*मृत्यु भोज अभिशाप*
जिस आँगन में पुत्र शोक से
बिलख रही माता,
वहाँ पहुच कर स्वाद जीव का
तुमको कैसे भाता।
पति के चिर वियोग में व्याकुल
युवती विधवा रोती,
बड़े चाव से पंगत खाते तुम्हें
पीर नहीं होती।
मरने वालों के प्रति अपना
सद व्यहार निभाओ,
धर्म यही कहता है बंधुओ
मृतक भोज मत खाओ।
चला गया संसार छोड़ कर
जिसका पालन हारा,
पड़ा चेतना हीन जहाँ पर
वज्रपात दे मारा ।
खुद भूखे रह कर भी परिजन
तेरहबी खिलाते,
अंधी परम्परा के पीछे जीते जी
मर जाते।
*इस कुरीति के उन्मूलन का*
*साहस कर दिखलाओ,*
*धर्म यही कहता है बंधुओ,*
*मृतक भोज मत खाओ।*
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