गुरुवार, 14 जुलाई 2016

बिटिया बड़ी हो गयी, एक रोज उसने बड़े सहज भाव में अपनेपिता से पूछा - "पापा, क्या मैंने आपको कभी रुलाया" ?पिता ने कहा -"हाँ "उसने बड़े आश्चर्य से पूछा - "कब" ?पिता ने बताया - 'उस समय तुम करीब एक साल कीथीं, घुटनों पर सरकती थीं। मैंने तुम्हारे सामने पैसे,पेन और खिलौना रख दिया क्योंकि मैं ये देखना चाहता था कि, तुम तीनों में सेकिसे उठाती हो तुम्हारा चुनाव मुझे बताता कि, बड़ी होकर तुमकिसे अधिक महत्व देतीं। जैसे पैसे मतलब संपत्ति, पेन मतलब बुद्धिऔर खिलौना मतलब आनंद।मैंने ये सब बहुत सहजता से लेकिन उत्सुकतावश किया था क्योंकि मुझे सिर्फ तुम्हाराचुनाव देखना था। तुम एक जगह स्थिर बैठीं टुकुर टुकुर उनतीनों वस्तुओं को देख रहीं थीं। मैं तुम्हारे सामने उनवस्तुओं की दूसरी ओर खामोश बैठा बस तुम्हें हीदेख रहा था।तुम घुटनों और हाथों के बल सरकती आगे बढ़ीं, मैंअपनी श्वांस रोके तुम्हें ही देख रहा था और क्षण भर मेंही तुमने तीनों वस्तुओं को आजू बाजू सरका दिया और उन्हेंपार करती हुई आकर सीधे मेरी गोद में बैठगयीं।मुझे ध्यान ही नहीं रहा कि, उन तीनों वस्तुओं केअलावा तुम्हारा एक चुनाव मैं भी तो हो सकता था। तभी तुम्हारातीन साल का भाई आया ओर पैसे उठाकर चला गया,वो पहलीऔर आखरी बार था बेटा जब, तुमने मुझे रुलाया.. और बहुत रुलाया।आखिर बेटी तो बेटी ही होती है भगवानकी दी हुई सबसे अनमोल धरोहर है बेटी--

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