गुरुवार, 30 दिसंबर 2021

कन्यादान हुआ जब पूरा,आया समय विदाई का ।।हँसी ख़ुशी सब काम हुआ था,सारी रस्म अदाई का ।बेटी के उस कातर स्वर ने,बाबुल को झकझोर दिया।।पूछ रही थी पापा तुमने,क्या सचमुच में छोड़ दिया।।अपने आँगन की फुलवारी,मुझको सदा कहा तुमने।।मेरे रोने को पल भर भी,बिल्कुल नहीं सहा तुमने।।क्या इस आँगन के कोने में,मेरा कुछ स्थान नहीं।।अब मेरे रोने का पापा,तुमको बिल्कुल ध्यान नहीं।।देखो अन्तिम बार देहरी,लोग मुझे पुजवाते हैं।।आकर के पापा क्यों इनको,आप नहीं धमकाते हैं।।नहीं रोकते चाचा ताऊ,भैया से भी आस नहीं।।ऐसी भी क्या निष्ठुरता है,कोई आता पास नहीं।।बेटी की बातों को सुन के,पिता नहीं रह सका खड़ा।।उमड़ पड़े आँखों से आँसू,बदहवास सा दौड़ पड़ा।।कातर बछिया सी वह बेटी,लिपट पिता से रोती थी।।जैसे यादों के अक्षर वह,अश्रु बिंदु से धोती थी।।माँ को लगा गोद से कोई,मानो सब कुछ छीन चला।।फूल सभी घर की फुलवारीसे कोई ज्यों बीन चला।।छोटा भाई भी कोने में,बैठा बैठा सुबक रहा।।उसको कौन करेगा चुप अब,वह कोने में दुबक रहा।।बेटी के जाने पर घर ने,जाने क्या क्या खोया है।।कभी न रोने वाला बापू,फूट फूट कर रोया है. जय शक्तेश्वर महादेव💜❤

गुरुवार, 23 दिसंबर 2021

*शुभ काम में क्यों बनाई गई नारियल फोड़ने की परंपरा-*〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️सनातन धर्म के ज्यादातर धार्मिक संस्कारों में नारियल का विशेष महत्व है। कोई भी व्यक्ति जब कोई नया काम शुरू करता है तो भगवान के सामने नारियल फोड़ता है। चाहे शादी हो, त्योहार हो या फिर कोई महत्वपूर्ण पूजा, पूजा की सामग्री में नारियल आवश्यक रूप से रहता है। नारियल को संस्कृत में श्रीफल के नाम से जाना जाता है।विद्वानों के अनुसार यह फल बलि कर्म का प्रतीक है। बलि कर्म का अर्थ होता है उपहार या नैवेद्य की वस्तु। देवताओं को बलि देने का अर्थ है, उनके द्वारा की गई कृपा के प्रति आभार व्यक्त करना या उनकी कृपा का अंश के रूप मे देवता को अर्पित करना। एक समय सनातन धर्म में मनुष्य और जानवरों की बलि सामान्य बात थी। तभी आदि शंकराचार्य ने इस अमानवीय परंपरा को तोड़ा और मनुष्य के स्थान पर नारियल चढ़ाने की शुरुआत की। नारियल कई तरह से मनुष्य के मस्तिष्क से मेल खाता है। नारियल की जटा की तुलना मनुष्य के बालों से, कठोर कवच की तुलना मनुष्य की खोपड़ी से और नारियल पानी की तुलना खून से की जा सकती है। साथ ही, नारियल के गूदे की तुलना मनुष्य के दिमाग से की जा सकती है।नारियल फोड़ने का महत्व👉 नारियल फोड़ने का मतलब है कि आप अपने अहंकार और स्वयं को भगवान के सामने समर्पित कर रहे हैं। माना जाता है कि ऐसा करने पर अज्ञानता और अहंकार का कठोर कवच टूट जाता है और ये आत्मा की शुद्धता और ज्ञान का द्वार खोलता है, जिससे नारियल के सफेद हिस्से के रूप में देखा जाता है।🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹

सोमवार, 13 दिसंबर 2021

*संतान के लिए विरासत*

मृत्यु के समय टॉम स्मिथ ने अपने बच्चों को बुलाया, और अपने पद चिह्नों पर चलने की सलाह दी, ताकि उनको अपने हर कार्य में मानसिक शाँति मिले!

 उसकी बेटी सारा ने कहा ~ डैडी ! यह दुर्भाग्यपूर्ण है, कि आप अपने बैंक में एक पैसा भी छोड़े बिना मर रहे हैं। यह घर भी ... जिसमें हम रहते हैं , किराये का है।

     
सॉरी ... मैं आपका अनुसरण  नहीं कर सकती।
कुछ क्षण बाद उसके पिता ने अपने प्राण त्याग दिये।

           
तीन साल बाद ... सारा एक बहुराष्ट्रीय कम्पनी में इंटरव्यू देने गई। इंटरव्यू में कमेटी के चेयरमैन को सारा ने उत्तर दिया :- मैं सारा स्मिथ हूँ। मेरे पिता टॉम स्मिथ अब नहीं रहे।

       
चेयरमैन .. कमेटी के अन्य सदस्यों की ओर घूमकर बोले -यह आदमी स्मिथ वह था, जिसने ... प्रशासकों के संस्थान में मेरे सदस्यता फ़ार्म पर हस्ताक्षर किये थे, और ... उसकी सिफारिश से ही मैं वह स्थान पा सका हूँ , 
               
जहाँ मैं आज हूँ.  उसने यह सब कुछ भी बदले में लिये बिना किया था।  फिर वे सारा की ओर मुड़े,मुझे तुमसे कोई सवाल नहीं पूछना।
           
तुम स्वयं को इस पद पर  चुना हुआ मान लो। कल आना ... तुम्हारा नियुक्ति पत्र तैयार मिलेगा।

      
सारा स्मिथ उस कम्पनी में कॉरपोरेट मामलों की प्रबंधक बन गई।उसे ड्राइवर सहित दो कारें,ऑफिस से जुड़ा हुआ डुप्लेक्स मकान, और एक लाख पाउंड  प्रतिमाह का वेतन  अन्य भत्तों और ख़र्चों के साथ मिला।

             
उस कम्पनी में दो साल कार्य करने के बाद कम्पनी का प्रबंध निदेशक एक दिन अमेरिका से आया।
     
उसकी इच्छा त्यागपत्र देने और अपने बदले किसी अन्य को पद देने की थी, जो बहुत सत्यनिष्ठ ईमानदार हो।
        
कम्पनी के सलाहकार ने उस पद के लिए सारा स्मिथ को नामित किया।

          
एक इंटरव्यू में सारा से  उसकी सफलता का राज पूछा गया।आँखों में आँसू भरकर उसने उत्तर दिया ~ मेरे पिता ने मेरे लिए मार्ग खोला था।
         
उनकी मृत्यु के बाद ही मुझे पता चला कि वे वित्तीय दृष्टि से निर्धन थे. लेकिन प्रामाणिकता, अनुशासन और सत्यनिष्ठा में ~ वे बहुत ही धनी थे।
फिर उससे पूछा गया, कि वह रो क्यों रही है ?
            
उसने उत्तर दिया - मृत्यु के समय मैंने ईमानदार और प्रामाणिक होने के कारण अपने पिता का अपमान किया था।

          
 मुझे आशा है कि अब वे मुझे क्षमा कर देंगे। मैंने यह सब प्राप्त करने के लिए कुछ नहीं किया।  उन्होंने ही मेरे लिए  यह सब किया था।

     

अन्त में उसका सीधा उत्तर था- मैं अब अपने पिता की पूजा करती हूँ, उनका बड़ा सा चित्र मेरे कमरे में और  घर के प्रवेश द्वार पर लगा है।

  मेरे लिए ...  भगवान के बाद उनका ही स्थान है,
ईमानदारी,अनुशासन ,आत्मनियंत्रण और ईश्वर से डरना ।
यही हैं जो किसी व्यक्ति को धनी बनाते हैं! अच्छी विरासत छोड़कर जाइए !

मैं एक नारी हूं, हर हाल में जीना जानती हूं lबेटी बनूं तो पिता की शान बन जाती हूं, बहन बनूं तो भाई का अभिमान बन जाती हूं lबीवी बनूं तो पति का भाग्य बन जाती हूं,मां बनूं तो बच्चों की ढाल बन जाती हूं lमैं एक नारी हूं, हर हाल में जीना जानती हूं lहोए जो पैसा पहन के गहने मैं बहुत इठलाती हूं, हालात ना हो तो दो जोड़ी कपड़े में ही अपना जीवन बिताती हूं lकभी तो अपनी हर बात में मनवा जाती हूं, तो कभी चुप घड़ी औरों की बात सुन जाती हूं lमैं एक नारी हूं, हर हाल में जीना जानती हूं lकभी बनकर की लाडली मैं खूब खिलखिलाती हूं,तो कभी दरिंदों से अपना दामन बचाती हूं lकभी रख फूलों पर अपने कदम महारानी बन जाती हूं,तो कभी दे अग्नि परीक्षा अपना अस्तित्व बचा जाती हूं lमैं एक नारी हूं, हर हाल में जीना जानती हूं l आए मौका खुशी का तो फूलों से नाजुक बन जाती हूं, आए जो दुखों का तूफान तो चट्टान बन अपनों को बचाती हूं lमिले जो मौका हर क्षेत्र पर अपना हुनर दिखलाती हूं, जो ना मिले मौका तो चारदीवारी में ही अपना जीवन बिताती हूं lमैं एक नारी हूं, हर हाल में जीना जानती हूं lउड़ान भर्ती हूं तो चांद तक पहुंच जाती हूं, मौके पड़ने पर बेटों का फर्ज भी निभा जाती हूं lकरके नौकरी पिता का हाथ बताती हूं, दे कांधा उन्हें श्मशान भी पहुंचाती हूं lमैं एक नारी हूं, हर हाल में जीना जानती हूं lआए जो भी चुनौती उसका डट के सामना कर जाती हूं,मिले जो प्यार तो घर को स्वर्ग सा सजाती हूं, हुए जो अत्याचार तो बन काली सर्वनाश कर जाती हूं l मैं कोई बोझ नहीं यह हर बार साबित कर जाती हूं lमैं एक नारी हूं, हर हाल में जीना जानती हूं l🙏🙏

Naturopathy and Alternative Medicine: 👉क्या आप योगा प्राणायाम से प्रकृतिक रूप से सारी बीमारियो को मरते दम तक कंट्रोल करना चाहते हो? 👉 क्या योग निद्रा, एक्युप्रेशर, कास्मिक हीलिंग, माइंड पावर, डिवाइन पावर, ध्यान की वैज्ञानिक पद्धति और यौगिक श्वसन क्रिया से रोग मुक्त स्वस्थ जिंदगी जीना चाहते है? 👉 क्या आप दवाइयां खाते खाते तंग हो गये है? 👉 क्या आपको Morning Motion 2-3 minutes में clear हो जाती है? 👉 क्या मेहनत की कमाई मेडिकल स्टोर में ले जा कर देते हों? 👉 क्या आप KG से PG की पढाई मे जीवन जीने के लिए नीचे दिए TOPICS को पढे हो? 👉 क्या आप अपने बच्चो को चस्मा मुक्त, तनावमुक्त रखना चाहते है? 👉 क्या बच्चो मे High Concentration Develop करना चाहते हैं? 👉क्या बच्चो मे और खुद मे Super Energy चाहते है? 🙋‍♂️क्या आप 84 असान आसन सीखना चाहते हैं? 🙋‍♂️क्या आप 84 असान कब करना, कब नही करना, गलत करने से क्या नुकसान और सही करने से क्या फायदा होगा जानना चाहता है? 🙋‍♂️ क्या आप 18 प्राणायाम कब, कैसे, कितना, कौन, कौन नही कर सकते और सम्पूर्ण फायदे और गलत करने से नुकसान जानना चाहते हैं? 🙋‍♂️क्या आप 9 प्रकार के मेडीटेशन की सम्पूर्ण जानकारी और प्रक्टिस की विधि जानना चाहते हैं? 🙋‍♂️क्या आप माइंड पावर सिखना चाहते है? 🙋‍♂️क्या आप गोल सेट्टिंग के सिध्दांतों को जानना चाहते हैं? 🙋‍♂️क्या आप मन के डर- फोबिया को हमेशा के लिए खत्म करना चाहते हैं? 🙋‍♂️क्या आप हमेशा के लिए स्वस्थ रहना चाहते हैं? 🙋‍♂️क्या आप आंखो पर चस्मा नही लगाना चाहते हैं ? 🙋‍♂️क्या आप 7 प्रकार के QUOTIENT (IQ, EQ, CQ, PQ, MQ, AQ & SQ) सीखना चाहते हैं? 🙋‍♂️क्या आप 7 चक्रों (कुंडलिनी) को जागृत करना चाहते हैं? 🙋‍♂️क्या आप नेचुरोपैथि, पंचकर्म, षठकर्म, 15 प्रकार के स्नान, 17 प्रकार के BODY DETOXIFICATION सीखना चाहते हैं? 🙋‍♂️क्या आप आस्तंग योग सीखना चाहते हो? 🙋‍♂️ क्या आप इसी प्रकार के 65 टॉपिक सीखने के साथ-साथ प्रैक्टिस भी करना चाहते हो? MUST Join 🤝🤝💪💪💪💪फ्री !!!! वेबिनार Book Your Seat जल्दी-से-जल्दी लिमिटेड सीट 👍👍🕺🕺🕺 It will Transform your Entire life 😊😊🙋‍♂️🙋‍♂️💁💁Don't Miss this Amazing And Golden OPPORTUNITY. GRAB This Amazing Opportunity ♂️✌✌👊👊👊👍👍🙋♂️🙋♂️🙋✌✌👊👊👊👍👍🙋 इस Free Webinar मे नेचरोपैथ, योगा और मेडिटेशन का परम आनंददायक अनुभव प्राप्त करे।निचे दिये गए लिंक पर क्लिक कर के Whatsapp group Join करे

बेटी की विदाई के वक्त बाप ही सबसे आखिरी में रोता है, क्यों, चलिए आज आप विस्तारित रूप से समझिए।बाकी सब भावुकता में रोते हैं, पर बाप उस बेटी के बचपन से विदाई तक के बीते हुए पलों को याद कर करके रोता है।#माँ_बेटी के रिश्तों पर तो बात होती ही है, पर बाप और बेटी का रिश्ता भी समुद्र से गहरा है।हर बाप घर के बेटे को गाली देता है, धमकाता और मारता है, पर वही बाप अपनी बेटी की हर गलती को नकली दादागिरी दिखाते हुए, नजर अंदाज कर देता है।बेटे ने कुछ मांगा तो एक बार डांट देता है, पर अगर बिटिया ने धीरे से भी कुछ मांगा तो बाप को सुनाई दे जाता है और जेब में रूपया हो या न हो पर बेटी की इच्छा पूरी कर देता है।दुनिया उस बाप का सब कुछ लूट ले तो भी वो हार नही मानता, पर अपनी बेटी के आंख के आंसू देख कर खुद अंदर से बिखर जाए उसे बाप कहते हैं।और बेटी भी जब घर में रहती है, तो उसे हर बात में बाप का घमंड होता है। किसी ने कुछ कहा नहीं कि वो बेटी तपाक से बोलती है, "पापा को आने दे फिर बताती हूं।"बेटी घर में रहती तो माँ के आंचल में है, पर बेटी की हिम्मत उसका बाप रहता है।बेटी की जब शादी में विदाई होती है तब वो सबसे मिलकर रोती तो है, पर जैसे ही विदाई के वक्त कुर्सी समेटते बाप को देखती है, जाकर झूम जाती है, और लिपट जाती है, और ऐसे कसके पकड़ती है अपने बाप को जैसे माँ अपने बेटे को। क्योंकि उस बच्ची को पता है, ये बाप ही है जिसके दम पर मैंने अपनी हर जिद पूरी की थी।खैर बाप खुद रोता भी है, और बेटी की पीठ ठोक कर फिर हिम्मत देता है, कि बेटा चार दिन बाद आ जाऊँगा, तुझको लेने और खुद जान बूझकर निकल जाता है, किसी कोने में और उस कोने में जाकर वो बाप कितना फूट फूट कर रोता है, ये बात सिर्फ एक बेटी का बाप ही समझ सकता है।जब तक बाप जिंदा रहता है, बेटी मायके में हक़ से आती है और घर में भी ज़िद कर लेती है और कोई कुछ कहे तो डट के बोल देती है कि मेरे बाप का घर है। पर जैसे ही बाप मरता है और बेटी आती है तो वो इतनी चीत्कार करके रोती है कि, सारे रिश्तेदार समझ जाते है कि बेटी आ गई है।और वो बेटी उस दिन अपनी हिम्मत हार जाती है, क्योंकि उस दिन उसका बाप ही नहीं उसकी वो हिम्मत भी मर जाती हैं।आपने भी महसूस किया होगा कि बाप की मौत के बाद बेटी कभी अपने भाई- भाभी के घर वो जिद नहीं करती जो अपने पापा के वक्त करती थी, जो मिला खा लिया, जो दिया पहन लिया क्योंकि जब तक उसका बाप था तब तक सब कुछ उसका था यह बात वो अच्छी तरह से जानती है। आगे लिखने की हिम्मत नहीं है, बस इतना ही कहना चाहता हूं कि बाप के लिए बेटी उसकी जिंदगी होती है, पर वो कभी बोलता नहीं, और बेटी के लिए बाप दुनिया की सबसे बड़ी हिम्मत और घमंड होता है, पर बेटी भी यह बात कभी किसी को बोलती नहीं है। #बाप_बेटी का प्रेम समुद्र से भी गहरा है।

