रविवार, 17 अक्तूबर 2021

विधि का विधान



*विधि का विधान*

*श्री राम का विवाह और राज्याभिषेक, दोनों शुभ मुहूर्त देख कर किए गए थे; फिर भी न वैवाहिक जीवन सफल हुआ, न ही राज्याभिषेक!* 

*और जब मुनि वशिष्ठ से इसका उत्तर मांगा गया, तो उन्होंने साफ कह दिया* 

*"सुनहु भरत भावी प्रबल,*
*बिलखि कहेहूं मुनिनाथ।*
*हानि लाभ, जीवन मरण,*
*यश अपयश विधि हाथ।।"*

*अर्थात - जो विधि ने निर्धारित किया है, वही होकर रहेगा!*

*न राम के जीवन को बदला जा सका, न कृष्ण के!*

*न ही महादेव शिव जी सती की मृत्यु को टाल सके, जबकि महामृत्युंजय मंत्र उन्हीं का आवाहन करता है!*

*न गुरु अर्जुन देव जी, और न ही गुरु तेग बहादुर साहब जी, और दश्मेश पिता गुरु गोविन्द सिंह जी, अपने साथ होने वाले विधि के विधान को टाल ना सके, जबकि आप सब समर्थ थे!*

*रामकृष्ण परमहंस भी अपने कैंसर को न टाल सके!*

*न रावण अपने जीवन को बदल पाया, न ही कंस, जबकि दोनों के पास समस्त शक्तियाँ थी!*

*मानव अपने जन्म के साथ ही जीवन, मरण, यश, अपयश, लाभ, हानि, स्वास्थ्य, बीमारी, देह, रंग, परिवार, समाज, देश-स्थान सब पहले से ही निर्धारित करके आता है!*

*इसलिए सरल रहें, सहज, मन, वचन और कर्म से सद्कर्म में लीन रहें!*

*मुहूर्त न जन्म लेने का है, न मृत्यु का, फिर शेष अर्थहीन है!*

*सदैव प्रभुमय रहें, आनन्दित रहें!*

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