मंगलवार, 19 अक्तूबर 2021

गया से आठ गुना फलदायी ब्रह्मकपाल है,शिवजी को भी यहीं मिली थी , पाप से मुक्ति

अंतिम मुक्तिदाता है ब्रह्मकपाल
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गया से आठ गुना फलदायी ब्रह्मकपाल है,शिवजी को भी यहीं मिली थी , पाप से मुक्ति 

बद्रीनाथ धाम के तट पर बहती अलखनंदा में ब्रह्मकपाल के बाद मृत आत्माओं को मोक्ष मिल जाता है । इसके बाद कहीं भी कोई पितरों के लिए पिंडदान कराने की आवश्यकता नहीं होती है। सिर्फ श्राद्ध पक्ष में उनकी मृत्यु की तिथि पर किसी ब्राह्मण को भोजन कराना  होता है। पिंडदान के लिए भारतवर्ष क्या दुनियाँ भर से हिंदू भले ही प्रसिद्ध गया पहुँचते हों लेकिन  एक तीर्थ ऐसा भी है जहाँ पर किया पिंडदान गया से भी आठ गुणा फलदायी है। 

यही नहीं इसी तीर्थ स्थल पर भगवा‌न शिव को भी ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति मिली थी। चारों धामों में प्रमुख उत्तराखंड के बदरीनाथ के पास स्थित ब्रह्मकपाल के बारे में मान्यता है कि यहाँ पर पिंडदान करने से पितरों की आत्मा को नरकलोक से मुक्ति मिल जाती है। 

गया से अधिक महत्व है ब्रह्म कपाल का
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स्कंद पुराण में ब्रह्मकपाल को गया से आठ गुणा अधिक फलदायी पितरकारक तीर्थ कहा गया है। 

सृष्टि की उत्पत्ति के समय जब तीन देवों में एक ब्रह्मा, माँ सरस्वती के रुप पर मोहित हो गए तो भोलेनाथ ने गुस्से में आकर ब्रह्मा के पांच सिरों में से एक को त्रिशूल के काट दिया। लेकिन ब्रह्या का सिर त्रिशूल पर ही चिपक गया। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि शिव पर ब्रह्म हत्या का पाप लग गया था। ब्रह्मा की हत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए जब भोलेनाथ पृथ्वी लोक के भ्रमण पर गए तो बदरीनाथ से पांच सौ मीटर की दूरी पर त्रिशूल से ब्रह्मा का सिर जमीन पर गिर गया तभी से यह स्थान ब्रह्मकपाल के रुप में प्रसिद्ध हुआ। शिव जी ने इस स्थान को वरदान दिया कि यहाँ पर जो व्यक्ति श्राद्ध करेगा उसे प्रेत योनी में नहीं जाना पड़ेगा एवं उनके कई पीढ़ियों के पितरों को मुक्ति मिल जाएगी।

भगवान श्री कृष्ण ने महाभारत युद्घ समाप्त होने के बाद पाण्डवों को ब्रह्मकपाल में आकर पितरों का श्राद्घ करने का निर्देश दिया था। इसका कारण यह था कि महाभारत युद्घ में लाखों की संख्या में लोगों की मृत्यु हुई थी। कई लोगों का विधि पूर्वक अंतिम संस्कार भी नहीं हो पाया था। ऐसे में अतृप्त आत्माओं को संतुष्ट करना आवश्यक हो गया था। इसलिए भगवान श्री कृष्ण की आज्ञा मानकर पाण्डव बद्रीनाथ की शरण में आए और ब्रह्मकपाल में पितरों एवं युद्घ में मारे गए व्यक्तियों के लिए श्राद्घ किया। 

कहाँ है ब्रह्म कपाल
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पुराणों में बताया गया है कि उत्तराखंड की धरती पर भगवान बद्रीनाथ के चरणों में बसा है ब्रह्म कपाल। अलकनंदा नदी ब्रह्मकपाल को पवित्र करती हुई यहाँ से प्रवाहित होती है। इस स्थान के विषय में मान्यता है कि इस स्थान पर जिस व्यक्ति का श्राद्ध कर्म होता है उसे प्रेत योनी से तत्काल मुक्ति मिल जाती है और भगवान विष्णु के परमधाम में उसे स्थान प्राप्त हो जाता है। जिस व्यक्ति की अकाल मृत्यु होती है उसकी आत्मा व्याकुल होकर भटकती रहती है। ब्रह्म कपाल में अकाल मृत्यु प्राप्त व्यक्ति का श्राद्ध करने से आत्मा को तत्काल शांति और प्रेत योनी से मुक्ति मिल जाती है।

