*ये भी एक चिंतन ही है*
बरसो पूर्व मनुष्य पीतल के बर्तन उपयोग करता था।
मनुष्य के सम्बंध भी पीतल जैसे थे,
हर समय चमकाकर सोने जैसे रहते थे।
फिर स्टील आया जिसमे धीरे धीरे चमक खत्म हो जाती थी फिर भी खीचते थे,
इसी तरह सम्बन्ध भी चलाये जाते थे।
फिर कांच आया , कब टूट जाए मालूम नही,
इसी प्रकार सम्बन्ध भी कभी भी टूट जाते थे।
अभी जमाना आया है पेपर और थर्मोकोल का उपयोग करो और फेक दो ,
सम्बन्धो का भी ऐसा ही हो गया है जब जरूरत हो तब तक रखो और भूल जाओ।
*गहरी बात है....सोचिएगा जरूर..*
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