रविवार, 11 मार्च 2018

✳कदम रुक गए जब पहुंचे
      हम रिश्तों के बाज़ार में...

✳बिक रहे थे रिश्ते
       खुले आम व्यापार में..

✳कांपते होठों से मैंने पूँछा,
      "क्या भाव है भाई
       इन रिश्तों का..?"

✳ दुकानदार बोला:

✳ "कौन सा लोगे..?

✳ बेटे का ..या बाप का..?

✳ बहिन का..या भाई का..?

✳ बोलो कौन सा चाहिए..?

✳ इंसानियत का..या प्रेम का..?

✳ माँ का..या विश्वास का..?

✳बाबूजी कुछ तो बोलो
      कौन सा चाहिए

✳चुपचाप खड़े हो
       कुछ बोलो तो सही...

✳मैंने डर कर पूँछ लिया
      "दोस्त का.."

✳दुकानदार नम आँखों से बोला:

✳"संसार इसी रिश्ते
      पर ही तो टिका है..."

✳माफ़ करना बाबूजी
      ये रिश्ता बिकाऊ नहीं है..

✳इसका कोई मोल
       नहीं लगा पाओगे,

✳और जिस दिन
       ये बिक जायेगा...

✳उस दिन ये संसार उजड़ जायेगा

    *सभी मित्रों को समर्पित*

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