।
(पति-पत्नी घर लौट गये)
और पत्नी वापस घर आते हुए... शर्त जीतने की बात पर बेहद खुश थी....
कहानी से नैतिक शिक्षा....
एक अच्छे सिन्धी का मुख्य उद्देश्य "न्यूनतम खर्च" के साथ "शिकायतकर्ता" को संतुष्ट करना होता है….
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें