जब दिन भर की थकी हारीपड़ती हूँ बिस्तर पर तब थकावट नहींएक संतुष्टि का भावउमड़ता हैकि चलो आज का दिनबीत गया हँसते मुस्कुराते अपनों का जीवन सरल सुगम बनाते बनातेपैरों की खींचती हुई सी नसेंकमर की अकड़नयाद दिलाती हैं किकैसे चंचल हिरणी की तरह दौड़ भाग कर सबकी जरूरतें पूरी कीएक संतुष्टि एक खुशी अपनों के लिएरात बिस्तर पर पडे-पडे भीकल का मैन्यु तय करती हूँ आहा मैं भी ना कमाल हूँ मुझसे ही तो मकान, घर है ना …… हे ईश्वर ! तुझे लाखों प्रणाम कि तूने मुझे स्त्री बनाया ये संतुष्टि बिन स्त्री बने शायद ना मिल पाती…………मैं खुश हूँ मैं स्त्री हूँ ..नाज है मुझे मेरे स्त्रीत्व पर ……
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