मंगलवार, 26 अक्तूबर 2021

कुछ फर्क नहीं पडता कि तुम हथेली पे सिर्फ चन्दा उकेरो
या कि हाथ भर मेंहदी लगाओ

कुछ फर्क नहीं पडता कि तुम नये कपडे पहनो
या फिर पुरानी साडी में ही खुद को सजाओ

कुछ फर्क नहीं पडता कि तुम कोहनी भर चूड़ी पहनो
या कि कलाई में अकेला कडा झुलाओ 

कुछ फर्क नहीं पडता कि तुम सुबह से शाम तक भूखी रहो
या फिर पूरा दिन थोडा थोडा खाओ

कुछ फर्क नहीं पडता कि तुम सज धज के इठलाओ
या कि सादगी से अपना दिन मनाओ

कुछ फर्क नहीं पडता कि इस दिन तुम पति के पैर छुओ
या बराबरी में खडे रहकर 'करवे' को निभाओ

सखियाँ मेरी,

फर्क तब पडता है जब तुम चेहरे पे मुस्कान की जगह उदासी ले आओ
फर्क तब पडता है जब तुम ठहाकों की जगह होठों पे चुप्पी ले आओ
फर्क तब पडता है जब तुम वक्त बेवक्त, बेवजह तुनक जाओ
फर्क तब पडता है जब तुम बोझिल यादें बार बार सामने लाओ
फर्क तब पडता है जब तुम अपने रिश्ते से बेईमानी कर जाओ !

कि तुम्हारे व्रत नियम तुम्हारे साथी की उमर लम्बी नहीं करते
तुम्हारी चीख चिल्लाहट,तुम्हारे हर वक्त के ताने उसकी जान निकालते हैं! 

कि सुकून के लिये उसे तुम्हारे कर्मकांड या श्रृंगार की नहीं 
तुम्हारे प्रेम तुम्हारे विश्वास तुम्हारी ईमानदारी की जरूरत है!

और उसकी खुशी के लिए तुम इतना तो कर ही सकती हो न......!!

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