शुक्रवार, 10 दिसंबर 2021

*'मां' और 'सास' 🙏🏻❤️❤️* रोते हुए *'संसार'* में आई, तब *'मां'* ने गोद में उठाया.! रोते हुए *'ससुराल'* गई, तब *'सास'* ने गले से लगाया.!*'मां'* ने *'जीवन'* दिया तो... *'सास'* ने *'जीवन-साथी'* दिया..! *'मां'* ने *'चलना-बैठना'* सिखाया तो...*'सास'* ने *'समाज में उठना-बैठना'* सिखाया.! *'मां'* ने *'घर के काम'* सिखाए तो... *'सास'* ने *'घर चलाना'* सिखाया.! *'मां'* ने *'कोमल कली'* की तरह संभाला तो... *'सास'* ने *'विशाल वृक्ष'* जैसा बनाया.! *'मां'* ने *'सुख में जीना'* सिखलाया तो...*'सास'* ने *'दुख में भी जीना'* सिखलाया.! *'मां'.. 'ईश्वर' के समान है तो...**'सास'.. 'गुरु' के समान है..।*नमन दोनों मां को 🙏🏻🙏🏻🌷🌹👌🏼👏🏼👍🏼🌹🌷💅🏻

गुरुवार, 2 दिसंबर 2021

#पवित्र_वरमाला_रस्म_का_बनता_मजाक !!आजकल #शादियों में ये बात काफी नजर आ रही है, कि शादी के समय स्टेज पर #वरमाला के वक्त वर या दूल्हा बड़ा #तनकर खड़ा हो जाता है, जिससे दुल्हन को वरमाला डालने में काफी कठिनाई होती है, कभी कभी वर पक्ष के लोग दूल्हे को गोद में उठा लेते हैंफिर #वधु_पक्ष के लोग भी वधु को गोद में #उठाकर जैसे तैसे वरमाला कार्यक्रम #सम्पन्न करवा पाते हैं, आखिर ऐसा क्यों? क्या करना चाहते हैं हम? हम एक पवित्र संबंध जोड़ रहे हैं, या इस नये संबंध को मजाक बना रहे हैअपनी #जीवनसँगनी को हजार-पांच सौ लोगो के बीच हम उपहास का पात्र बनाकर रह जाते हैं, कोई #प्रतिस्पर्धा नही हो रही है, दंगल या अखाड़े का मैदान नही है, पवित्र मंडप है जहां देवी-देवताओं और पवित्र अग्नि का आवाहन होता है भगवान् प्रभु #श्रीराम जी ने सम्मान सहित कितनी #सहजता से सिर झुकाकर सीता जी से वरमाला पहनी थी#रामो_विग्रहवानो_धर्म:यही हमारी परंपरा है#विवाह एक पवित्र बंधन है, #संस्कार है, कृपया इसको मजाक ना बनने दे...

शुक्रवार, 19 नवंबर 2021

*सकारात्मक सोच*पुराने समय की बात है, एक गाँव में दो किसान रहते थे। दोनों ही बहुत गरीब थे, दोनों के पास थोड़ी थोड़ी ज़मीन थी, दोनों उसमें ही मेहनत करके अपना और अपने परिवार का गुजारा चलाते थे।अकस्मात कुछ समय पश्चात दोनों की एक ही दिन एक ही समय पर मृत्यु हो गयी। यमराज दोनों को एक साथ भगवान के पास ले गए। उन दोनों को भगवान के पास लाया गया। भगवान ने उन्हें देख के उनसे पूछा, *"अब तुम्हें क्या चाहिये, तुम्हारे इस जीवन में क्या कमी थी, अब तुम्हें क्या बना कर मैं पुनः संसार में भेजूं।”*भगवान की बात सुनकर उनमें से एक किसान बड़े गुस्से से बोला, *” हे भगवान! आपने इस जन्म में मुझे बहुत घटिया ज़िन्दगी दी थी। आपने कुछ भी नहीं दिया था मुझे। पूरी ज़िन्दगी मैंने बैल की तरह खेतो में काम किया है, जो कुछ भी कमाया वह बस पेट भरने में लगा दिया, ना ही मैं कभी अच्छे कपड़े पहन पाया और ना ही कभी अपने परिवार को अच्छा खाना खिला पाया। जो भी पैसे कमाता था, कोई आकर के मुझसे लेकर चला जाता था और मेरे हाथ में कुछ भी नहीं आया। देखो कैसी जानवरों जैसी ज़िन्दगी जी है मैंने।”*उसकी बात सुनकर भगवान कुछ समय मौन रहे और पुनः उस किसान से पूछा, *"तो अब क्या चाहते हो तुम, इस जन्म में मैं तुम्हें क्या बनाऊँ।”*भगवान का प्रश्न सुनकर वह किसान पुनः बोला, *"भगवन आप कुछ ऐसा कर दीजिये, कि मुझे कभी किसी को कुछ भी देना ना पड़े। मुझे तो केवल चारों तरफ से पैसा ही पैसा मिले।”*अपनी बात कहकर वह किसान चुप हो गया। भगवान ने उसकी बात सुनी और कहा, *"तथास्तु, तुम अब जा सकते हो मैं तुम्हे ऐसा ही जीवन दूँगा जैसा तुमने मुझसे माँगा है।”*उसके जाने पर भगवान ने पुनः दूसरे किसान से पूछा, *"तुम बताओ तुम्हें क्या बनना है, तुम्हारे जीवन में क्या कमी थी, तुम क्या चाहते हो?”*उस किसान ने भगवान के सामने हाथ जोड़ते हुए कहा, *"हे भगवन। आपने मुझे सबकुछ दिया, मैं आपसे क्या मांगू। आपने मुझे एक अच्छा परिवार दिया, मुझे कुछ जमीन दी जिसपर मेहनत से काम करके मैंने अपने परिवार को एक अच्छा जीवन दिया। खाने के लिए आपने मुझे और मेरे परिवार को भरपेट खाना दिया। मैं और मेरा परिवार कभी भूखे पेट नहीं सोया। बस एक ही कमी थी मेरे जीवन में, जिसका मुझे अपनी पूरी ज़िन्दगी अफ़सोस रहा और आज भी हैं। मेरे दरवाजे पर कभी कुछ भूखे और प्यासे लोग आते थे, भोजन माँगने के लिए, परन्तु कभी-कभी मैं भोजन न होने के कारण उन्हें खाना नहीं दे पाता था, और वो मेरे द्वार से भूखे ही लौट जाते थे। ऐसा कहकर वह चुप हो गया।”*भगवान ने उसकी बात सुनकर उससे पूछा, *”तो अब क्या चाहते हो तुम, इस जन्म में मैं तुम्हें क्या बनाऊँ।*किसान भगवान से हाथ जोड़ते हुए विनती की, *"हे प्रभु! आप कुछ ऐसा कर दो कि मेरे द्वार से कभी कोई भूखा प्यासा ना जाये।”* भगवान ने कहा, *“तथास्तु, तुम जाओ तुम्हारे द्वार से कभी कोई भूखा प्यासा नहीं जायेगा।”*अब दोनों का पुनः उसी गाँव में एक साथ जन्म हुआ। दोनों बड़े हुए।पहला व्यक्ति जिसने भगवान से कहा था, कि उसे चारों तरफ से केवल धन मिले और मुझे कभी किसी को कुछ देना ना पड़े, वह व्यक्ति उस गाँव का सबसे बड़ा भिखारी बना। अब उसे किसी को कुछ देना नहीं पड़ता था, और जो कोई भी आता उसकी झोली में पैसे डालके ही जाता था।और दूसरा व्यक्ति जिसने भगवान से कहा था कि उसे कुछ नहीं चाहिए, केवल इतना हो जाये की उसके द्वार से कभी कोई भूखा प्यासा ना जाये, वह उस गाँव का सबसे अमीर आदमी बना।*_हर बात के दो पहलू होते हैं_**सकारात्मक और* *नकारात्मक,**अब ये आपकी सोच पर निर्भर करता है कि आप चीज़ों को नकारत्मक रूप से देखते हैं या सकारात्मक रूप से। अच्छा जीवन जीना है तो अपनी सोच को अच्छा बनाइये, चीज़ों में कमियाँ मत निकालिये बल्कि जो भगवान ने दिया है उसका आनंद लीजिये और हमेशा दूसरों के प्रति सेवा का भाव रखिये !!!**🌹👏🏾

#एक फटी धोती और फटी #कमीज पहने एक व्यक्ति अपनी 15-16 साल की बेटी के साथ एक बड़े होटल में पहुंचा। उन दोंनो को कुर्सी पर बैठा देख एक #वेटर ने उनके सामने दो #गिलास साफ ठंडे पानी के रख दिए और पूछा- आपके लिए क्या लाना है? उस व्यक्ति ने कहा- "मैंने मेरी बेटी को वादा किया था कि यदि तुम कक्षा दस में जिले में प्रथम आओगी तो मैं तुम्हे शहर के सबसे बड़े होटल में एक डोसा खिलाऊंगा।इसने वादा पूरा कर दिया। कृपया इसके लिए एक डोसा ले आओ।"वेटर ने पूछा- "आपके लिए क्या लाना है?" उसने कहा-"मेरे पास एक ही डोसे का पैसा है।"पूरी बात सुनकर वेटर मालिक के पास गया और पूरी कहानी बता कर कहा-"मैं इन दोनो को भर पेट नास्ता कराना चाहता हूँ।अभी मेरे पास पैसे नहीं है,इसलिए इनके बिल की रकम आप मेरी सैलेरी से काट लेना।"मालिक ने कहा- "आज हम होटल की तरफ से इस #होनहार बेटी की सफलता की पार्टी देंगे।" होटलवालों ने एक टेबल को अच्छी तरह से सजाया और बहुत ही शानदार ढंग से सभी उपस्थित ग्राहको के साथ उस गरीब बच्ची की सफलता का जश्न मनाया।मालिक ने उन्हे एक बड़े थैले में तीन डोसे और पूरे मोहल्ले में बांटने के लिए मिठाई उपहार स्वरूप पैक करके दे दी। इतना सम्मान पाकर आंखों में खुशी के आंसू लिए वे अपने घर चले गए। समय बीतता गया और एक दिन वही लड़की I.A.S.की परीक्षा पास कर उसी शहर में कलेक्टर बनकर आई।उसने सबसे पहले उसी होटल मे एक सिपाही भेज कर कहलाया कि कलेक्टर साहिबा नास्ता करने आयेंगी। होटल मालिक ने तुरन्त एक टेबल को अच्छी तरह से सजा दिया।यह खबर सुनते ही पूरा होटल ग्राहकों से भर गया।कलेक्टर रूपी वही लड़की होटल में मुस्कराती हुई अपने माता-पिता के साथ पहुंची।सभी उसके सम्मान में खड़े हो गए।होटल के मालिक ने उन्हे गुलदस्ता भेंट किया और आर्डर के लिए निवेदन किया।उस लड़की ने खड़े होकर होटल मालिक और उस बेटर के आगे नतमस्तक होकर कहा- "शायद आप दोनों ने मुझे पहचाना नहीं।मैं वही लड़की हूँ जिसके पिता के पास दूसरा डोसा लेने के पैसे नहीं थे और आप दोनों ने #मानवता की सच्ची मिसाल पेश करते हुए,मेरे पास होने की खुशी में एक शानदार पार्टी दी थी और मेरे पूरे मोहल्ले के लिए भी मिठाई पैक करके दी थी। 🎈आज मैं आप दोनों की बदौलत ही कलेक्टर बनी हूँ।आप दोनो का एहसान में सदैव याद रखूंगी।आज यह पार्टी मेरी तरफ से है और उपस्थित सभी ग्राहकों एवं पूरे होटल स्टाफ का बिल मैं दूंगी।कल आप दोनों को "" श्रेष्ठ नागरिक "" का सम्मान एक नागरिक मंच पर किया जायेगा। शिक्षा-- किसी भी गरीब की गरीबी का मजाक बनाने के वजाय उसकी प्रतिभा का उचित सम्मान करें l

आपने रानी कमलापति नाम सुनकर यदि "ऐसा किया" अर्थात आप भी षड्यंत्र में फँस गये.....भोपाल में बने भारत के सबसे हाईटेक रेलवे स्टेशन का नाम रानी कमलापति रेलवे स्टेशन हो गया है, पहले इसका नाम हबीबगंज रेलवे स्टेशन हुआ करता था। आज यह रेलवे स्टेशन किसी इंटरनेशनल एयरपोर्ट को भी मात देता है। लेकिन हम स्टेशन की भव्यता की नहीं बल्कि उसकी दिव्यता की बात करेंगे, और दिव्यता इस रेल्वे स्टेशन के नाम में है। *जब भोपाल के इस स्टेशन का नाम रानी कमलापति के नाम पर रखे जाने का समाचार लोगों ने सुना तो शेष भारत तो छोड़िये, मध्यप्रदेश भी जाने दीजिये, भोपाल के नागरिकों तक को भी आश्चर्य हुआ कि ये रानी कमलापति कौन थी? भोपाल को तो नवाबों ने बसाया है, भोपाल में किसी हिन्दू राजा का नाम अगर सुना वो राजा भोज का सुना*, *तो फिर ये रानी कमलापति कहां से आ गई ?* और रानी कमलापति कौन है, यदि स्टेशन के नामान्तरण के बाद यह प्रश्न आपके भी मन में उठा हो, तो समझिये पिछले एक शतक के षड्यंत्र के परिणाम आंशिकरूप से आपके मस्तिष्क पर भी हुए हैं। वे हमें हमारी जड़ों से काटना चाहते थे और कुछ भी कहो वे कुछ हद तक सफल तो हुए हैं। खैर, रानी कमलापति को मध्यप्रदेश की पद्मावती भी कह सकते हैं। जैसे पद्मावती ने अपने सम्मान की रक्षा के लिए जौहर किया था, ठीक वैसे ही रानी कमलापति ने भी जलसमाधि ली थी। सोलहवीं सदी में समूचे भोपाल क्षेत्र पर हिन्दू गोंड राजाओं का ही शासन था। कमलापति गोंड राजा निजामशाह की पत्नी थीं। भोपाल के पास गिन्नौरगढ़ से राज्य का संचालन होता था। फिर गद्दी का मोह कुटुंबियों में आया ।राजा निजामशाह के भतीजे आलमशाह, जिसका बाड़ी पर शासन था, के मन में गिन्नौरगढ़ को हड़पने का विचार आया। लड़ तो सकता नहीं था, तो घटिया हरकत की, निजामशाह को खाने पर बुलाया ,खाने में जहर मिलाया और राजा को परलोक पहुंचाया। रानी अपने बेटे नवलशाह की रक्षा के लिए बेटे को लेकर गिन्नौरगढ़ से भोपाल आ गई। भोपाल के छोटे तालाब के पास रानी का महल था। रानी ने अफगानिस्तान से आये हुए मोहम्मद खान से अपने पति के हत्यारे आलमशाह को सबक सिखाने की बात की, मोहम्मद खान एक लाख रुपये के बदले काम करने को तैयार हुआ और उसने आलमशाह को मौत के घाट उतार दिया। पर रानी के पास उस समय धन की पूरी व्यवस्था न हो पाने के कारण रानी ने भोपाल का एक हिस्सा मोहम्मद खान को दे दिया। किन्तु कुछ समय बाद मोहम्मद खान की भी स्वार्थी और विश्वासघाती वृत्ति बड़ी होकर सामने आ गई। उसकी नीयत पूरे भोपाल पर कब्जा करने की थी और इससे भी बुरी बात यह थी कि रानी पर भी उसकी कुदृष्टि थी ।आखिरकार रानी के चिरंजीव नवलशाह और मोहम्मद खान के बीच युद्ध हुआ ,युद्ध अत्यंत भयानक था। इतना कि जिस घाटी पर युद्ध हुआ वो खून से लाल हो गई, भोपाल में आज भी उसे लालघाटी कहते हैं। रानी माता की मानरक्षा के लिए अन्य सैनिकों के साथ नवलशाह का भी बलिदान हो गया। अंत में केवल दो लोग बचे, उन्होंने लालघाटी से धुँआ छोड़ा ,,महल में बैठी रानी इसका अर्थ समझ गईं। उन्होंने अपने निजी सेवकों को तालाब की नहर का रास्ता अपने महल की ओर मोड़ने के आदेश दिए। रानी अपने सम्पूर्ण वैभव के साथ महल के सबसे नीचे वाले तल में जाकर बैठ गईं और अपने शील की रक्षा के लिए जल-समाधि ले ली। *इसे जल-समाधि की जगह जल-जौहर भी कह सकते हैं। जैसे रानी पद्मिनी के साथ अगणित महिलाओं ने अपने सम्मान की रक्षा के लिए स्वयं को अग्नि को समर्पित कर दिया था, वैसा ही रानी कमलापति ने अपने सम्मान की रक्षा के लिए किया।* आज भी रानी के महल की पांच मंजिलें पानी में डूबी हुई हैं, केवल दो मंजिलें ही पानी से बाहर हैं ,पर हाय रे दुर्भाग्य! कौन बताए बच्चों को रानी का सतीत्व और साहस ,हम तो तालाब घूमने आये और फोटो खिंचाकर चल दिए। क्यों, कैसे, कब, किसने यह महल बनवाया था, कभी जानना ही नहीं चाहा । लडकियां तालाब के साथ ,महल के साथ सेल्फी लेती हैं, हैशटेग नेचरलवर के साथ स्टोरी डालती हैं, किन्तु उस भारत माँ की सपूत रानी का इतिहास नहीं जानना चाहतीं। ऐसी न जाने कितनी कमलापतियों का इतिहास उस महल की तरह ही अँधेरे में डूबा हुआ है। उन पर अब प्रकाश जाने लगा है और दुनिया उससे आलोकित होने लगी है। वरना देश में छः से ज्यादा महापुरुष ही नहीं हुए, ऐसा लगने लगा था, हर नगर में, हर गांव में उनके ही नाम के संस्थान, चौराहे सब हुआ करते थे। किन्तु अब हमारे स्थानीय महापुरुषों के नाम पर विश्वस्तरीय रेलवे स्टेशन का नाम रखा जाने लगा है यह सच में सत्य के उद्घाटन का समय हैं . किन्तु हम सबको अपने व्यवहार में इन नामो को लाना पड़ेगा ,अन्यथा आज भी कई लोग प्रयागराज को इलाहाबाद ही कहते हैं ,नर्मदापुरम को होशंगाबाद और दीनदयाल रेलवे स्टेशन को मुगलसराय स्टेशन अब सरकारे तो अपने हिस्से का कार्य कर रहीं हैं ,लेकिन हम सबको भी अपने नित्य व्यवहार में इन शब्दों को लाकर अपने हिस्से का कार्य करना पड़ेगा ,तभी आक्रान्ताओं के कलंक पूरी तरह मिटेंगे और सत्य ,सूर्य के समान उद्घाटित होकर विश्व को आलोकित करेगा ।।

