बुधवार, 20 जुलाई 2016

पानी ने दूध से मित्रता की और उसमे समा गया..**जब दूध ने पानी का समर्पण देखा तो उसने कहा-**मित्र तुमने अपने स्वरुप का त्याग कर मेरे स्वरुप को धारण किया है....**अब मैं भी मित्रता निभाऊंगा और तुम्हे अपने मोल बिकवाऊंगा।**दूध बिकने के बाद**जब उसे उबाला जाता है तब पानी कहता है..**अब मेरी बारी है मै मित्रता निभाऊंगा**और तुमसे पहले मै चला जाऊँगा..**दूध से पहले पानी उड़ता जाता है**जब दूध मित्र को अलग होते देखता है**तो उफन कर गिरता है और आग को बुझाने लगता है,**जब पानी की बूंदे उस पर छींट कर उसे अपने मित्र से मिलाया जाता है तब वह फिर शांत हो जाता है।**पर**इस अगाध प्रेम में..**थोड़ी सी खटास-**(निम्बू की दो चार बूँद)**डाल दी जाए तो**दूध और पानी अलग हो जाते हैं..**थोड़ी सी मन की खटास अटूट प्रेम को भी मिटा सकती है।**रिश्ते में..**खटास मत आने दो॥**"क्या फर्क पड़ता है,**हमारे पास कितने लाख,**कितने करोड़,**कितने घर,**कितनी गाड़ियां हैं,**खाना तो बस दो ही रोटी है।**जीना तो बस एक ही ज़िन्दगी है।**फर्क इस बात से पड़ता है,**कितने पल हमने ख़ुशी से बिताये,**कितने लोग हमारी वजह से खुशी से जिए।*

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