जो चाहा कभी पाया नहीं,
जो पाया कभी सोचा नहीं,
जो सोचा कभी िमला नहीं,
जो िमला रास आया नहीं,
जो खोया वो याद आता है,
पर जो पाया संभाला जाता नहीं ,
क्यों अजीब सी पहेली है िज़न्दगी,
िजसको कोई सुलझा पाता नहीं...
जीवन में कभी समझौता करना पड़े तो कोई बड़ी बात नहीं है,
क्योंिक,
झुकता वही है िजसमें जान होती है,
अकड़ तो मुरदे की पहचान होती है।
िज़न्दगी जीने के दो तरीके होते है!
पहला: जो पसंद है उसे हािसल करना सीख लो.!
दूसरा: जो हािसल है उसे पसंद करना सीख लो.!
िजंदगी जीना आसान नहीं होता;
िबना संघषर् कोई महान नहीं होता.!
िजंदगी बहुत कुछ िसखाती है;
कभी हंसती है तो कभी रुलाती है;
पर जो हर हाल में खुश रहते हैं;
िजंदगी उनके आगे सर झुकाती है।
चेहरे की हंसी से हर गम चुराओ;
बहुत कुछ बोलो पर कुछ ना छुपाओ;
खुद ना रूठो कभी पर सबको मनाओ;
राज़ है ये िजंदगी का बस जीते चले जाओ।
"गुजरी हुई िजंदगी कभी याद न कर,
तकदीर मे जो िलखा है उसकी फयार्द न कर...
जो होगा वो होकर रहेगा,
तु कल की िफकर मे अपनी आज की हसी बबार्द न कर...
हंस मरते हुये भी गाता है और मोर नाचते हुये भी रोता है....
ये िजंदगी का फंडा है बॉस
दुखो वाली रात िनंद नही आती
और खुशी वाली रात कौन सोता है...
������������������ ईश्वर का िदया कभी अल्प नहीं होता;
जो टूट जाये वो संकल्प नहीं होता;
हार को लक्ष्य से दूर ही रखना;
क्योंिक जीत का कोई िवकल्प नहीं होता।
������������������ िजंदगी में दो चीज़ें हमेशा टूटने के िलए ही होती हैं :
"सांस और साथ"
सांस टूटने से तो इंसान 1 ही बार मरता है;
पर िकसी का साथ टूटने से इंसान पल-पल मरता है।
������������������ जीवन का सबसे बड़ा अपराध -
िकसी की आँख में आंसू आपकी वजह से होना।
और जीवन की सबसे बड़ी उपलिब्ध -
िकसी की आँख में आंसू आपके िलए होना।
������������������ िजंदगी जीना आसान नहीं होता;
िबना संघषर् कोई महान नहीं होता;
जब तक न पड़े हथोड़े की चोट;
पत्थर भी भगवान नहीं होता।
������������������ जरुरत के मुतािबक िजंदगी िजओ ख्वािहशों के मुतािबक नहीं।,
क्योंिक जरुरत तो फकीरों की भी पूरी हो जाती है;
और ख्वािहशें बादशाहों की भी अधूरी रह जाती है।
������������������
मनुष्य सुबह से शाम तक काम करके उतना नहीं थकता;
िजतना कर्ोध और िचंता से एक क्षण में थक जाता है।
������������������ दुिनया में कोई भी चीज़ अपने आपके िलए नहीं बनी है।
जैसे: दिरया खुद अपना पानी नहीं पीता।
पेड़ -खुद अपना फल नहीं खाते।
सूरज -अपने िलए हररात नहीं देता।
फूल -अपनी खुशबु अपने िलए नहीं िबखेरते।
मालूम है क्यों?
क्योंिक दूसरों के िलए ही जीना ही असली िजंदगी है।
������������������ मांगो तो अपने रब से मांगो;
जो दे तो रहमत और न दे तो िकस्मत;
लेिकन दुिनया से हरिगज़ मत माँगना;
क्योंिक दे तो एहसान और न दे तो शिमर्ंदगी।
������������������ कभी भी 'कामयाबी' को िदमाग
और 'नकामी' को िदल में जगह नहीं देनी चािहए।
क्योंिक,
कामयाबी िदमाग में घमंड और नकामी िदल में मायूसी पैदा करती है।
������������������ कौन देता है उमर् भर का सहारा।,
लोग तो जनाज़े में भी कंधे बदलते रहते हैं।
������������������ कोई व्यिक्त िकतना ही महान क्यों न हो,
आंखे मूंदकर उसके पीछे न चिलए।
यिद ईश्वर की ऐसी ही मंशा होती तो वह हर पर्ाणी को आंख, नाक, कान, मुंह, मिस्तष्क आिद क्यों देता?
Nice Lines ������������������������������������������ पानी से तस्वीर कहा बनती है,
ख्वाबों से तकदीर कहा बनती है,
िकसी भी िरश्ते को सच्चे िदल से िनभाओ,
ये िजंदगी िफर वापस कहा िमलती है,
कौन िकस से चाहकर दूर होता है,
हर कोई अपने हालातों से मजबूर होता है,
हम तो बस इतना जानते है,
हर िरश्ता "मोती" और हर दोस्त "कोिहनूर" ������ होता है।
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