बुधवार, 16 नवंबर 2016

लाइफ में इतनी शांति और स्थिरता कभी महसूस नहीं हुई जितनी आजकल रही है हो।

 न कुछ खरीदने की इच्छा न कहीं जाने की इच्छा।
जेब में कुछ नहीं है फिर भी कोई टेंशन नहीं है

पहली बार कोई हंस के कह रहा कि कि मेरी जेब में एक भी पैसा नहीं है।
वरना लाचारी साफ झलकती थी।

जिनके घरों में शादी है बैचेनी उन्हें भी नहीं हो रही है। क्योंकि पता है कि इन्सर्ट करने वाला कोई नहीं है, जैसी स्थिति मेरी है वैसी स्थिति सबकी है।
एकाएक अल्पकालिक ही सही सामाजिक एकता महसूस हो रही है यानि पूँजीपति वर्ग और मध्यम / निम्न / श्रमिक वर्ग के बीच की खाई पटी हुई लग रही है।
लोग एक दूसरे की मदद भी कर रहे हैं।

एक ढाबे वाले ने बाकायदा बोर्ड पर लिखा है कि खाना खाइये और जब कभी इस रास्ते से गुजरो तो पैसा दे देना।
एक कहावत है कि "अकाल तो कट जायेगा पर बात रह जायेगी" ढाबे वाले की बात भी दूर तक जायेगी।

आपराध की कोई खबर नहीं है। यद्यपि हो रहे होंगे लेकिन मात्रा में कमी है

बाजार में एक शराबी नहीं दिख रहा है।

यहाँ तक की कश्मीर में चार महीने से जो पथराव चल रहा था वो थम सा गया है।

 हॉस्पिटल से कुछ कुछ खबरे अछि नही आ रही की पैंसे न देने पर इलाज नहीं किया गया ये दुःखदाई है।
बैको के आगे कतारें लंबी है लेकिन उनमे उग्रता नहीं है वे खुद को तस्सली देते नजर आ रहे है
 कुछ लोगों को उज्ज्वल भविष्य दिख रहा तो

कुछ को इस बात की अपार ख़ुशी है कि पैंसे वालो की ऐसी- तैसी हो गई।
एक बात समझ में आ रही है कि पैंसों से हम दिखावटी जीवन जीते हैं असली जीवन आजकल जी रहे हैं जिसमे इंसान और इंसानियत है।
"सामान शील: व्यसनेसुसख्यम" अर्थात समान गुण धर्म व्यसन और परिस्थिति वालो में मित्रता हो जाती है।
सब एक समस्या से जूझ रहे हैं इस लिए न कोई छोटा न कोई बड़ा।

अर्थात एक 'अल्पकालिक ही सही' समाजवाद 'के दर्शन हुए हैं .......

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