शुक्रवार, 12 नवंबर 2021

नाराज़ पत्नी ने अपने  पति से कहा – आप बाहर खाना खिलाने ही नहीं ले जाते ,आज रात का खाना बाहर करेगें..

सिन्धी भाई – ठीक है पास के होटल में चलते हैं
पत्नी – नहीं..किसी फाइव स्टार होटल में चलते हैं....

सिन्धी भाई  – (एक मिनट के लिए मौन) ठीक है... शाम 7 बजे चलते हैं.

ठीक सात बजे पति-पत्नी अपनी कार में घर से निकले...

रास्ते में – सिन्धी भाई बोले जानती हो... एक बार मैंने अपनी बहन के साथ पानीपूरी प्रतिस्पर्धा की थी. मैंने 30 पानी पूरी खाई और उसे हरा दिया....

पत्नी– क्या यह इतना मुश्किल है.??
सिन्धी भाई – मुझे पानी-पूरी प्रतियोगिता में "हराना" बहुत "मुश्किल" है।

पत्नी – मैं आसानी से आपको हरा सकती हूँ।
सिन्धी भाई– रहने दो ये तुम्हारे बस का नहीं ….!!

पत्नी – हमसे प्रतियोगिता करने चलिये….
सिन्धी भाई – तो "आप" अपने-आप को हारा हुआ देखना चाहती हैं.!!?
पत्नी– चलिये देखते हैं…

वे दोनों एक पानी-पूरी स्टॉल (लारी-ठेले) पर रुके और खाना शुरू कर दिया ….

25 पानी पूरी के बाद सिन्धी भाई ने खाना छोड़ दिया.
पत्नी का भी पेट भर गया था, लेकिन उसने सिंधी भाई को हराने के लिए एक और खा लिया और चिल्लाई , “तुम हार गये।”

बिल 100 रुपये आया...

 सिन्धी भाई  -  अब होटल चलें खाना खाने …
पत्नी- नहीं अब पेट में जगह नहीं बची...वापस घर चलो।

(पति-पत्नी घर लौट गये)
और पत्नी वापस घर आते हुए... शर्त जीतने की बात पर बेहद खुश थी....

कहानी से नैतिक शिक्षा....

एक अच्छे सिन्धी का मुख्य उद्देश्य "न्यूनतम खर्च" के साथ "शिकायतकर्ता" को संतुष्ट करना होता है….

मंगलवार, 26 अक्तूबर 2021

कुछ फर्क नहीं पडता कि तुम हथेली पे सिर्फ चन्दा उकेरो
या कि हाथ भर मेंहदी लगाओ

कुछ फर्क नहीं पडता कि तुम नये कपडे पहनो
या फिर पुरानी साडी में ही खुद को सजाओ

कुछ फर्क नहीं पडता कि तुम कोहनी भर चूड़ी पहनो
या कि कलाई में अकेला कडा झुलाओ 

कुछ फर्क नहीं पडता कि तुम सुबह से शाम तक भूखी रहो
या फिर पूरा दिन थोडा थोडा खाओ

कुछ फर्क नहीं पडता कि तुम सज धज के इठलाओ
या कि सादगी से अपना दिन मनाओ

कुछ फर्क नहीं पडता कि इस दिन तुम पति के पैर छुओ
या बराबरी में खडे रहकर 'करवे' को निभाओ

सखियाँ मेरी,

फर्क तब पडता है जब तुम चेहरे पे मुस्कान की जगह उदासी ले आओ
फर्क तब पडता है जब तुम ठहाकों की जगह होठों पे चुप्पी ले आओ
फर्क तब पडता है जब तुम वक्त बेवक्त, बेवजह तुनक जाओ
फर्क तब पडता है जब तुम बोझिल यादें बार बार सामने लाओ
फर्क तब पडता है जब तुम अपने रिश्ते से बेईमानी कर जाओ !

कि तुम्हारे व्रत नियम तुम्हारे साथी की उमर लम्बी नहीं करते
तुम्हारी चीख चिल्लाहट,तुम्हारे हर वक्त के ताने उसकी जान निकालते हैं! 

कि सुकून के लिये उसे तुम्हारे कर्मकांड या श्रृंगार की नहीं 
तुम्हारे प्रेम तुम्हारे विश्वास तुम्हारी ईमानदारी की जरूरत है!

और उसकी खुशी के लिए तुम इतना तो कर ही सकती हो न......!!

सोमवार, 25 अक्तूबर 2021

न्यायपालिका Supreme Courtसे विनम्र निवेदन*तुम हमें वोट दो; हम तुम्हें-*... लैपटॉप देंगे ..... स्कूटी देंगे ..... हराम की बिजली देंगे ...... लोन माफ कर देंगे..कर्जा डकार जाना, माफ कर देंगे ... ये देंगे .. वो देंगे .. *ये क्या खुल्लम खुल्ला रिश्वत नहीं?**कोई चुनाव आयोग है भी कि नहीं इस देश में !**आयोग की कोई गाइडलाइंस है भी कि नहीं, वोट के लिए आप कुछ भी प्रलोभन नहीं दे सकते?*ये जनता की गाढ़ी कमाई का पैसा हैइसकी *जवाबदेही* होनी चाहियेरोकिए भई ये सब .. वर्ना *बन्द कीजिये ये चुनाव के नाटक .. मतदान ।**हम मध्यमवर्गीय तंग आ गए हैं, क्या हम इन सबके लिए ईमानदारी से भर-भर कर टैक्स चुकाते हैं?*डिफाल्टर की कर्जमाफी .. फोकट की स्कूटी हराम की बिजलीहराम का घर दो रुपये किलो गेंहूतीन रुपये किलो चावल...चार - छह रुपये किलो दाल .. कितना चूसोगे हमें? क्योंकि! वे तुम्हारे आका हैं!गरीब थोकिया वोट बैंक हैं, इसलिए फोकट खाना घर बिजली कर्जा माफी दिए जा रहे हैं हम किस बातकी सजा भोग रहे हैं? जबकि होना ये चाहिये कि हमारे टैक्स से सर्वजनहिताय काम हों, देश के विकास में काम हों तो टैक्स चुकाना अच्छा लगता.. लेकिन आप तो देश के एक बहुत बड़े भाग को शाश्वत गरीब ही बनाए रखना चाहते हो। उसके लिए रोजगार सृजन के अनूकूल परिस्थिति बनाने की बजाए आप तथाकथित सोशल वेलफेयर की खैराती योजनाओं के माध्यम से अपना अक्षुण्ण वोट बैंक बना रहे हो*चुनाव आयोग एवं सर्वोच्च न्यायालय से निवेदन हैं कि कर्मशील देश के बाशिन्दों को तुरंत कानून लाकर कुछ भी फ्री देने पर बंदिश लगाई जाए ताकि देश के नागरिक निकम्मे न बने*.... एक टैक्सपेयर का दर्द

न्यायपालिका Supreme Court
से विनम्र निवेदन


*तुम हमें वोट दो; हम तुम्हें-*
... लैपटॉप देंगे ..
... स्कूटी देंगे ..
... हराम की बिजली देंगे ..
.... लोन माफ कर देंगे
..कर्जा डकार जाना, माफ कर देंगे 
... ये देंगे .. वो देंगे .. 

*ये क्या खुल्लम खुल्ला रिश्वत नहीं?*

*कोई चुनाव आयोग है भी कि नहीं इस देश में !*
*आयोग की कोई गाइडलाइंस है भी कि नहीं, वोट के लिए आप कुछ भी प्रलोभन नहीं दे सकते?*

ये जनता की गाढ़ी कमाई का पैसा है
इसकी *जवाबदेही* होनी चाहिये
रोकिए भई ये सब .. 
वर्ना *बन्द कीजिये ये चुनाव के नाटक .. मतदान ।*

*हम मध्यमवर्गीय तंग आ गए हैं, क्या हम इन सबके लिए ईमानदारी से भर-भर कर टैक्स  चुकाते हैं?*

डिफाल्टर की कर्जमाफी .. फोकट की स्कूटी हराम की बिजली
हराम का घर दो रुपये किलो गेंहू
तीन रुपये किलो चावल...
चार - छह रुपये किलो दाल .. 
कितना चूसोगे हमें? 

क्योंकि! वे तुम्हारे आका हैं!
गरीब थोकिया वोट बैंक हैं, इसलिए फोकट खाना घर बिजली कर्जा माफी दिए जा रहे हैं 
हम किस बातकी सजा भोग रहे हैं? 

जबकि  होना ये चाहिये कि हमारे टैक्स से सर्वजनहिताय काम हों, देश के विकास में काम हों तो टैक्स चुकाना अच्छा लगता.. 
लेकिन आप तो  देश के एक बहुत बड़े भाग को शाश्वत गरीब ही बनाए रखना चाहते हो। उसके लिए रोजगार सृजन के अनूकूल परिस्थिति बनाने की बजाए आप तथाकथित सोशल वेलफेयर की खैराती योजनाओं के माध्यम से अपना अक्षुण्ण वोट बैंक बना रहे हो

*चुनाव आयोग एवं सर्वोच्च न्यायालय से निवेदन हैं कि कर्मशील देश के बाशिन्दों को तुरंत कानून लाकर कुछ भी फ्री देने पर बंदिश लगाई जाए ताकि देश के नागरिक निकम्मे न बने*

.... एक टैक्सपेयर का दर्द

आज की कहानी खाई औऱ ब्रिज (पूल)





खाई औऱ ब्रिज (पूल)




    दो भाई साथ साथ खेती करते थे। मशीनों की भागीदारी और चीजों का व्यवसाय किया करते थे।

 चालीस साल के साथ के बाद एक छोटी सी ग़लतफहमी की वजह से उनमें पहली बार झगडा हो गया था झगडा दुश्मनी में बदल गया था।

एक सुबह एक बढई बड़े भाई से काम मांगने आया. बड़े भाई ने कहा “हाँ ,मेरे पास तुम्हारे लिए काम हैं। उस तरफ देखो, वो मेरा पडोसी है, यूँ तो वो मेरा भाई है, पिछले हफ्ते तक हमारे खेतों के बीच घास का मैदान हुआ करता था पर मेरा भाई बुलडोजर ले आया और अब हमारे खेतों के बीच ये खाई खोद दी, जरुर उसने मुझे परेशान करने के लिए ये सब किया है अब मुझे उसे मजा चखाना है, तुम खेत के चारों तरफ बाड़ बना दो ताकि मुझे उसकी शक्ल भी ना देखनी पड़े."

“ठीक हैं”, बढई ने कहा। 
बड़े भाई ने बढई को सारा सामान लाकर दे दिया और खुद शहर चला गया, शाम को लौटा तो बढई का काम देखकर भौंचक्का रह गया, बाड़ की जगह वहा एक पुल था जो खाई को एक तरफ से दूसरी तरफ जोड़ता था. इससे पहले की बढई कुछ कहता, उसका छोटा भाई आ गया। 

छोटा भाई बोला “तुम कितने दरियादिल हो , मेरे इतने भला बुरा कहने के बाद भी तुमने हमारे बीच ये पुल बनाया, कहते कहते उसकी आँखे भर आईं और दोनों एक दूसरे के गले लग कर रोने लगे. जब दोनों भाई सम्भले तो देखा कि बढई जा रहा है।

रुको! मेरे पास तुम्हारे लिए और भी कई काम हैं, बड़ा भाई बोला।  

मुझे रुकना अच्छा लगता ,पर मुझे ऐसे कई पुल और बनाने हैं, बढई मुस्कुराकर बोला और अपनी राह को चल दिया. 

दिल से मुस्कुराने के लिए जीवन में पुल की जरुरत होती हैं खाई की नहीं। छोटी छोटी बातों पर अपनों से न रूठें। 

"दीपावली आ रही है घरेलू रिश्तों के साथ साथ सभी दोस्ती के रिश्तों पर जमी धूल भी साफ कर लेना, खुशियाँ चार गुनी हो जाएंगी"।

 *आने वाली दीपावली आप सभी के लिए खुशियाँ ले कर आए, यह शुभकामनाएं !*ये परमपिता ईश्वर राम जी भी यही चाहते थे। तभी उन चार भाईयो मे कभी बेर दुश्मनी वैराग्य पैदा नही ह

रविवार, 24 अक्तूबर 2021

👉 #एक_पुजारी_का_जीवन👈
       👇👇👇👇👇👇👇

             दुर्गापूजा समाप्त हुई ,पुजारी अपने थके हुए शरीर के साथ दुर्गा पूजा करके घर लौटे।  सभी लोगों का एक ही  बात पूजा में पुजारी जी की अच्छी खासी आमदनी हुई है।  फ्रूट स्वीट साड़ी बहुत कुछ मिला होगा।    

लेकिन उनको कौन समझाये बीस लाख रुपये के बजट वाले पूजा में केवल चार लाल झालर वाली सफेद साड़ी मिला वह भी एकदम जाल की तरह हैं।   गमछा मिला जिसका आकार देखकर  रूमाल  भी शर्मा जाये।  

    सभी समितियों में एक या दो ऐसे व्यक्ति  होते है जो  पुजारी जी की गलती को पकड़ने के लिए बैठे रहते है।  वह समय-समय पर ज्ञान देते रहते हैं कि वह पुरी के पुजारी दक्षिणेश्वर के पुजारी  से बहस कर चुके  है और उनका स्थिती खराब कर दिये थे।  अब आईये दक्षिणा की ओर दशवें दिन  समिति द्वारा पुजारी जी को  दक्षिणा  दिया जाता है वो भी कमिटी जो देता है पुजारी जी खुशी-खुशी रख लेते हैं।  इस प्रकार दस दिन की पूजा पूरी कर वे  एक रूमाल से भी छोटा गमछा और 2,4 साड़ी लेकर घर लौटे।

