शुक्रवार, 18 नवंबर 2016


1 टिप्पणी:

  1. हज़ार-पाँच सौ के दोहे:

    'छुट्टे' कहें 'हज़ार' से, काहे अकड़ दिखाय ।
    क्या जाने कब फेंकना, रद्दी में . पड़ जाय ।।

    घरवाला क्या जान सके, घरवाली की पीर ।
    रात रायता हो गई, दिन-दिन जोड़ी खीर ।।

    रातों-रात बदल गयी, बस्ती की तस्वीर ।
    साहब ठन-ठन हो गए, धनपति हुए फ़क़ीर ।।

    सौ, हज़ार दोऊ पड़े, काको लियूँ उठाय ।
    क़ीमत सौ के नोट की, मोदी दियो बताय ।।

    लंबी लाइन में खड़े, कितनों के अरमान ।
    सकल बैंक तीरथ हुए, एटीएम भगवान ।।

    काले धन को रोकने, सभी लगाएँ ज़ोर ।
    डाल-डाल कानून है, पात-पात पर चोर ।।

    लाख टके के प्रश्न पर, हर कोई है मौन ।
    दो हज़ार के नोट की, रिश्वत रोके कौन ?

    थैलसीमिया-सा करे, काला धन व्यवहार ।
    'ख़ून' बदलना है फ़क़त, अस्थायी उपचार ।।

    मोदी जी सुन लीजिये,हम सब की अरदास ।
    जल्दी नोट छपाइये, बचा न कुछ भी पास ।।

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