शनिवार, 29 अक्तूबर 2016

राष्ट्रहित का गला घोंटकर,
              छेद न करना थाली में...
*मिट्टी वाले दीये जलाना...*
           *अबकी बार दीवाली में...*
देश के धन को देश में रखना,
              नहीं बहाना नाली में..
*मिट्टी वाले दीये जलाना...*
          *अबकी बार दीवाली में...*

बने जो अपनी मिट्टी से,
            वो दिये बिकें बाज़ारों में...
छुपी है वैज्ञानिकता अपने,
               सभी तीज़-त्यौहारों में...
चायनिज़ झालर से आकर्षित,
                 कीट-पतंगे आते हैं...
जबकि दीये में जलकर,
           बरसाती कीड़े मर जाते हैं..
कार्तिक दीप-दान से बदले,
                पितृ-दोष खुशहाली में..

*मिट्टी वाले दीये जलाना...*
           *अबकी बार दीवाली में...*
*मिट्टी वाले दीये जलाना...*
           *अबकी बार दीवाली में...*

कार्तिक की अमावस वाली,
               रात न अबकी काली हो..
दीये बनाने वालों की भी,
              खुशियों भरी दीवाली हो..
अपने देश का पैसा जाये,
          अपने भाई की झोली में..
गया जो दुश्मन देश में पैसा,
           लगेगा रायफ़ल गोली में..
देश की सीमा रहे सुरक्षित,
             चुक न हो रखवाली में..

*मिट्टी वाले दीये जलाना..*
           *अबकी बार दीवाली में...*
*मिट्टी वाले दीये जलाना..*
           *अबकी बार दीवाली में...*

1 टिप्पणी:

  1. मध्य प्रदेश में जबलपुर शहर से १० कि मी की दुरी पर "मुकनवारा" नाम का एक गांव है वहां पर एक "सुख सागर हॉस्पिटल" है जहां पर हर तरह की बीमारी का निःशुल्क ईलाज व आपरेशन किया जा रहा है चाहे इलाज एक रूपये से दस लाख रूपये तक का ही क्यों ना हो पुर्ण रूप से निःशुल्क है,वहां मरीज़ के साथ मरीज़ की देखभाल करने वालो को रहने व खाने पीने कि व्यवस्था भी निःशुल्क है।

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    सभी को जानकारी देना ......
    ये भी एक बहुत बड़ा धर्म का कार्य है।कृपया इस धर्म के कार्य को करके पुण्य कमाये

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