      पुजा कराते,कराते पुजारी जी का गला भी बैठ चुका था।  जहां हर कोई अपने पत्नी बच्चों एवम् परिवार  के साथ पूजा में खुशी मना रहा है परिवार के साथ घुम रहें है वहीं पुजारी जी खाली पेट जोर-जोर से मंदिर में मंत्रोच्चारण कर रहे हैं। मैं उन लोगों को कहना चाहता हूं  जो सोचते हैं कि  एक पुजारी बिना परिश्रम के ही कमाई करते हैं, तो उनमें से कोई भी एक व्यक्ति 10 दिन बिना खाये-पिये  खाली पेट एक मंडप से दूसरा मंडप दौड़िये  और लगातार 2 घंटा उच्चस्वर  में दुर्गासप्तशती का पाठ किजीये फिर सच्चाई समझ में आ जायेगी एक पुजारी कितना परिश्रम करते हैं। 
         पुरोहित की पत्नी बच्चें एवम् उनके बुढ़े माता-पिता  भी उस दशमी का इंतजार करते हैं उस दक्षिणा के पैसे से पुजारी जी के  बच्चों के लिए पुस्तक, कपड़े माता-पिता के लिए दवा खरीदना होता है पूजा के  बाद सभी परिवार के सदस्य उनके घर लौटने का बेसब्री से इंतजार करते है.  वापस लौटते समय रास्ते में कोई कहेगा  आज तो बहुत कमाई हुई हैं पंडित जी पुरा बैग भरा हुआ हैं।इसी में से कुछ हमें भी दे दो ऐसे बोलकर पुजारी जी का उपहास उरायेगा।फिर भी पुजारी जी उसको अनसुना करके आगे निकल जाते है।
      वे लोग पुजारी जी के जीवन की शारीरिक और मानसिक पीड़ा को नोटिस नहीं करते हैं।  "जब किसी को रेलवे में भारी बोनस मिलता है या अन्य व्यवसायों में बहुत पैसा कमाता है, तो उनको कोई यह कहने नही जाता है कि इसबार तो काफी बोनस मिला है कुछ मुझे भी दे दो । 
फिर एक कर्मकांडी ब्राह्मण को ही क्यो कोई कहता हैं ?
 कभी कोई ये नही कहता कि पंडित जी पुजा आ गया हैं बच्चों के कपड़े खरीदने के लिए आप ये कुछ पैसे रख लो वैसे भी  पुजा  में काफी खर्च होता हैं।

       वे हमेशा कालीघाट, तिरुपति या जगन्नाथ मंदिरों के पुजारियों की आय की तुलना एक साधारण पुजारी से करते हुए उदाहरण देते हैं।  लेकिन अधिकांश पुजारी जानते हैं कि जीवन कितना कठिन है।  पुजारी सभी का भला चाहता है,  उपवास करके जोर जोर से मंत्रोच्चारण करते हैं और अपने लीवर एवम् हार्ट का समय से पहले 12 बजा देते हैं ।  मैंने यह भी देखा है कि घर पर मासिक आय डेढ़ लाख से अधिक है। लेकिन सत्यनारायण पूजा की दक्षिणा इक्यावन रुपये है।  इसे बढ़ाने के लिए यदि पुजारी बोल दे ।तो ,लोग एक परिचित शब्द  का उपयोग करते है कि "पुजारी लालची" है।  पुजारी को एक पैसे से भी संतुष्ट होना चाहिए।  हाँ, पुरोहित का तो ना पेट है, न पीठ, न रोग, न वस्त्र और जो खरीदने जायेगे वो भी फ्री में मिल जायेगा।  जब कोई नर्सिंग होम अतिरिक्त पैसे लेता है तो ये लोग कुछ नहीं कहते।  यदि  स्कूल  चंदा के नाम पर अधिक पैसे लेते हैं, तो भी आप चुप हैं।  वे लालच नहीं हैं ?

 हाँ, यह समाज है।  और यही न्याय है।
 और क्या आप जानते हैं कि शर्म कब आती है? 
अधिक दुख तब होता हैं जब कोई ब्राह्मण अधिकारी
 जब एक कर्मकांडी ब्राह्मण से कहता हैं आजकल तो बहुत लुट रहें हो लोगों को । 

 अब तो कुछ लोग कहते हैं इधर भी लूट रहे हो और राज्य सरकार के तरफ  से पुरोहित भत्ता भी मिल रहा हैं सब कहा रखते हो ?  

अब उन्हें कौन समझाये कि वह  एक हजार रुपए पाने के लिए नेता जी के पैरों में तेल मालीस करना होगा। फिर भाग्य अच्छा रहा तो कही बात बनेगी।

 इसलिए मेरे जैसे अधिकांश पुजारियों को अभी भी सरकार के तरफ से कोई  भत्ता नहीं मिलता है।  यह सब सुनकर मुझे वास्तव में एक पुजारी के रूप में असहनीय पीड़ा होती  है। 

 पता नही हमारा समाज कब बदलेगा।

शनिवार, 23 अक्तूबर 2021

भारत को आखिर बॉलीवुड ने दिया क्या है? 
1. बलात्कार गैंग रेप करने के तरीके।
2. विवाह किये बिना लड़का- लड़की का शारीरिक सम्बन्ध बनाना।
3. विवाह के दौरान लड़की को मंडप से भगाना
4. चोरी डकैती करने के तरीके।
5. भारतीय संस्कारों का उपहास उड़ाना।
6. लड़कियों को छोटे कपड़े पहने की सीख देना....जिसे फैशन का नाम देना।
7. दारू सिगरेट चरस गांजा कैसे पिया और लाया जाये।
8. गुंडागर्दी कर के हफ्ता वसूली करना।
9. भगवान का मजाक बनाना और अपमानित करना।
10. पूजा- पाठ ,यज्ञ करना पाखण्ड है व नमाज पढ़ना ईश्वर की सच्ची पूजा है।
11. भारतीयों को अंग्रेज बनाना।
12. भारतीय संस्कृति को मूर्खता पूर्ण बताना और पश्चिमी संस्कृति को श्रेष्ठ बताना।
13. माँ बाप को वृध्दाश्रम छोड़ के आना।
14. गाय पालन को मज़ाक बनाना और कुत्तों को उनसे श्रेष्ठ बताना और पालना सिखाना।
15. रोटी हरी सब्ज़ी खाना गलत बल्कि रेस्टोरेंट में पिज़्ज़ा बर्गर कोल्ड ड्रिंक और नॉन वेज खाना श्रेष्ठ है।
16. पंडितों को जोकर के रूप में दिखाना, चोटीरखना या यज्ञोपवीत पहनना मूर्खता है मगर बालों के अजीबो- गरीब स्टाइल (गजनी) रखना व क्रॉस पहनना श्रेष्ठ है उससे आप सभ्य लगते हैं।
17. शुद्ध हिन्दी या संस्कृत बोलना हास्य वाली बात है और उर्दू या अंग्रेजी बोलना सभ्य पढ़ा-लिखा और अमीरी वाली बात...
18. पुराने फिल्म्स मे कितने मधुर भजन हुआ करते थे, अब उसकी जगह अल्ला/मौला/इलाही जैसे गानो ने ली है, और हम हिंदू समाज भी हिXडो के जैसे उन गानो को लाखो की लाईक्स पकडा देते है, गुनगुनाते है; इससे ज्यादा और क्या विडंबना हो सकती है???

हमारे देश की युवा पीढ़ी बॉलीवुड को और उसके अभिनेता और अभिनेत्रियों का अपना आदर्श मानती है.....अगर यही बॉलीवुड देश की संस्कृति सभ्यता दिखाए ..तो सत्य मानिये हमारी युवा पीढ़ी अपने रास्ते से कभी नहीं भटकेगी...

ये पोस्ट उन हिन्दू छोकरों के लिए है जो फिल्म देखने के बाद गले में क्रॉस मुल्ले जैसी छोटी सी दाड़ी रख कर खुद को मॉडर्न समझते हैं हिन्दू नौंजवानों की रगो में धीमा जहर भरा जा रहा है। 

#फिल्म_जेहाद__
सलीम - जावेद की जोड़ी की लिखी हुई फिल्मों को देखें, तो उसमें आपको अक्सर बहुत ही चालाकी से हिन्दू धर्म का मजाक तथा मुस्लिम / ईसाई  को महान दिखाया जाता मिलेगा. इनकी लगभग हर फिल्म में एक महान मुस्लिम चरित्र अवश्य होता है और हिन्दू मंदिर का मजाक तथा संत के रूप में पाखंडी ठग देखने को मिलते हैं। 

फिल्म "शोले" में धर्मेन्द्र भगवान् शिव की आड़ लेकर हेमा मालिनी" को प्रेमजाल में फंसाना चाहता है, जो यह साबित करता है कि - मंदिर में लोग लडकियां छेड़ने जाते हैं. इसी फिल्म में ए. के. हंगल इतना पक्का नमाजी है कि - बेटे की लाश को छोड़कर, यह कहकर नमाज पढने चल देता है.कि- उसे और बेटे क्यों नहीं दिए कुर्बान होने के लिए.

"दीवार" का अमिताभ बच्चन नास्तिक है और वो भगवान् का प्रसाद तक नहीं खाना चाहता है, लेकिन 786 लिखे हुए बिल्ले को हमेशा अपनी जेब में रखता है। और वो बिल्ला भी बार बार अमिताभ बच्चन की जान बचाता है. 

"जंजीर" में भी अमिताभ नास्तिक है और जया भगवान से नाराज होकर गाना गाती है लेकिन शेरखान एक सच्चा इंसान है.

फिल्म 'शान" में अमिताभ बच्चन और शशिकपूर साधू के वेश में जनता को ठगते हैं, लेकिन इसी फिल्म में "अब्दुल" जैसा सच्चा इंसान है जो सच्चाई के लिए जान दे देता है. 

फिल्म"क्रान्ति" में माता का भजन करने वाला राजा (प्रदीप कुमार) गद्दार है और करीमखान (शत्रुघ्न सिन्हा) एक महान देशभक्त, जो देश के लिए अपनी जान दे देता है.

अमर-अकबर-अन्थोनी में तीनों बच्चों का बाप किशनलाल एक खूनी स्मगलर है, लेकिन उनके बच्चों अकबर और एन्थॉनी को पालने वाले मुस्लिम और ईसाई महान इंसान हैं. 

 फिल्म "हाथ की सफाई" में चोरी - ठगी को महिमामंडित करने वाली प्रार्थना भी आपको याद ही होगी.

कुल मिलाकर आपको इनकी फिल्म में हिन्दू नास्तिक मिलेगा या धर्म का उपहास करता हुआ कोई कारनामा दिखेगा और इसके साथ साथ आपको शेरखान पठान, DSP डिसूजा, अब्दुल, पादरी, माइकल, डेबिड, आदि जैसे आदर्श चरित्र देखने को मिलेंगे। 

हो सकता है आपने पहले कभी इस पर ध्यान न दिया हो लेकिन अबकी बार ज़रा ध्यान से देखना। केवल सलीम / जावेद की ही नहीं बल्कि कादर खान, कैफ़ी आजमी, महेश भट्ट, आदि की फिल्मो का भी यही हाल है। 

फिल्म इंडस्ट्री पर दाउद जैसों का नियंत्रण रहा है. इसमें अक्सर अपराधियों का महिमामंडन किया जाता है और पंडित को धूर्त, ठाकुर को जालिम, बनिए को सूदखोर, सरदार को मूर्ख कामेडियन, आदि ही दिखाया जाता है.

"फरहान अख्तर" की फिल्म …

करवाचौथ है, सभी माता बहिनों को इस पावन पर्व की बहुत बहुत अग्रिम शुभकामनाएं, हम आपको करवा चौथ की पौराणिक व्रत कथा बतायेंगे

करवाचौथ है, सभी माता बहिनों को इस पावन पर्व की बहुत बहुत अग्रिम शुभकामनाएं, हम आपको करवा चौथ की पौराणिक व्रत कथा बतायेंगे 
🚩🚩🚩🚩🚩
सुहागिन महिलाएं क्यों देखती हैं छलनी से पति का चेहरा?

भारतीय महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए करवा चौथ का व्रत रखती हैं इसलिए यह व्रत और इसकी पूजा काफी सतर्कता के साथ की जाती है। सुहागिन महिलाएं चांद को अर्घ्य देकर व्रत खोलती हैं। इस पूजा में प्रयोग होनेवाली हर चीज का अपना एक अलग महत्व है। आपको जानकर हैरानी होगी कि यह व्रत तब तक पूरा नहीं माना जाता है जब तक पत्नी छलनी से चांद और अपने पति का चेहरा ना देख लें।

आखिर क्या है कारण ?

सुहागन महिलाएं छलनी में पहले दीपक रखती हैं, फिर इसके बाद चांद को और फिर अपने पति को देखती हैं। इसके बाद पति अपनी पत्नी को पानी पिलाकर और मिठाई खिलाकर व्रत पूरा करवाते हैं। क्या कभी आपने सोचा है कि पहले चांद और फिर पति को छलनी से क्यों देखा जाता है। आइए जानते हैं कि छलनी के इस व्रत में क्या मायने हैं और इसके पीछे क्या कथा है…

पौराणिक कथाओं के अनुसार, वीरवती नाम की एक सुहागिन स्त्री थी। अपने भाईयों की वीरवती अकेली बहन होने के कारण उसके भाई बहुत प्रेम करते थे। करवा चौथ पर वीरवती ने निर्जल व्रत रखा और जिससे उसकी तबीयत खराब होने लगी। वीरवती की हालत उसके भाईयों से देखी नहीं जा रही थी। उनकी बहन की तबीयत खराब ना हो इसलिए उन्होंने एक योजना बनाई।

उन्होंने तुंरत एक पेड़ की ओट में छलनी के पीछे जलता दिया रख दिया और अपनी बहन से कह दिया कि चांद निकल आया है तुम अपने व्रत खोल लो और जल्दी खाना खा लो। बहन ने झूठा चांद देखकर अर्घ्य दे देती है और खाना खाने बैठ जाती है। खाने का पहला टुकड़ा मुंह में डालने पर उसको छींक आ जाती है, दूसरे पर बाल बीच में आ जाता है और तीसरा खाने का टुकड़ा जब मुंह में डालने की कोशिश करती है तो उसके पति की मृत्यु का समाचार घर आ जाता है।

उसकी भाभी सच्चाई से अवगत कराती हैं कि उसके साथ ऐसा क्यों हुआ। वीरवती को जब पता चलता है तो फिर करवा चौथ का व्रत रखती है और सच्चे मन से अपनी गलती स्वीकार करती है और अपने पति की फिर जीवित होने की कामना करती है। इसके बाद वह छलनी से पहले चंद्रमा और उसके बाद अपने पति को देखती है। करवा चौथ माता उसकी यह मनोकामना पूरी करती हैं, इससे उसका पति फिर से वापस जीवित हो जाता है।

करवाचौथ की पौराणिक कथा.
🚩🚩🚩

बहुत समय पहले की बात है, एक साहूकार के सात बेटे और उनकी एक बहन करवा थी। सभी सातों भाई अपनी बहन से बहुत प्यार करते थे। यहां तक कि वे पहले उसे खाना खिलाते और बाद में स्वयं खाते थे। एक बार उनकी बहन ससुराल से मायके आई हुई थी..

शाम को भाई जब अपना व्यापार-व्यवसाय बंद कर घर आए तो देखा उनकी बहन बहुत व्याकुल थी। सभी भाई खाना खाने बैठे और अपनी बहन से भी खाने का आग्रह करने लगे, लेकिन बहन ने बताया कि उसका आज करवा चौथ का निर्जल व्रत है और वह खाना सिर्फ चंद्रमा को देखकर उसे अर्घ्‍य देकर ही खा सकती है। चूंकि चंद्रमा अभी तक नहीं निकला है, इसलिए वह भूख-प्यास से व्याकुल हो उठी है..

सबसे छोटे भाई को अपनी बहन की हालत देखी नहीं जाती और वह दूर पीपल के पेड़ पर एक दीपक जलाकर चलनी की ओट में रख देता है। दूर से देखने पर वह ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे चतुर्थी का चांद उदित हो रहा हो..

इसके बाद भाई अपनी बहन को बताता है कि चांद निकल आया है, तुम उसे अर्घ्य देने के बाद भोजन कर सकती हो। बहन खुशी के मारे सीढ़ियों पर चढ़कर चांद को देखती है, उसे अर्घ्‍य देकर खाना खाने बैठ जाती है..

वह पहला टुकड़ा मुंह में डालती है तो उसे छींक आ जाती है। दूसरा टुकड़ा डालती है तो उसमें बाल निकल आता है और जैसे ही तीसरा टुकड़ा मुंह में डालने की कोशिश करती है तो उसके पति की मृत्यु का समाचार उसे मिलता है। वह बौखला जाती है..

उसकी भाभी उसे सच्चाई से अवगत कराती है कि उसके साथ ऐसा क्यों हुआ। करवा चौथ का व्रत गलत तरीके से टूटने के कारण देवता उससे नाराज हो गए हैं और उन्होंने ऐसा किया है..

सच्चाई जानने के बाद करवा निश्चय करती है कि वह अपने पति का अंतिम संस्कार नहीं होने देगी और अपने सतीत्व से उन्हें पुनर्जीवन दिलाकर रहेगी। वह पूरे एक साल तक अपने पति के शव के पास बैठी रहती है। उसकी देखभाल करती है। उसके ऊपर उगने वाली सूईनुमा घास को वह एकत्रित करती जाती है। 

एक साल बाद फिर करवा चौथ का दिन आता है। उसकी सभी भाभियां करवा चौथ का व्रत रखती हैं। जब भाभियां उससे आशीर्वाद लेने आती हैं तो वह प्रत्येक भाभी से 'यम सूई ले लो, पिय सूई दे दो, मुझे भी अपनी जैसी सुहागिन बना दो' ऐसा आग्रह करती है, लेकिन हर बार भाभी उसे अगली भाभी से आग्रह करने का कह चली जाती है..

