करें जब पांव खुद नर्तन, समझ लेना की होली है...
हिलोरें खा रहा हो मन, समझ लेना की होली है....
इमारत इक पुरानी सी, रुके बरसों से पानी सी ....
लगे बीवी वही नूतन,समझ लेना की होली है
तरसती जिसके हों दीदार तक को , आपकी आंखें...
उसे छूने का आये क्षण, समझ लेना की होली है...
कभी खोलो हुलस कर आप , अपने घर का दरवाजा.....
खड़े देहरी पे हों साजन, समझ लेना की होली है ...
हमारी ज़िन्दगी है यूं तो, इक कांटों भरा जंगल...
अगर लगने लगे मधुबन, समझ लेना की होली है..
अगर महसूस हो तुमको, कभी जब सांस लेते हो ..
हवाओं में घुला चन्दन, समझ लेना की होली है ....
बुलायें पास जब तुमको , धुनें मेरी मुहब्बत की ...
जब गाये ताल पे धड़कन , समझ लेना की होली है
......समझ लेना की होली है....... !
शनिवार, 3 मार्च 2018
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