рд╢ुрдХ्рд░рд╡ाрд░, 5 рдордИ 2017

👉 *सद्गुरु को बना ले अपना नाविक*

🔵 *एक था यात्री, दूर देश की यात्रा पर निकला था वह। अभी कुछ दूर ही चला था कि एक नदी आ गयी, किनारे पर नाव लगी थी।* उसने सोचा-यह नदी भला मेरा क्या बिगाड़ लेगी? *पाल उसने बाँधा नहीं, डाँड उसने खोले नहीं, न जाने कैसी जल्दी थी उसे? मल्लाह को उसने पुकारा नहीं। बादल गरज रहे थे। घना अँधेरा आस-पास के वातावरण को भयावह बना रहा था।* तेज कड़क के साथ जब बिजली चमकती है, तो नदी का पानी भी दहशत से थर्रा जाता। फिर भी वह माना नहीं, *नाव को लंगर से खोल दिया और स्वयं भी उसमें सवार हो गया। किनारा जैसे-तैसे निकल गया, पर नाव जैसे ही मझधार में आयी, वैसे ही उसे भँवरों और उत्ताल तरंगों ने आ घेरा।* लहरों के थपेड़े मजबूत नाव को चकनाचूर करने लगे। उत्ताल तरंगें बार-बार नाव को ऊपर तक उछाल देतीं और जब नाव लहरों के साथ नीचे गिरती, तो भँवरों का चक्रव्यूह उसे मझधार में डुबो देने में जुट जाता। *यात्री विकल और बेबस था। मल्लाह के अभाव में वह असहाय था। आखिरकार नाव ऊपर तक उछली और यात्री समेत जल में समा गयी।*

🔴 *एक दूसरा यात्री आया। कुछ दूर चलने के बाद उसे भी नदी मिली। नदी किनारे लगी नाव टूटी-फूटी थी,डाँड कमजोर थे, पाल फटा हुआ था, तो भी उसने युक्ति से काम लिया। नाविक को बुलाया और बड़ी विनम्रतापूर्वक उससे कहा-मुझे उस पार तक पहुँचा दो। नाविक यात्री को लेकर चल पड़ा।* किनारा छोड़ते ही वातावरण भयानक हो उठा। आसमान के सूरज को बादलों ने ढँक लिया। भयानक गरज के साथ मूसलाधार बारिश होने लगी। *रह-रहकर जब बिजली कड़कती, तो यात्री का हृदय सूखे पत्ते की तरह काँप उठता। नाविक हर बार व्याकुल और भयभीत यात्री के मन को सान्त्वना देता।* वह हर बार नाव को बचा लेता और यात्री के मनोबल को टूटने न देता। *लहरों ने संघर्ष किया, तूफान टकराए, हवा ने पूरी ताकत लगाकर नाव को भटकाने का प्रयत्न किया, पर नाविक एक-एक को सँभालता हुआ यात्री को सकुशल दूसरे पार तक ले आया।*

🔵 *मनुष्य जीवन भी एक यात्रा है जिसमें पग-पग पर कठिनाइयों के महासागर पार करने पड़ते हैं। इन्द्रियों की लालसाएँ-मन में पनपते भ्रमों की बहुतायत जीवन को पल-पल पर भटकाने की कोशिश करते हैं, फिर संसार में भयावह संकटों, विघ्नों, परेशानियों की कमी कहाँ है? संसार का हर थपेड़ा जीवन-नौका को नेस्तनाबूद कर देने के लिए प्रयत्नशील रहता है। यहाँ के चित्र-विचित्र आकर्षणों का हर भँवर समूचे जीवन को डुबो देने के लिए आतुर-व्याकुल रहता है। जो जीवन-यात्रा की शुरुआत से ही सद्गुरु को अपना नाविक बना लेते हैं, उनके हाथों में अपने को सौंप देते हैं, गुरु स्वयं उनकी यात्रा को सरल बना देते हैं, क्योंकि जीवनपथ की सभी कठिनाइयों के वही ज्ञाता और हम सबके वही सच्चे सहचर हैं। अपने अहंकार और अज्ञान में डूबे मनुष्यों की स्थिति तो उस पहले यात्री जैसी है, जो नाव चलाना न जानने पर भी उसे तूफानों में छोड़ देता है और बीच में ही नष्ट हो जाता है।*

рдХोрдИ рдЯिрдк्рдкрдгी рдирд╣ीं:

рдПрдХ рдЯिрдк्рдкрдгी рднेрдЬें