इस प्रकार जब छठे नंबर की भाभी आती है तो करवा उससे भी यही बात दोहराती है। यह भाभी उसे बताती है कि चूंकि सबसे छोटे भाई की वजह से उसका व्रत टूटा था अतः उसकी पत्नी में ही शक्ति है कि वह तुम्हारे पति को दोबारा जीवित कर सकती है, इसलिए जब वह आए तो तुम उसे पकड़ लेना और जब तक वह तुम्हारे पति को जिंदा न कर दे, उसे नहीं छोड़ना। ऐसा कह क र वह चली जाती है। 

सबसे अंत में छोटी भाभी आती है। करवा उनसे भी सुहागिन बनने का आग्रह करती है, लेकिन वह टालमटोली करने लगती है। इसे देख करवा उन्हें जोर से पकड़ लेती है और अपने सुहाग को जिंदा करने के लिए कहती है। भाभी उससे छुड़ाने के लिए नोचती है, खसोटती है, लेकिन करवा नहीं छोड़ती है..

अंत में उसकी तपस्या को देख भाभी पसीज जाती है और अपनी छोटी अंगुली को चीरकर उसमें से अमृत उसके पति के मुंह में डाल देती है। करवा का पति तुरंत श्रीगणेश-श्रीगणेश कहता हुआ उठ बैठता है। इस प्रकार प्रभु कृपा से उसकी छोटी भाभी के माध्यम से करवा को अपना सुहाग वापस मिल जाता है..

हे श्रीगणेश मां गौरी जिस प्रकार करवा को चिर सुहागन का वरदान आपसे मिला है, वैसा ही सब सुहागिनों को मिले.
🚩🚩🚩
पैकिंग आटा में कीड़े क्यों नही पड़ते ?

एक प्रयोग करके देखें। गेहूं का आटा पिसवा कर उसे 2 महीने स्टोर करने का प्रयास करें। आटे में कीड़े पड़ जाना स्वाभाविक हैं। आप आटा स्टोर नहीं कर पाएंगे!
*फिर ये बड़े-बड़े ब्रांड आटा कैसे स्टोर कर पा रहे हैं? यह सोचने वाली बात है!*

*एक केमिकल है - 'बेंजोयलपर ऑक्साइड' जिसे  'फ्लौर इम्प्रूवर ' भी कहा जाता है।*
इसकी पेरमिसीबल लिमिट 4 मिलीग्राम है, लेकिन आटा बनाने वाली फर्में 400 मिलीग्राम तक ठोक देती हैं।
कारण क्या है?
आटा खराब होने से लम्बे समय तक बचा रहे!
*बेशक़ उपभोक्ता की किडनी का बैंड बज जाए!*

 कोशिश कीजिये खुद सीधे गेहूं खरीदकर अपना आटा पिसवाकर खाएं।

नियमानुसार आटा टिकने का समय...
ठंड के दिनों में 30 दिन
गर्मी के दिनों में 20 दिन
बारिश के दिनों में 15दिन
का बताया गया है। 

ताजा आटा खाइये, स्वस्थ रहिये...
समझदार बनें,
अपने लिए पुरुषार्थी बन सभी गेंहू पिसवा कर काम ले। न कि कोई रेडीमेड थैली का!

सभी मित्र अपने मन की बात मर्यादा में रखें मेरी पोस्ट पर कुछ की जलेगी कड़वी भी लगेगी पर सच यही है औरत जितनी खूबसूरत पूर्ण कपड़े पहने हुए लगती है उतनी कटे फटे पहने कपड़े पहनकर नही लगती जरूरी नही अपने बदन की नुमाइश करना .....

लड़कियो के नग्न घूमने पर जो लोग या स्त्रिया ये कहते है की कपडे नहीं सोच बदलो....
उन लोगो से मेरे कुछ प्रश्न है???
1)हम सोच क्यों बदले?? सोच बदलने की नौबत आखिर आ ही क्यों रही है??? आपने लोगो की सोच का ठेका लिया है क्या??

2) आप उन लड़कियो की सोच का आकलन क्यों नहीं करते?? उसने क्या सोचकर ऐसे कपडे पहने की उसके स्तन पीठ जांघे इत्यादि सब दिखाई दे रहा है....इन कपड़ो के पीछे उसकी सोच क्या थी?? एक निर्लज्ज लड़की चाहती है की पूरा पुरुष समाज उसे देखे,वही एक सभ्य लड़की बिलकुल पसंद नहीं करेगी की कोई उस देखे.......

3)अगर सोच बदलना ही है तो क्यों न हर बात को लेकर बदली जाए??? आपको कोई अपनी बीच वाली ऊँगली का इशारा करे तो आप उसे गलत मत मानिए......सोच बदलिये..वैसे भी ऊँगली में तो कोई बुराई नहीं होती....आपको कोई गाली बके तो उसे गाली मत मानिए...उसे प्रेम सूचक शब्द समझिये.....
हत्या ,डकैती, चोरी, बलात्कार, आतंकवाद इत्यादि सबको लेकर सोच बदली जाये...सिर्फ नग्नता को लेकर ही क्यों????

4) कुछ लड़किया कहती है कि हम क्या पहनेगे ये हम तय करेंगे....पुरुष नहीं.....
जी बहुत अच्छी बात है.....आप ही तय करे....लेकिन पुरुष भी किस लड़की का सम्मान/मदद करेंगे ये भी वो तय करेंगे, स्त्रीया नहीं.... और वो किसी का सम्मान नहीं करेंगे इसका अर्थ ये नहीं कि हम उसका अपमान करेंगे....

5)फिर कुछ विवेकहीन लड़किया कहती है कि हमें आज़ादी है अपनी ज़िन्दगी जीने की.....
जी बिल्कुल आज़ादी है,ऐसी आज़ादी सबको मिले, व्यक्ति को चरस गंजा ड्रग्स ब्राउन शुगर लेने की आज़ादी हो'  मांस खाने की आज़ादी हो,वैश्यालय खोलने की आज़ादी हो,पोर्न फ़िल्म बनाने की आज़ादी हो... हर तरफ से व्यक्ति को आज़ादी हो...

6)लड़को को संस्कारो का पाठ पढ़ाने वाला कुंठित स्त्री समुदाय क्या इस बात का उत्तर देगा की क्या भारतीय परम्परा में ये बात शोभा देती है की एक लड़की अपने भाई या पिता के आगे अपने निजी अंगो का प्रदर्शन बेशर्मी से करे??? क्या ये लड़किया पुरुषो को भाई/पिता की नज़र से देखती है ??? जब ये खुद पुरुषो को भाई/पिता की नज़र से नहीं देखती तो फिर खुद किस अधिकार से ये कहती है की "माँ/बहन की नज़र से देखो"
कौन सी माँ बहन अपने भाई बेटे के आगे नंगी होती है??? भारत में तो ऐसा कभी नहीं होता था....
सत्य ये है कीअश्लीलता को किसी भी दृष्टिकोण से सही नहीं ठहराया जा सकता। ये कम उम्र के बच्चों को यौन अपराधो की तरफ ले जाने वाली एक नशे की दूकान है।।और इसका उत्पादन स्त्री समुदाय करता है।
मष्तिष्क विज्ञान के अनुसार 4 तरह के नशो में एक नशा अश्लीलता(सेक्स) भी है।
चाणक्य ने चाणक्य सूत्र में सेक्स को सबसे बड़ा नशा और बीमारी बताया है।।
अगर ये नग्नता आधुनिकता का प्रतीक है तो फिर पूरा नग्न होकर स्त्रीया अत्याधुनिकता का परिचय क्यों नहीं देती????
गली गली और हर मोहल्ले में जिस तरह शराब की दुकान खोल देने पर बच्चों पर इसका बुरा प्रभाव पड़ता है उसी तरह अश्लीलता समाज में यौन अपराधो को जन्म देती है।
सभी मित्र अपने मन की बात मर्यादा में रखें 🙏

मेरी पोस्ट पर कुछ की जलेगी कड़वी भी लगेगी पर सच यही है औरत जितनी खूबसूरत पूर्ण कपड़े पहने हुए लगती है उतनी कटे फटे पहने कपड़े पहनकर नही लगती जरूरी नही अपने बदन की नुमाइश करना .....
😳 आज आफिस से लौटते हुए अचानक मेरी नजर रोड में बने डिवाइडर के बीच में बनी क्यारी पर पड़ी, अरे वही जो रोड के बीच में ग्रीन बेल्ट होती है न, उसी की बात हो रही है 🙄
हां, तो शाम को जब देखा तो वहाँ नगर निगम के दो कर्मचारी पौधे लगाने के लिए गढ्ढे खोद रहे थे 
😀
मैने एक बात नोट की , कि 
पहला कर्मचारी गढ्ढा खोदता जा रहा है 
और 
दूसरा कर्मचारी उन गढ्ढों को मिट्टी से भरता जा रहा है... 
🙄 
मैने उनसे ऐसा करने का कारण पूछा तो उनमें से एक ने जवाब दिया -
😘
देखिये जनाब हम तीन लोगों को यहाँ पौधे लगाने का काम दिया गया है ...
😎
मेरी ड्यूटी गढ्ढा खोदने की है ,
😉
दूसरे की गढ्ढे में पौधा लगाने की
🙄
और
तीसरे की गढ्ढे में मिट्टी भरने की
🙄
अब, हम लोग तो अपनी ड्यूटी कर रहे हैँ पर.......
🙄 दूसरे नम्बर का,  जिसकी ड्यूटी पौधे लगाने की थी, आज छुट्टी पर है........
😑
"स्मार्ट सिटी के स्मार्ट लोग" 
😁😅😅😅😅😅😅😅😅😅😅😅😅😅

एक बार अर्जुन ने कृष्ण से पूछा-माधव.. ये 'सफल जीवन' क्या होता है ?*

*एक बार अर्जुन ने कृष्ण से पूछा-माधव.. ये 'सफल जीवन' क्या होता है ?*

*कृष्ण अर्जुन को पतंग  उड़ाने ले गए।*

*अर्जुन कृष्ण  को ध्यान से पतंग उड़ाते देख रहे थे,*

*थोड़ी देर बाद अर्जुन बोले-*

*माधव.. ये धागे की वजह से पतंग अपनी आजादी से और ऊपर की ओर नहीं जा पा रही है, क्या हम इसे तोड़ दें ? ये और ऊपर चली जाएगी|*

*कृष्ण ने धागा तोड़ दिया ..*

*पतंग थोड़ा सा और ऊपर गई और उसके बाद लहरा कर नीचे आयी और दूर अनजान जगह पर जा कर गिर गई...*

*तब कृष्ण ने अर्जुन को जीवन का दर्शन समझाया...*

*पार्थ..  'जिंदगी में हम जिस ऊंचाई पर हैं..हमें अक्सर लगता की कुछ चीजें, जिनसे हम बंधे हैं वे हमें और ऊपर जाने से रोक रही हैं; जैसे :*

           *-घर-*
         *-परिवार-*
           *-मित्र-*
       *-अनुशासन-*
      *-माता-पिता-*
       *-गुरू-और-*
          *-समाज-*

*और हम उनसे आजाद होना चाहते हैं...*

*वास्तव में यही वो धागे होते हैं - जो हमें उस ऊंचाई पर बना के रखते हैं..*

*इन धागों के बिना हम एक बार तो ऊपर जायेंगे परन्तु बाद में हमारा वो ही हश्र होगा, जो बिन धागे की पतंग का हुआ...'*

*"अतः जीवन में यदि तुम ऊंचाइयों पर बने रहना चाहते हो तो, कभी भी इन धागों से रिश्ता मत तोड़ना.."*

*धागे और पतंग जैसे जुड़ाव के सफल संतुलन से मिली हुई ऊंचाई को ही 'सफल जीवन कहते हैं!*


अपने ऊपर विश्वास करो

अपने ऊपर विश्वास करो 

      (1) यदि प्राणियों को अपनी सामर्थ्य का ज्ञान हो जाय, तो वे कुछ से कुछ बन सकते हैं। घोड़े और हाथी जो हमारी सवारी के काम आते हैं, यदि अपनी शक्ति को समझ जायँ, तो वह इस प्रकार मनुष्य के बन्धन में नहीं रहेंगे।
       ठीक इसी प्रकार यदि तुम अपनी सामर्थ्य को समझ जाओ, तो परिस्थितियों के गुलाम नहीं बन सकते। आत्मज्ञान होने पर संसार भाररूप प्रतीत नहीं हो सकता।
      (2) "क्या करें, परिस्थितियाँ हमारे अनुकूल नहीं हैं।", "कोई हमारी सहायता नहीं करता।", "कोई मौका नहीं मिलता" आदि शिकायतें निरर्थक है। अपने दोष को दूसरों पर थोपने के लिए इस प्रकार की बातें अपने दिलजमई के लिए ही कहीं जाती हैं।
       कभी प्रारब्ध को मानते हैं, कभी देवी-देवताओं के सामने नाक रगड़ते हैं, कभी पूजा-पाठ करने बैठते हैं, किन्तु जब इस पर भी धन नहीं मिलता और मनोकामनाएँ पूरी नहीं हो, तो उन पर से विश्वास उठ जाता है। इस सब का कारण है अपने ऊपर विश्वास का न होना।
      (3)  दूसरों को बलवान, धनवान, विद्वान और सुखी देखकर हम परमात्मा के न्याय पर उँगली उठाने लगते हैं, पर यह नहीं देखते कि जिस परिश्रम और क्रिया कुशलता से इन सुखी लोगों ने अपने काम पूरे किए हैं, क्या वह हमारे अन्दर है?
       ईश्वर किसी के साथ पक्षपात नहीं करता, उसने वह आत्म-शक्ति सबको मुक्त हाथों से प्रदान की है, जिसके आधार पर वह उन्नति कर सके।
       जब निराशा और असफलताओं को अपने चारों ओर मँडराते देखें, तो समझो कि तुम्हारा चित्त स्थिर नहीं। तुम अपने ऊपर विश्वास नहीं करते।

शुक्रवार, 22 अक्तूबर 2021

त्योहारों के देश भारत में कई ऐसे पर्व हैं, जिन्हें काफी कठिन माना जाता है और इन्हीं में से एक है लोक आस्था का महापर्व छठ, जिसे रामायण और महाभारत काल से ही मनाने की परंपरा रही है।

रामायण एवं महाभारत काल से ही रही है छठ मनाने की परंपरा
 
 त्योहारों के देश भारत में कई ऐसे पर्व हैं, जिन्हें काफी कठिन माना जाता है और इन्हीं में से एक है लोक आस्था का महापर्व छठ, जिसे रामायण और महाभारत काल से ही मनाने की परंपरा रही है।
 
नहाय-खाय के साथ आज से आरंभ हुए लोकआस्था के इस चार दिवसीय महापर्व को लेकर कई कथाएं मौजूद हैं। एक कथा के अनुसार, महाभारत काल में जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गए, तब द्रौपदी ने छठ व्रत किया। इससे उनकी मनोकामनाएं पूर्ण हुईं तथा पांडवों को राजपाट वापस मिल गया। इसके अलावा छठ महापर्व का उल्लेख रामायण काल में भी मिलता है। एक अन्य मान्यता के अनुसार, छठ या सूर्य पूजा महाभारत काल से की जाती है। कहते हैं कि छठ पूजा की शुरुआत सूर्य पुत्र कर्ण ने की थी। कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे। मान्याताओं के अनुसार, वे प्रतिदिन घंटों कमर तक पानी में खड़े रहकर सूर्य को अर्घ्य देते थे। सूर्य की कृपा से ही वे महान योद्धा बने थे।किंवदंती के अनुसार, ऐतिहासिक नगरी मुंगेर के सीता चरण में कभी मां सीता ने छह दिनों तक रह कर छठ पूजा की थी। पौराणिक कथाओं के अनुसार 14 वर्ष वनवास के बाद जब भगवान राम अयोध्या लौटे थे तो रावण वध के पाप से मुक्त होने के लिए ऋषि-मुनियों के आदेश पर राजसूय यज्ञ करने का फैसला लिया। इसके लिए मुग्दल ऋषि को आमंत्रण दिया गया था, लेकिन मुग्दल ऋषि ने भगवान राम एवं सीता को अपने ही आश्रम में आने का आदेश दिया। ऋषि की आज्ञा पर भगवान राम एवं सीता स्वयं यहां आए और उन्हें इसकी पूजा के बारे में बताया गया। मुग्दल ऋषि ने मां सीता को गंगा छिड़क कर पवित्र किया एवं कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष षष्ठी तिथि को सूर्यदेव की उपासना करने का आदेश दिया। यहीं रह कर माता सीता ने छह दिनों तक सूर्यदेव भगवान की पूजा की थी।
लोकआस्था और सूर्य उपासना का महान पर्व छठ की आज से शुरुआत हो गई है। इस चार दिवसीय त्योहार की शुरुआत नहाय-खाय की परम्परा से होती है। यह त्योहार पूरी तरह से श्रद्धा और शुद्धता का पर्व है। इस व्रत को महिलाओं के साथ ही पुरुष भी रखते हैं। चार दिनों तक चलने वाले लोकआस्था के इस महापर्व में व्रती को लगभग तीन दिन का व्रत रखना होता है जिसमें से दो दिन तो निर्जला व्रत रखा जाता है।
 