पितरों की मुक्ति हेतु किए जाने वाले कर्म तर्पण, भोज और पिंडदान को उचित रीति से नदी के किनारे किया जाता है। इसके लिए देश में कुछ खास स्थान नियुक्त हैं। देश में श्राद्ध पक्ष के लिए लगभग 55 स्थानों को महत्वपूर्ण माना गया है।

परंतु तर्पण पिंडदान हेतु उज्जैन (मध्यप्रदेश), लोहानगर (राजस्थान), प्रयाग (उत्तर प्रदेश), हरिद्वार (उत्तराखंड), पिण्डारक (गुजरात), नासिक (महाराष्ट्र), गया (बिहार), ब्रह्मकपाल (उत्तराखंड), मेघंकर (महाराष्ट्र), लक्ष्मण बाण (कर्नाटक), पुष्कर (राजस्थान), काशी (उत्तर प्रदेश) को प्रमुख माना जाता है। 

सार-संग्रह
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कहते हैं कि गया में श्राद्ध करने के उपरांत अंतिम श्राद्ध उत्तरखंड के बदरीकाश्रम क्षेत्र के 'ब्रह्मकपाली' में किया जाता है। गया के बाद सबसे महत्वपूर्ण स्थान है।
कहते हैं जिन पितरों को गया में मुक्ति नहीं मिलती या अन्य किसी और स्थान पर मुक्ति नहीं मिलती उनका यहां पर श्राद्ध करने से मुक्ति मिल जाती है। यह स्थान बद्रीनाथ धाम के पास अलकनंदा नदी के तट पर स्थित है।

पांडवों ने भी अपने परिजनों की आत्म शांति के लिए यहां पर पिंडदान किया था। श्रीमद् भागवत महापुराण अनुसार युद्ध अपने बंधु-बांधवों की हत्या करने पर पांडवों को गोत्र हत्या का पाप लगा था। गोत्र हत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए स्वर्गारोहिणी यात्रा पर जाते हुए पांडवों ने ब्रह्मकपाल में ही अपने पितरों को तर्पण किया था।

पुराणों के अनुसार यह स्थान महान तपस्वियों और पवित्र आत्माओं का है। श्रीमद्भागवत पुराण अनुसार यहां सूक्ष्म रूप में महान आत्माएं निवासरत हैं।
ब्रह्म कपाली में किया जाने वाला पिंडदान आखिरी माना जाता है। इसके बाद उक्त पूर्वज के निमित्त‍ किसी भी तरह का पिंडदान या श्राद्ध कर्म नहीं किया जाता है।
ऐसा माना जाता है कि भगवान ब्रह्मा, ब्रह्मा कपाल के रूप में निवास करते हैं। किसी काल में ब्रह्मा के पांच सिर थे उसमें से एक सिर कटकर यहीं गिरा था। अलकनंदा नदी के तट पर ब्रह्माजी के सिर के आकार की शिला आज भी विद्यमान है।

हर वर्ष पितृपक्ष में भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से लेकर आश्विन कृष्ण अमावस्या तक पितृपक्ष के दौरान यहां भीड़ रहती है।

ब्रह्मकपाल को पितरों की मोक्ष प्राप्ति का सर्वोच्च तीर्थ (महातीर्थ) कहा गया है। पुराणों में उल्लेख है कि ब्रह्मकपाल में पिंडदान करने के बाद फिर कहीं पिंडदान की आवश्यकता नहीं रह जाती।

स्कंद पुराण अनुसार पिंडदान के लिए गया, पुष्कर, हरिद्वार, प्रयागराज व काशी भी श्रेयस्कर हैं, लेकिन भू-वैकुंठ बदरीनाथ धाम स्थित ब्रह्मकपाल में किया गया पिंडदान इन सबसे आठ गुणा ज्यादा फलदायी है।
ब्रह्म कपाल पर ही शिव को ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति मिली थी, क्योंकि उन्होंने ही ब्रह्मा का पांचवां सिर काट दिया था।

पुराणों अनुसार ब्रह्मज्ञान, गयाश्राद्ध, गोशाला में मृत्यु तथा कुरुक्षेत्र में निवास- ये चारों मुक्ति के साधन हैं- गया में श्राद्ध करने से ब्रह्महत्या, सुरापान, स्वर्ण की चोरी, गुरुपत्नीगमन और उक्त संसर्ग-जनित सभी महापातक नष्ट हो जाते हैं।

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