रविवार, 9 अप्रैल 2017

Dr. Jhola chap

झोलाछाप : दर्द या दवा - आजादी के इतने वर्षों बाद भी गाँवो में स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली के लिये इन झोलाछापों को नहीं बल्कि सरकार को हाइकोर्ट द्वारा कटघरे में खड़ा करना चाहिये, जो खुद के गुनाहों का ठीकरा इन झोलाछाप डा. के सर फोड़ने के लिये बढ़ चढ़ के छापे मार रहे हैं। जब 2 बजे रात को दूर गांव में या शहर की गरीब बस्ती में  बूढी माँ या दुधपीता बच्चा तेज बुखार से तप रहा होता है। तो यही झोलाछाप डॉक्टर साहब एक फोन या घर खटखटाने पर देवदूत की तरह प्रकट होते हैं। कोई भी सरकारी डॉ इस आपात समय में फोन उठाना तो दूर क्लिनिक का दरवाजा भी नहीं खोलते।तो इन्हीं झोँलाछाप के पास जाते है उतने ही समय ईलाज करवा कर हम कष्ट मुक्त होते आये है।गँभीर चिँतन का विषय यह है कि
  इनकी उत्पत्ति का जिम्मेदार कौन है? क्या ग्रामीण क्षेत्रों और गरीब शहरी बस्तियों में छोटी मोटी बिमारियों हेतु आपात कालीन स्थितियों में शासन के पास कोई सटीक, सुव्यवस्थित तंत्र उपलब्ध है? यदि हाँ तो जनता क्यों इन झोलाछाप चिकित्सको के पास अपना ईलाज कराने जाती है?जाहीर सी बात हर परीस्थिती इनकी समर्पित भाव।जो हमेँ सरकार द्वारा नहीँ मीलती। इस स्थिति का वास्तविक जिम्मेदार कौन है? पहले सुविधा देना सुनिश्चित करो फिर सुविधा छिनने का कदम उठाओ तो न्यायोचित होगा। व्यवश्थापन पहले फीर इनपर कारवाही हो .अगर आप हर गाँव मेँ एक एक MBBS. डा. नहीँ भेज देते जब तक ये झोलाछाप डा. सेवा देते रहेँगे.गाँव हमारा कष्ट हमारा जिसे निवारन करने की जिम्
मेदारी सरकार की है।जो नही होपारहा है।तो विवष होकर हमे ईन झोलाछाप डा. की मदद लेनी पडती है।जिसे ये बखूबी निभाते आ रहे है।जिनपर हमे विश्वास  है।क्यो ना ईन्हे ही प्रशि
क्षण दे कर हमारे सेवा के लिये नियुक्ति का कोइ ठोस कदम उठाये ताकी उनके इतने सालों सेवा का कोई सटीक उपहार इन्हे मिले जो इनका हक  है।

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