छठ को पहले केवल बिहार, झारखंड और उत्तर भारत में ही मनाया जाता था, लेकिन अब धीरे-धीरे पूरे देश में इसके महत्व को स्वीकार कर लिया गया है। छठ पर्व षष्ठी का अपभ्रंश है। इस कारण इस व्रत का नामकरण छठ व्रत हो गया। छठ वर्ष में दो बार मनाया जाता है। पहली बार चैत्र में और दूसरी बार कार्तिक माह में। चैत्र शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाए जाने वाले छठ पर्व को चैती छठ और कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाए जाने वाले पर्व को कार्तिकी छठ कहा जाता है।
                 
इस पूजा के लिए चार दिन महत्वपूर्ण हैं नहाय-खाय, खरना या लोहंडा, सांझा अर्घ्य और सूर्योदय अर्घ्य। छठ की पूजा में गन्ना, फल, डाला और सूप आदि का प्रयोग किया जाता है। मान्यताओं के अनुसार, छठी मइया को भगवान सूर्य की बहन बताया गया हैं। इस पर्व के दौरान छठी मइया के अलावा भगवान सूर्य की पूजा-आराधना होती है। कहा जाता है कि जो व्यक्ति इन दोनों की अर्चना करता है उनकी संतानों की छठी माता रक्षा करती हैं। कहते हैं कि भगवान की शक्ति से ही चार दिनों का यह कठिन व्रत संपन्न हो पाता है।
                 
छठ वास्तव में सूर्योपासना का पर्व है। इसलिए इसे सूर्य षष्ठी व्रत के नाम से भी जाना जाता है। इसमें सूर्य की उपासना उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए की जाती है। ऐसा विश्वास है कि इस दिन सूर्यदेव की आराधना करने से व्रती को सुख, सौभाग्य और समृद्धि की प्राप्ति होती है और उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इस पर्व के आयोजन का उल्लेख प्राचीन ग्रंथों में भी पाया जाता है। इस दिन पुण्यसलिला नदियों, तालाब या फिर किसी पोखर के किनारे पर पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है।
 
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी के सूर्यास्त और सप्तमी के सूर्योदय के मध्य वेदमाता गायत्री का जन्म हुआ था। प्रकृति के षष्ठ अंश से उत्पन्न षष्ठी माता बालकों की रक्षा करने वाले विष्णु भगवान द्वारा रची माया हैं। बालक के जन्म के छठे दिन छठी मैया की पूजा-अर्चना की जाती है, जिससे बच्चे के ग्रह-गोचर शांत हो जाएं और जिंदगी में किसी प्रकार का कष्ट नहीं आए। इस मान्यता के तहत ही इस तिथि को षष्ठी देवी का व्रत होने लगा।
       
छठ पूजा की धार्मिक मान्यताएं भी हैं और सामाजिक महत्व भी है। लेकिन इस पर्व की सबसे बड़ी बात यह है कि इसमें धार्मिक भेदभाव, ऊंच-नीच, जात-पात भूलकर सभी एक साथ इसे मनाते हैं। किसी भी लोक परंपरा में ऐसा नहीं है। सूर्य, जो रोशनी और जीवन के प्रमुख स्रोत हैं और ईश्वर के रूप में जो रोज सुबह दिखाई देते हैं उनकी उपासना की जाती है। इस महापर्व में शुद्धता और स्वच्छता का विशेष ख्याल रखा जाता है और कहते हैं कि इस पूजा में कोई गलती हो तो तुरंत क्षमा याचना करनी चाहिए वरना तुरंत सजा भी मिल जाती है।
 
सबसे बड़ी बात है कि यह पर्व सबको एक सूत्र में पिरोने का काम करता है। इस पर्व में अमीर-गरीब, बड़े-छोटे का भेद मिट जाता है। सब एक समान एक ही विधि से भगवान की पूजा करते हैं। अमीर हो वो भी मिट्टी के चूल्हे पर ही प्रसाद बनाता है और गरीब भी, सब एक साथ गंगा तट पर एक जैसे दिखते हैं। बांस के बने सूप में ही अर्घ्य दिया जाता है। प्रसाद भी एक जैसा ही और गंगा और भगवान भास्कर सबके लिए एक जैसे हैं।
*विधि का विधान*
श्री राम का विवाह और राज्याभिषेक दोनों शुभ मुहूर्त देख कर किया गया था फिर भी न वैवाहिक जीवन सफल हुआ न ही राज्याभिषेक।* 
और जब मुनि वशिष्ठ से इसका जवाब मांगा गया तो उन्होंने साफ कह दिया।
*सुनहु भरत भावी प्रबल, बिलखि कहेहूं मुनिनाथ।* लाभ हानि, जीवन मरण, यश अपयश विधि हाथ।।"*
अर्थात  जो विधि ने निर्धारित किया है वही होकर रहेगा।
न राम के जीवन को बदला जा सका, न कृष्ण के।* 
न ही शिव सती की मृत्यु को टाल सके, जबकि महामृत्युंजय मंत्र उन्हीं का आवाहन करता है।*
न गुरु अर्जुन देव जी और न ही गुरु तेग बहादुर साहब जी और दश्मेश पिता गुरू गोबिन्द सिंह जी अपने साथ होने वाले विधि के विधान को टाल सके जबकि आप सब समर्थ थे।* 
 परमहंस भी अपने कैंसर को न टाल सके।* 
न रावण अपने जीवन को बदल पाया न ही कंस जबकि दोनों के पास समस्त शक्तियाँ थी।* 
मानव अपने जन्म के साथ ही जीवन मरण, यश अपयश, लाभ हानि, स्वास्थ्य, बीमारी, देह रंग, परिवार समाज, देश-स्थान सब पहले से ही निर्धारित करके आता है, इसलिए सरल रहें सहज, मन कर्म वचन से सद्कर्म में लीन रहें। मुहूर्त न जन्म लेने का है न मरने का फिर शेष अर्थहीन है। प्रभुमय  रहें।🙏🏼

मित्रों!मेरा मानना है,हमारे परिधान का न केवल हमारे विचारों पर, वरन दूसरे के भावों को भी बहुत प्रभावित करता है।

👉 कडुवा सच

एक महिला को सब्जी मण्डी जाना था...

उसने जूट का थैला लिया और सड़क के किनारे सब्जी मण्डी की ओर चल पड़ी।
.
तभी पीछे से एक ऑटो वाले ने आवाज़ दी :— कहाँ जायेंगी माता जी?

महिला ने ''नहीं भैय्या'' कहा तो ऑटो वाला आगे निकल गया।

अगले दिन महिला अपनी बिटिया मानवी को स्कूल बस में बैठाकर घर लौट रही थी...

तभी पीछे से एक ऑटो वाले ने आवाज़ दी :— बहनजी चन्द्रनगर जाना है क्या?

महिला ने मना कर दिया।

पास से गुजरते उस ऑटोवाले को देखकर महिला पहचान गयी कि ये कल वाला ही ऑटो वाला था।

आज महिला को अपनी सहेली के घर जाना था...

वह सड़क किनारे खड़ी होकर ऑटो की प्रतीक्षा करने लगी।

तभी एक ऑटो आकर रुका :— कहाँ जाएंगी मैडम?

महिला ने देखा ये वही ऑटोवाला है जो कई बार इधर से गुज़रते हुए उनसे पूंछता रहता है चलने के लिए।

महिला बोली :— मधुबन कॉलोनी है न सिविल लाइन्स में, वहीँ जाना है.. चलोगे?

ऑटोवाला मुस्कुराते हुए बोला :— चलेंगें क्यों नहीं मैडम..आ जाइये।

ऑटो वाले के ये कहते ही महिला ऑटो में बैठ गयी।

ऑटो स्टार्ट होते ही महिला ने जिज्ञासावश उस ऑटोवाले से पूंछ ही लिया :— भैय्या एक बात बताइये?

दो-तीन दिन पहले आप मुझे माताजी कहकर चलने के लिए पूंछ रहे थे, कल बहनजी और आज मैडम, ऐसा क्यूँ?

ऑटोवाला थोड़ा झिझककर शरमाते हुए बोला :— जी सच बताऊँ... आप चाहे जो भी समझेँ पर किसी का भी पहनावा हमारी सोच पर असर डालता है।

आप दो-तीन दिन पहले साड़ी में थीं तो एकाएक मन में आदर के भाव जागे,

क्योंकि

मेरी माँ हमेशा साड़ी ही पहनती हैं।

इसीलिए मुँह से स्वयं ही "माताजी'" निकल गया।

कल आप सलवार-कुर्ती में थीँ, जो मेरी बहन भी पहनती है।

इसीलिए आपके प्रति स्नेह का भाव मन में जागा और मैंने ''बहनजी'' कहकर आपको आवाज़ दे दी।

आज आप जीन्स-टॉप में हैं, और इस लिबास में माँ या बहन के भाव नहीँ जागे।

इसलिए मैंने आपको "मैडम" कहकर पुकारा

मित्रों!
मेरा मानना है,
हमारे परिधान का न केवल हमारे विचारों पर, वरन दूसरे के भावों को भी बहुत प्रभावित करता है।

हमें टीवी, फिल्मों या औरों को देखकर पहनावा नहीं बदलना चाहिए, बल्कि विवेक और संस्कृति की ओर भी ध्यान देना चाहिए। Modren होना चाहिये लेकिन अपने संस्कार व सभ्यता को भूले बगैर।

सभी महिलाओं को सादर समर्पित

सभी महिलाओं को सादर समर्पित 

करवाचौथ पर जोक्स भेज कर जो सभी गलती कर रहे वो ही आप भी कर रहे हैं । 
अचानक मन में कुछ सवाल भी खड़े हुए सोचा आपके समक्ष रख कर कुछ प्राश्चित करूँ ।
*कुछ लोग करवाचौथ पर जोक्स भेज रहे हैं कोई पतियों को उल्लू पूजा जायेगा , या फिर पत्नियों पर जोक्स की भूखी शेरनी , या फिर अलग अलग तरीके के मेसेज ।

सभी मेसेज का एक ही मतलब कि यह कोई  त्योहार न होकर कोई ड्रामा सा हो रहा है। 

*पतियों की पूजा दिखावे के लिए हो रही है।*

एक बात समझ नही आई

*किसी ने भी महिलाओं के इस कठिन तप रुपी व्रत की सराहना की? उनकी हौसला बढाने की कोशिश की ?*

उनका व्रत सफ़ल हो और 

*उनको ईश्वर इतनी शक्ति दे कि उनकी मनोकामना पूर्ण हो क्या किसी ने यह प्रार्थना की?*

एक बात और कभी सोचा इस तरह के टपोरी टाइप मेसेज वैलेंटाइन डे के ऊपर क्यूँ नही बनते की आज कोई मुर्गा फंसेगा , 

*क्यूँ

 *सिर्फ हिन्दू त्योहारों का मज़ाक बनता है।*

कब समझेंगे हम ? 
*कब सुधरेंगे हम?*

*यह कोई साधारण व्रत नही है एक तप है जो सिर्फ एक भारतीय महिला ही कर सकती है। पूरे दिन निर्जला रहना कोई आसान काम नही है।*

अतः सभी जोक्स भेजने वालो से निवेदन है की *अपने धर्म और त्यौहार की मज़ाक बनाने से पहले उसकी महत्ता को जान लें* और साथ ही उसको मनाने वाले के लिए *अपने दिल में पूरा आदर और सम्मान भी रखें ।*
सभी महिलाओं को करवाचौथ की *अग्रिम* हार्दिक शुभकामनाएं।
ईश्वर से प्रार्थना है की उनका यह तप रुपी व्रत सफ़ल हो और *उनकी हर मनोकामना पूर्ण हो।*

🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻

गुरुवार, 21 अक्तूबर 2021

दो महिलाओं का वार्तालाप देखिए ---पहली : और कल शाम कैसी रही ?दूसरी : अरे बेडागर्क !वो ऑफिस से आए, फटाफट खाना खाया और चुपचाप सो गये !बात तक न की मुझसे !तुम सुनाओ, तुम्हारी कैसी रही ??पहली : अरे ऑसम, सो रोमाँटिक !वो ऑफिस से आए, फिर हम एक बढिया रेस्टोरेंट में डिनर परगये !फिर एक लांग रोमांटिक वॉक !फ़िर घर पर आकर इन्होंने चारों तरफ कैंडल लगा दी !क्या बताऊँ यार कितना जबरदस्त माहौल बन गया !!---------अब इन्हीं महिलाओं के पतियों का वार्तालापदेखिए ---पहला : हाँ भई, कल शाम क्या रहा ?दूसरा : अरे बेहतरीन !घर पहुँचा, शाँति सेखाना खाया और फिर आराम से सो गया !नो चिक चिक झिक झिक, शानदार रहा सब !तू सुना, तेरा क्या रहा ??पहला : अरे अपनी तो लग गई यार !घर पहुँचा तो देखा कि बिजली वाले कनैक्शन काट गये, क्यूँकि मैं घर की टैंशन में बिल पे करना भूल गया था !अंधेरा होने के कारण बीवी ने खाना नहीं बनाया, तो बाहर खाने जाना पडा !वहाँ वो कमबख्त रेस्टोरेंट इतना महँगा निकला कि जेब खाली हो गई !ऑटो तक के पैसे ना बचे, इसलिए पैदल परेड करनी पडी घर तक ! घर पर बिजली नहीं थी, तो सारी रात मोमबत्ती जलाकर बिना पंखे के रहे यार !मच्छर खा गये !कुल मिलाकर ऐसी सत्यानाशी शाम ना देखी कभी !! #

दो महिलाओं का वार्तालाप देखिए ---

पहली : और कल शाम कैसी रही ?

दूसरी : अरे बेडागर्क !
वो ऑफिस से आए, फटाफट खाना खाया और चुपचाप सो गये !
बात तक न की मुझसे !
तुम सुनाओ, तुम्हारी कैसी रही ??

पहली : अरे ऑसम, सो रोमाँटिक !
वो ऑफिस से आए, फिर हम एक बढिया रेस्टोरेंट में डिनर पर
गये !
फिर एक लांग रोमांटिक वॉक !
फ़िर घर पर आकर इन्होंने चारों तरफ कैंडल लगा दी !
क्या बताऊँ यार कितना जबरदस्त माहौल बन गया !!
---------

अब इन्हीं महिलाओं के पतियों का वार्तालाप
देखिए ---

पहला : हाँ भई, कल शाम क्या रहा ?

दूसरा : अरे बेहतरीन !
घर पहुँचा, शाँति से
खाना खाया और फिर आराम से सो गया !
नो चिक चिक झिक झिक, शानदार रहा सब !
तू सुना, तेरा क्या रहा ??

पहला : अरे अपनी तो लग गई यार !
घर पहुँचा तो देखा कि बिजली वाले कनैक्शन काट गये, क्यूँकि मैं घर की टैंशन में बिल पे करना भूल गया था !
अंधेरा होने के कारण बीवी ने खाना नहीं बनाया, तो बाहर खाने जाना पडा !
वहाँ वो कमबख्त रेस्टोरेंट इतना महँगा निकला कि जेब खाली हो गई !
ऑटो तक के पैसे ना बचे, इसलिए पैदल परेड करनी पडी घर तक ! घर पर बिजली नहीं थी, तो सारी रात मोमबत्ती जलाकर बिना पंखे के रहे यार !
मच्छर खा गये !
कुल मिलाकर ऐसी सत्यानाशी शाम ना देखी कभी !!
 

एक पति ने अपने गुस्सैल पत्नी से। तंग आकर उसे कीलों से भरा एक थैला देते हुए कहा ,"तुम्हें जितनी बार क्रोध आए तुम थैले से एक कील निकाल कर बाड़े में ठोंक देना !"*



*एक पति ने अपने गुस्सैल पत्नी  से।    तंग आकर उसे कीलों से भरा एक थैला देते हुए कहा ,"तुम्हें जितनी बार क्रोध आए तुम थैले से एक कील निकाल कर बाड़े में ठोंक देना !"*

🎯पत्नी को अगले दिन जैसे ही क्रोध आया उसने एक कील बाड़े की दीवार पर ठोंक दी। यह प्रक्रिया वह लगातार करती रही।

🤦🏻‍♂धीरे धीरे उसकी समझ में आने लगा कि कील ठोंकने की व्यर्थ मेहनत करने से अच्छा तो अपने क्रोध पर नियंत्रण करना है और क्रमशः कील ठोंकने की उसकी संख्या कम होती गई।

🙋🏻‍♂एक दिन ऐसा भी आया कि पत्नी  ने दिन में एक भी कील नहीं ठोंकी।

🤷🏻‍♂उसने खुशी खुशी यह बात अपने पति को बताई। वे बहुत प्रसन्न हुए और कहा, "जिस दिन तुम्हें लगे कि तुम एक बार भी क्रोधित नहीं हुई, ठोंकी हुई कीलों में से एक कील निकाल लेना।"

👱‍♀️पत्नी ऐसा ही करने लगी। एक दिन ऐसा भी आया कि बाड़े में एक भी कील नहीं बची। उसने खुशी खुशी यह बात अपने पति को बताई।

*पति उस पत्नी  को बाड़े* *में लेकर गए और कीलों के छेद* *दिखाते हुए पूछा, "क्या तुम ये छेद भर सकती हो?"*

🌿पत्नी ने कहा,"नहीं जी"

🌿पति  ने उसके कन्धे पर हाथ रखते हुए कहा,"अब समझी, क्रोध में तुम्हारे द्वारा कहे गए कठोर शब्द, दूसरे के दिल में ऐसे छेद कर देते हैं, जिनकी भरपाई भविष्य में तुम कभी नहीं कर सकते !"

