Lekh Rachnaye
शनिवार, 24 दिसंबर 2016
*कमियाँ तो मुझमें भी बहुत है,*
*पर मैं बेईमान नहीं।*
*मैं सबको अपना मानता हूँ,*
*सोचता हूँ फायदा या नुकसान नहीं।*
*एक शौक है शान से जीने का,*
*कोई और मुझमें गुमान नहीं।*
*छोड़ दूँ बुरे वक़्त में अपनों का साथ,*
*वैसा तो मैं इंसान नहीं।*
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