 *सन्देश : जब भी आपको क्रोध आये तो सोचिएगा कि कहीं आप भी किसी के दिल में कील ठोंकने  तो नहीं जा रहे ?*
🌹

नंदगांव के पास जंगल में ‘कदम्ब टेर’ नामक स्थान है जोकि कदम्ब के वृक्षों से घिरा है। इस स्थान को ‘टेर कदम्ब’ या कदम्ब टेर’ कहते हैं


नंदगांव के पास जंगल में ‘कदम्ब टेर’ नामक स्थान है जोकि कदम्ब के वृक्षों से घिरा है। इस स्थान को ‘टेर कदम्ब’ या कदम्ब टेर’ इसलिए कहते हैं क्योंकि इस स्थान पर भगवान श्रीकृष्ण गायें चराते थे और सायंकाल कदम्ब के वृक्ष पर बैठकर दूर चरने गई गायों को बुलाने के लिए टेर (आवाज) लगाने के लिए वंशी बजाते थे। 

जहां-जहां भगवान के चरण टिकते हैं, उस-उस भूमि में भगवान का प्रभाव प्रवेश कर जाता है; इसलिए उस भूमि की रज को अत्यन्त पवित्र और कल्याणकारी माना जाता है। 

श्रीचैतन्य महाप्रभु के शिष्य श्रीरूप गोस्वामी की यह भजनस्थली रही है, यहीं पर उनकी भजन-कुटी है। 

जब भगवान श्रीकृष्ण के प्रेम की लालसा सभी भोगों और वासनाओं को समाप्त कर प्रबल हो जाती है, तभी साधक का व्रज में प्रवेश होता है। यह व्रज भौतिक व्रज नहीं वरन् इसका निर्माण भगवान के दिव्य प्रेम से होता है।

श्रीरूप गोस्वामी और उनके भाई श्रीसनातन गोस्वामी दोनों पहले बंगाल प्रांत में गौड़ देश के शासक के उच्चाधिकारी थे। हाथी-घोड़े, महल, खजाने, दास-दासियां अपरिमित ऐश्वर्य और संसार के सुख की सभी सामग्री इनको उपलब्ध थी। अपने महान वैभव का इन्होंने उल्टी (वमन) की तरह परित्याग कर वैराग्य धारण किया और व्रज में आकर श्रीराधाकृष्ण के अखण्ड भजन में लग गए।

एक बार श्रीरूप गोस्वामी नन्दगांव में कदम्ब टेर की अपनी कुटी में भजन कर रहे थे उसी समय उनके बड़े भाई श्रीसनातन गोस्वामी वृन्दावन से उनसे मिलने आए। बहुत दिनों के बाद दोनों एक-दूसरे से मिले और कुशल-क्षेम पूछा। श्रीरूप गोस्वामी ने देखा कि बड़े भाई बड़े दुर्बल हो गए हैं । श्रीसनातन गोस्वामी कभी भिक्षा मांगते, कभी नहीं मांगते, दिन-रात भजनानन्द में लीन रहते थे।

श्रीरूप गोस्वामी के मन में विचार आया कि आज बड़े भैया आए हैं, आज मैं अत्यंत स्वादिष्ट खीर का भोग ठाकुरजी को लगाकर वह प्रसाद अपने बड़े भाई को खिलाऊंगा किन्तु यहां इस घोर जंगल में दूध, चावल, शक्कर कहां से प्राप्त हो? श्रीरूपजी का शरीर तो भजन अवस्था में था, नेत्र बन्द, स्थिर आसन परन्तु मन बड़े भाई के आतिथ्य की कल्पनाओं में मग्न था।

उनके मन में भाई को खीर खिलाने का विचार आते ही उसी समय भक्तों के मनोरथ पूर्ण करने वाली श्रीराधा एक बालिका के रूप में खीर का सब सामान - एक पात्र में दूध, चावल, शक्कर ले आईं और दरवाजे से ही आवाज देकर बोलीं - ‘रूप बाबा, ओ रूप बाबा!’

श्रीरूपजी ने अधखुले नेत्रों से पूछा - ‘कौन है?’

मुस्कुराते हुए श्रीराधा ने कहा - ‘बाबा! मैं हूँ, मैया ने आपके लिए दूध भेजा है, साथ में चावल और शक्कर भी है, खीर बना लेना।’

भजन में विघ्न के भय से श्रीरूपजी ने पूरे नेत्र नहीं खोले इसलिए वे अपनी आराध्या को पहचान नही पाए; किन्तु उनके भजन का सम्पूर्ण फल साक्षात् रूप में उनके सामने खड़ा था। 

श्रीरूप गोस्वामी ने कहा - ‘लाली खीर कैसे बनाऊंगा। मेरे पास न अग्नि का साधन है और न ही खीर रखने के लिए कोई बर्तन।’ (व्रज में छोटी लड़कियों को लाली कहते हैं।)

श्रीराधा ने कहा - ‘बाबा! मैया ने कहा है कि बाबा यदि भजन कर रहे हों तो तू ही खीर बना देना।’

श्रीरूप ने कहा - ‘अच्छा लाली! तो बना, जा!'

श्रीराधा ने बिना अग्नि के ही खीर बना दी और कदम्ब के पत्ते दोने बना दिए। उन दोनों में खीर रखकर वे चली गयी।

कदम्ब के पत्तों के दोने में उस खीर का श्रीरूप गोस्वामी ने ठाकुरजी को भोग लगाया। थोड़ी ही देर में बड़े भाई श्रीसनातन गोस्वामी भी अपना नित्य नियम का भजन पूरा करके आ गये।

श्रीरूप ने अपने बड़े भाई श्रीसनातन गोस्वामी को खीर का प्रसाद दिया। जैसे ही उन्होंने वह खीर मुंह से लगाई तो उन्हें प्रेम का नशा सा छा गया और वे प्रेम-मूर्च्छा में चले गए।

श्रीरूप बोले - ‘भैया! भैया!’

भगवान की दृष्टि जहां पड़ती है, वहां सब वस्तुएं दिव्य और अलौकिक हो जाती हैं और भगवान के स्पर्श से वह भोजन दिव्य, अलौकिक, रसमय और परम मधुर हो जाता है। उस भोजन को करने से सारे शरीर में ऐसी प्रसन्नता, आनन्द और तृप्ति आ जाती है जिसका कि कोई ठिकाना नहीं।

श्रीसनातन ने पूछा - ‘यह खीर कहां से आई है? इसमें तो अलौकिक स्वाद है।’

श्रीरूप गोस्वामी ने कहा - ‘भैया! आज आपको खीर खिलाने की इच्छा हुई तभी एक छोटी बालिका खीर का सब सामान लेकर आई और स्वयं अपने हाथों से खीर बनाकर रख गई है।’

श्रीसनातनजी समझ गए कि श्रीराधा ही भक्त की इच्छा पूर्ण करने के लिए स्वयं सामान लाईं और खीर बनाने में कष्ट उठाया। 

वे फफक-फफक कर रोने लगे। 

श्रीसनातन गोस्वामी ने श्रीरूप गोस्वामी से कहा - ‘मेरी इस बात को दृढ़तापूर्वक हृदय में धारण कर लो और अब पुन: ऐसी इच्छा कभी मत करना। इस तुच्छ शरीर के लिए तुमने कामना की और अपने इष्ट को कष्ट दिया। आगे से तुम अपनी वैराग्य की चाल से ही चलना।’ 

अपनी आराध्या श्रीराधा को कष्ट देने के कारण दोनों भाइयों की आंखों से प्रेमाश्रु बहने लगे।

कदम्ब टेर के मन्दिर में आज भी खीर का प्रसाद मिलता है और कदम्ब के वृक्षों पर आज भी इक्का-दुक्का दोने दिखाई पड़ जाते हैं जिन्हें पुजारी मन्दिर में सँजो कर रखते हैं।

जय श्री राधे कृष्णा

*सभी अग्रवाल भाई और बहनों से गुजारिश है कि अपने परिवार में एक मीटिंग करके माता पिता बच्चों को समझाइए कि ये ज़रूर करे*:-

*सभी अग्रवाल भाई और बहनों  से गुजारिश है कि अपने परिवार में एक मीटिंग करके माता पिता बच्चों को समझाइए कि ये ज़रूर करे*:-
1) नेता *अग्रवाल* चुनिए
डॉक्टर अग्रवाल चुनिए
2) वकील *अग्रवाल* चुनिए
3) इंजीनियर *अग्रवाल* चुनिए
4) सी.ए. *अग्रवाल * चुनिए 
5) सब्जी वाला अग्रवाल* चुनिए
6) मोबाइल रिचार्ज *अग्रवाल* चुनिए
7) मेडिकल स्टोर *अग्रवाल* चुनिए
8) दूध डेरी *अग्रवाल* चुनिए
9) प्रिटिंग प्रेस *अग्रवाल* चुनिए
10) दूधवाला *अग्रवाल* चुनिए
11) स्टेशनरी स्टोर्स *अग्रवाल* चुनिए
12) कपडे का शोरूम व दुकान *अग्रवाल* चुनिए
13) इलेक्ट्रॉनिक व इलेक्ट्रीकल स्टोर *अग्रवाल* चुनिए
14)  कृषि सेवा केंद्र *अग्रवाल* चुनिए
15) ट्रेवल बुकिंग *अग्रवाल* चुनिए
16) फ्लोर मिल *अग्रवाल* चुनिए
17) किराना स्टोअर्स *अग्रवाल* चुनिए
18) हार्डवेअर दुकान *अग्रवाल* चुनिए
19) Xerox सेंटर *अग्रवाल* चुनिए
20) होटल **अग्रवाल* चुनिए
21) सब्जी और फ्रूट वाला *अग्रवाल* चुनिए
22) राज मिस्त्री  *अग्रवाल* चुनिए
23) मिठाई की दुकान *अग्रवाल* चुनिए

24) और सभी  चीजों के लिए  *अग्रवाल * व्यापारी चुनिए
चाहे कुछ महंगी ही क्यो न दे

आप देश व अपनी आने वाली पीढी के लिए इतना तो कर सकते हो  यही आपका हथियार है  सब काम समाज पर मत छोड़ो 
कुछ तो करलो भाई

एक ही महीने में आपका समाज उन्नति कर जाएगा

*अग्रवाल को एक ऐसी सोच रखनी चाहिए क्योंकि एक छोटी सोच आगे चल के बड़ी सोच बन सकती है*
*एक बार कड़ी से कड़ी मिला कर तो देखिये सब सर ना झुकाएं तो कहियेगा ।अग्रवाल ना मिले तब बनिए या हिंदू की खोज करिएगा जी।*
*जय अग्रसेन महाराज की *
नोट: हर 10  अग्रवाल तक यह मेसेज शेयर कीजिए।

यह मेसेजे *केवल अग्रवाल को* भेजें ओर भेजें, अवश्य ।

🙏🙏🏻

बुधवार, 20 अक्तूबर 2021

_एक ट्रक के पीछे एक__बड़ी अच्छी बात लिखी देखी...._

_एक ट्रक के पीछे एक_
_बड़ी अच्छी बात लिखी देखी...._

_"ज़िन्दगी एक सफ़र है,आराम से चलते रहो_
_उतार-चढ़ाव तो आते रहेंगें, बस गियर बदलते रहो"_
 _"सफर का मजा लेना हो तो साथ में सामान कम रखिए_
_और_
_जिंदगी का मजा लेना हैं तो दिल में अरमान कम रखिए !!_

_तज़ुर्बा है हमारा... . .. _मिट्टी की पकड़ मजबुत होती है,_
_संगमरमर पर तो हमने .....पाँव फिसलते देखे हैं...!_

👌👌👌👌😇😇

_जिंदगी को इतना सिरियस लेने की जरूरत नही यारों,_

_यहाँ से जिन्दा बचकर कोई नही जायेगा!_

_जिनके पास सिर्फ सिक्के थे वो मज़े से भीगते रहे बारिश में ...._

_जिनके जेब में नोट थे वो छत तलाशते रह गए..._

👌👌👌👌👌👌👌

_पैसा इन्सान को ऊपर ले जा सकता है;_
             
_लेकिन इन्सान पैसा ऊपर नही ले जा सकता......_

👌👌👌👌👌👌👌👌

_कमाई छोटी या बड़ी हो सकती है...._

_पर रोटी की साईज़ लगभग  सब घर में एक जैसी ही होती है।_

  _:👌 शानदार बात👌_

_इन्सान की चाहत है कि उड़ने को पर मिले,_

_और परिंदे सोचते हैं कि रहने को घर मिले..._
                    
‬👌👌👌👌👌😇😇

_कर्मो' से ही पहचान होती है इंसानो की..._

_महेंगे 'कपडे' तो,'पुतले' भी पहनते है दुकानों में !!.._


कार्तिक कथा* कार्तिक के समय भगवान विष्णु ने देवताओ को जालंधर राक्षस से मुक्ति दिलाई थी, साथ ही मत्स्य का रूप धरकर वेदों की रक्षा की थी. इस प्रकार कार्तिक में कई कथायें हैं


 
*🔱कार्तिक माह का महत्व🔱*
कार्तिक हिंदी पंचाग का आँठवा महिना है, कार्तिक के महीने में दामोदर भगवान की पूजा की जाती हैं. यह महिना शरद पूर्णिमा से शुरू होकर कार्तिक पूर्णिमा तक चलता है, जिसके बीच में कई विशेष त्यौहार मनाये जाते हैं*
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
*🟤ब्रह्म मुहूर्त में कार्तिक स्नान का महत्व*🔔

*इस माह में पवित्र नदियों में ब्रह्ममुहूर्त में स्नान का बहुत अधिक महत्व होता हैं. घर की महिलायें सुबह जल्दी उठ स्नान करती हैं, यह स्नान कुँवारी एवम वैवाहिक दोनों के लिए श्रेष्ठ हैं.*
~~~~~~~~~~~~~~~~~~
🍃🍃🍃🍃🍃🍃🍃🍃🍃
*इसी माह में आती है देवोत्थान एकादशी ,तुलसी सालिग्राम विवाह*
~~~~~~~~~~~~~~~~~
*इस माह की एकादशी जिसे प्रबोधिनी एकादशी अथवा देव उठनी एकादशी कहा जाता हैं इसका सर्वाधिक महत्व होता है, इस दिन भगवान विष्णु चार माह की निंद्रा के बाद उठते हैं जिसके बाद से मांगलिक कार्य शुरू किये जाते हैं.*
*इस महीने तप एवम पूजा पाठ उपवास का महत्व होता है, जिसके फलस्वरूप जीवन में वैभव की प्राप्ति होती है. इस माह में तप के फलस्वरूप मोक्ष की प्राप्ति होती हैं.इस माह के श्रद्धा से पालन करने पर दीन दुखियों का उद्धार होता है, जिसका महत्त्व स्वयम विष्णु ने ब्रह्मा जी से कहा था.इस माह के प्रताप से रोगियों के रोग दूर होते हैं जीवन विलासिता से मुक्ति मिलती हैं.*

*🪔कार्तिक मास में दीपदान 🪔*

*कार्तिक माह में दीप दान का महत्व होता हैं. इस दिन पवित्र नदियों में, मंदिरों में दीप दान किया जाता हैं. साथ ही आकाश में भी दीप छोड़े जाते हैं. यह कार्य शरद पूर्णिमा से शुरू होकर कार्तिक पूर्णिमा तक चलता हैं. दीप दान के पीछे का सार यह हैं कि इससे घर में धन आता हैं. कार्तिक में लक्ष्मी जी के लिए दीप जलाया जाता हैं और संकेत दिया जाता हैं अब जीवन में अंधकार दूर होकर प्रकाश देने की कृपा करें. कार्तिक में घर के मंदिर, वृंदावन, नदी के तट एवम शयन कक्ष में दीपक लगाने का माह्त्य पुराणों में निकलता हैं*

*🍃कार्तिक माह से तुलसी का महत्व*🍃 

*कार्तिक में तुलसी की पूजा की जाती हैं और तुलसी के पत्ते खाये जाते हैं. इससे शरीर निरोग बनता हैं. ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करके सूर्य देवता एवम तुलसी के पौधे को जल चढ़ाया जाता हैं. कार्तिक में तुलसी के पौधे का दान दिया जाता*
🪴🪴🪴🪴🪴🪴🪴🪴🪴
     *कार्तिक माह में दान :*
*🌿गो माता को हरे चारे के दान का विशेष महत्व*🌿

*कार्तिक माह में दान का भी विशेष महत्व होता हैं. इस पुरे माह में गो सेवा ,हरे चारे, गरीबो एवम ब्रह्मणों को दान दिया जाता हैं. इन दिनों में तुलसी दान, अन्न दान, गाय दान एवम आँवले के पौधे के दान का महत्व सर्वाधिक बताया जाता हैं. कार्तिक में पशुओं को भी हरा चारा खिलाने का महत्व होता हैं.*

         *कार्तिक में भजन*
कार्तिक माह में श्रद्धालु मंदिरों में भजन करते हैं. अपने घरों में भी भजन करवाते हैं. आजकल यह कार्य भजन मंडली द्वारा किये जाते हैं. इन दिनों रामायण पाठ, भगवत गीता पाठ आदि का भी बहुत महत्व होता हैं. इन दिनों खासतौर पर विष्णु एवम कृष्ण भक्ति की जाती हैं. इसलिए गुजरात में कार्तिक माह में अधिक रौनक दिखाई पड़ती हैं.*

   *📙कार्तिक पूजा विधि नियम*📙
कार्तिक माह में कई तरह के नियमो का पालन किया जाता है, जिससे मनुष्य के जीवन में त्याग एवम सैयम के भाव उत्पन्न होते हैं.

पुरे माह मॉस, मदिरा आदि व्यसन का त्याग किया जाता हैं. कई लोग प्याज, लहसुन, बैंगन आदि का सेवन भी निषेध मानते हैं.
इन दिनों फर्श पर सोना उपयुक्त माना जाता हैं कहते हैं इससे मनुष्य का स्वभाव कोमल होता हैं उसमे निहित अहम का भाव खत्म हो जाता हैं.
कार्तिक में ब्रह्म मुहूर्त में स्नान किया जाता हैं.
तुलसी एवम सूर्य देव को जल चढ़ाया जाता हैं.
काम वासना का विचार इस माह में छोड़ दिया जाता हैं.ब्रह्मचर्य का पालन किया जाता हैं.
इस प्रकार पुरे माह नियमो का पालन किया जाता हैं.

         *कार्तिक कथा*
कार्तिक के समय भगवान विष्णु ने देवताओ को जालंधर राक्षस से मुक्ति दिलाई थी, साथ ही मत्स्य का रूप धरकर वेदों की रक्षा की थी. इस प्रकार कार्तिक में कई कथायें हैं. कार्तिक माह में कई विशेष तिथी एवम कथाये होती हैं जो निम्नानुसार हैं :*

*🔔कार्तिक मास के त्यौहार*🔔

*1- करवाचौथ : कृष्ण पक्ष चतुर्थी*
*2 -अहौई अष्टमी एवम कालाष्टमी : कृष्ण पक्ष अष्टमी*
*3 -रामा एकादशी*
*4- धन तेरस*
*5- नरक चौदस*
*6 -दिवाली, कमला जयंती*
*7 -गोवर्धन पूजा अन्नकूट*
*8 -भाई दूज / यम द्वितीया : शुक्ल पक्ष द्वितीय*
*9 -कार्तिक छठ पूजा*
*10- गोपाष्टमी*
*11 -अक्षय नवमी/ आँवला नवमी, जगदद्त्तात्री पूजा*
*12- देव उठनी एकादशी/ प्रबोधिनी*
*13 -तुलसी विवाह
*ठाकुर बांके बिहारी लाल की जय !!*


शरद पूर्णिमा क़ी बहुत बहुत शुभकामनाएं


चांद भी क्या खूब है,
न सर पर घूंघट है,
न चेहरे पे बुरका,

कभी करवाचौथ का हो गया,
तो कभी ईद का,
तो कभी ग्रहण का

अगर...

ज़मीन पर होता तो
टूटकर विवादों मे होता,
अदालत की सुनवाइयों में होता,
अखबार की सुर्ख़ियों में होता,

लेकीन....
शुक्र है आसमान में बादलों की गोद में है,
इसीलिए ज़मीन में
कविताओं और ग़ज़लों में महफूज़ है.।
 
शरद पूर्णिमा क़ी बहुत बहुत शुभकामनाएं....
🌔

अगर माफी मांगने से ही रिश्ते टूटने से बच जाए, तो माफ़ी मांग लेनी चाहिए


राधिका और नवीन को आज तलाक के कागज मिल गए थे। दोनो साथ ही कोर्ट से बाहर निकले। दोनो के परिजन साथ थे और उनके चेहरे पर विजय और सुकून के निशान साफ झलक रहे थे। चार साल की लंबी लड़ाई के बाद आज फैसला हो गया था।
दस साल हो गए थे शादी को मग़र साथ मे छः साल ही रह पाए थे।
चार साल तो तलाक की कार्यवाही में लग गए।
राधिका के हाथ मे दहेज के समान की लिस्ट थी जो अभी नवीन के घर से लेना था और नवीन के हाथ मे गहनों की लिस्ट थी जो राधिका से लेने थे।

साथ मे कोर्ट का यह आदेश भी था कि नवीन दस लाख रुपये की राशि एकमुश्त राधिका को चुकाएगा।

राधिका और नवीन दोनो एक ही टेम्पो में बैठकर नवीन के घर पहुंचे। दहेज में दिए समान की निशानदेही राधिका को करनी थी।
इसलिए चार वर्ष बाद ससुराल जा रही थी। आखरी बार बस उसके बाद कभी नही आना था उधर।

सभी परिजन अपने अपने घर जा चुके थे। बस तीन प्राणी बचे थे।नवीन, राधिका और राधिका की माता जी।

नवीन घर मे अकेला ही रहता था। मां-बाप और भाई आज भी गांव में ही रहते हैं।

राधिका और नवीन का इकलौता बेटा जो अभी सात वर्ष का है कोर्ट के फैसले के अनुसार बालिग होने तक वह राधिका के पास ही रहेगा। नवीन महीने में एक बार उससे मिल सकता है।
घर मे परिवेश करते ही पुरानी यादें ताज़ी हो गई। कितनी मेहनत से सजाया था इसको राधिका ने। एक एक चीज में उसकी जान बसी थी। सब कुछ उसकी आँखों के सामने बना था।एक एक ईंट से धीरे धीरे बनते घरोंदे को पूरा होते देखा था उसने।
सपनो का घर था उसका। कितनी शिद्दत से नवीन ने उसके सपने को पूरा किया था।
नवीन थकाहारा सा सोफे पर पसर गया। बोला "ले लो जो कुछ भी चाहिए मैं तुझे नही रोकूंगा"
राधिका ने अब गौर से नवीन को देखा। चार साल में कितना बदल गया है। बालों में सफेदी झांकने लगी है। शरीर पहले से आधा रह गया है। चार साल में चेहरे की रौनक गायब हो गई।

वह स्टोर रूम की तरफ बढ़ी जहाँ उसके दहेज का अधिकतर समान पड़ा था। सामान ओल्ड फैशन का था इसलिए कबाड़ की तरह स्टोर रूम में डाल दिया था। मिला भी कितना था उसको दहेज। प्रेम विवाह था दोनो का। घर वाले तो मजबूरी में साथ हुए थे।
प्रेम विवाह था तभी तो नजर लग गई किसी की। क्योंकि प्रेमी जोड़ी को हर कोई टूटता हुआ देखना चाहता है।
बस एक बार पीकर बहक गया था नवीन। हाथ उठा बैठा था उसपर। बस वो गुस्से में मायके चली गई थी।
फिर चला था लगाने सिखाने का दौर । इधर नवीन के भाई भाभी और उधर राधिका की माँ। नोबत कोर्ट तक जा पहुंची और तलाक हो गया।

न राधिका लोटी और न नवीन लाने गया।

राधिका की माँ बोली" कहाँ है तेरा सामान? इधर तो नही दिखता। बेच दिया होगा इस शराबी ने ?"

"चुप रहो माँ"
राधिका को न जाने क्यों नवीन को उसके मुँह पर शराबी कहना अच्छा नही लगा।

फिर स्टोर रूम में पड़े सामान को एक एक कर लिस्ट में मिलाया गया।
बाकी कमरों से भी लिस्ट का सामान उठा लिया गया।
राधिका ने सिर्फ अपना सामान लिया नवीन के समान को छुवा भी नही। फिर राधिका ने नवीन को गहनों से भरा बैग पकड़ा दिया।
नवीन ने बैग वापस राधिका को दे दिया " रखलो, मुझे नही चाहिए काम आएगें तेरे मुसीबत में ।"

गहनों की किम्मत 15 लाख से कम नही थी।
"क्यूँ, कोर्ट में तो तुम्हरा वकील कितनी दफा गहने-गहने चिल्ला रहा था"
"कोर्ट की बात कोर्ट में खत्म हो गई, राधिका। वहाँ तो मुझे भी दुनिया का सबसे बुरा जानवर और शराबी साबित किया गया है।"
सुनकर राधिका की माँ ने नाक भों चढ़ाई।

"नही चाहिए।
वो दस लाख भी नही चाहिए"

"क्यूँ?" कहकर नवीन सोफे से खड़ा हो गया।

"बस यूँ ही" राधिका ने मुँह फेर लिया।

"इतनी बड़ी जिंदगी पड़ी है कैसे काटोगी? ले जाओ,,, काम आएगें।"

इतना कह कर नवीन ने भी मुंह फेर लिया और दूसरे कमरे में चला गया। शायद आंखों में कुछ उमड़ा होगा जिसे छुपाना भी जरूरी था।

राधिका की माता जी गाड़ी वाले को फोन करने में व्यस्त थी।

राधिका को मौका मिल गया। वो नवीन के पीछे उस कमरे में चली गई।

वो रो रहा था। अजीब सा मुँह बना कर। जैसे भीतर के सैलाब को दबाने दबाने की जद्दोजहद कर रहा हो। राधिका ने उसे कभी रोते हुए नही देखा था। आज पहली बार देखा न जाने क्यों दिल को कुछ सुकून सा मिला।

मग़र ज्यादा भावुक नही हुई।

सधे अंदाज में बोली "इतनी फिक्र थी तो क्यों दिया तलाक?"

"मैंने नही तलाक तुमने दिया"

"दस्तखत तो तुमने भी किए"

"माफी नही माँग सकते थे?"

"मौका कब दिया तुम्हारे घर वालों ने। जब भी फोन किया काट दिया।"

"घर भी आ सकते थे"?

"हिम्मत नही थी?"

राधिका की माँ आ गई। वो उसका हाथ पकड़ कर बाहर ले गई। "अब क्यों मुँह लग रही है इसके? अब तो रिश्ता भी खत्म हो गया"

मां-बेटी बाहर बरामदे में सोफे पर बैठकर गाड़ी का इंतजार करने लगी।
राधिका के भीतर भी कुछ टूट रहा था। दिल बैठा जा रहा था। वो सुन्न सी पड़ती जा रही थी। जिस सोफे पर बैठी थी उसे गौर से देखने लगी। कैसे कैसे बचत कर के उसने और नवीन ने वो सोफा खरीदा था। पूरे शहर में घूमी तब यह पसन्द आया था।"

फिर उसकी नजर सामने तुलसी के सूखे पौधे पर गई। कितनी शिद्दत से देखभाल किया करती थी। उसके साथ तुलसी भी घर छोड़ गई।

घबराहट और बढ़ी तो वह फिर से उठ कर भीतर चली गई। माँ ने पीछे से पुकारा मग़र उसने अनसुना कर दिया। नवीन बेड पर उल्टे मुंह पड़ा था। एक बार तो उसे दया आई उस पर। मग़र वह जानती थी कि अब तो सब कुछ खत्म हो चुका है इसलिए उसे भावुक नही होना है।

उसने सरसरी नजर से कमरे को देखा। अस्त व्यस्त हो गया है पूरा कमरा। कहीं कंही तो मकड़ी के जाले झूल रहे हैं।

कितनी नफरत थी उसे मकड़ी के जालों से?

फिर उसकी नजर चारों और लगी उन फोटो पर गई जिनमे वो नवीन से लिपट कर मुस्करा रही थी।
कितने सुनहरे दिन थे वो।

इतने में माँ फिर आ गई। हाथ पकड़ कर फिर उसे बाहर ले गई।

बाहर गाड़ी आ गई थी। सामान गाड़ी में डाला जा रहा था। राधिका सुन सी बैठी थी। नवीन गाड़ी की आवाज सुनकर बाहर आ गया।
अचानक नवीन कान पकड़ कर घुटनो के बल बैठ गया।
बोला--" मत जाओ,,, माफ कर दो"
शायद यही वो शब्द थे जिन्हें सुनने के लिए चार साल से तड़प रही थी। सब्र के सारे बांध एक साथ टूट गए। राधिका ने कोर्ट के फैसले का कागज निकाला और फाड़ दिया ।
और मां कुछ कहती उससे पहले ही लिपट गई नवीन से। साथ मे दोनो बुरी तरह रोते जा रहे थे।
दूर खड़ी राधिका की माँ समझ गई कि
कोर्ट का आदेश दिलों के सामने कागज से ज्यादा कुछ नही।
काश उनको पहले मिलने दिया होता?

अगर माफी मांगने से ही रिश्ते टूटने से बच जाए, तो माफ़ी मांग लेनी चाहिए.

मंगलवार, 19 अक्तूबर 2021

सुंदरकांड में एक प्रसंग अवश्य पढ़ें !**“मैं न होता, तो क्या होता?”*

*सुंदरकांड में एक प्रसंग अवश्य पढ़ें !*
*“मैं न होता, तो क्या होता?”*
“अशोक वाटिका" में *जिस समय रावण क्रोध में भरकर, तलवार लेकर, सीता माँ को मारने के लिए दौड़ पड़ा* तब हनुमान जी को लगा, कि इसकी तलवार छीन कर, इसका सर काट लेना चाहिये !
किन्तु अगले ही क्षण, उन्होंने देखा कि
*"मंदोदरी" ने रावण का हाथ पकड़ लिया !* यह देखकर वे गदगद हो गये ! वे सोचने लगे, यदि मैं आगे बड़ता तो मुझे भ्रम हो जाता कि *यदि मैं न होता, तो सीता जी को कौन बचाता ?*
बहुधा हमें भी ऐसा ही भ्रम हो जाता है, मैं न होता, तो क्या होता ? 
परन्तु ये क्या हुआ ? सीताजी को बचाने का कार्य प्रभु ने रावण की पत्नी को ही सौंप दिया ! तब हनुमान जी समझ गये, *कि प्रभु जिससे जो कार्य लेना चाहते हैं, वह उसी से लेते हैं !*
आगे चलकर जब "त्रिजटा" ने कहा कि "लंका में बंदर आया हुआ है, और वह लंका जलायेगा !" तो हनुमान जी बड़ी चिंता मे पड़ गये, कि प्रभु ने तो लंका जलाने के लिए कहा ही नहीं है I *और त्रिजटा कह रही है कि उन्होंने स्वप्न में देखा है, एक वानर ने लंका जलाई है ! अब उन्हें क्या करना चाहिए ? जो प्रभु इच्छा !*
जब रावण के सैनिक तलवार लेकर हनुमान जी को मारने के लिये दौड़े, तो हनुमान जी ने अपने को बचाने की तनिक भी चेष्टा नहीं की, और जब "विभीषण" ने आकर कहा कि दूत को मारना अनीति है, तो *हनुमान जी समझ गये कि मुझे बचाने के लिये प्रभु ने यह उपाय कर दिया है !*
आश्चर्य की पराकाष्ठा तो तब हुई, जब रावण ने कहा कि बंदर को मारा नहीं जायेगा, पर पूंछ में कपड़ा लपेट कर, घी डालकर, आग लगाई जाये, तो हनुमान जी सोचने लगे कि लंका वाली त्रिजटा की बात सच थी, वरना लंका को जलाने के लिए मैं कहां से घी, तेल, कपड़ा लाता, और कहां आग ढूंढता ? पर वह प्रबन्ध भी आपने रावण से करा दिया ! जब आप रावण से भी अपना काम करा लेते हैं, तो *मुझसे करा लेने में आश्चर्य की क्या बात है !*
इसलिये *सदैव याद रखें,* कि *संसार में जो हो रहा है, वह सब ईश्वरीय विधान है ! * हम और आप तो केवल निमित्त मात्र हैं ! इसीलिये *कभी भी ये भ्रम न पालें* कि...
*मैं न होता, तो क्या होता ?*
*ना मैं श्रेष्ठ हूँ,*
*ना ही मैं ख़ास हूँ,*
*मैं तो बस एक छोटा सा भगवान का दास  हूँ ॥*
हृदयसम्राट, हम सबके के चहेते, हरदिल अजीज, परम् प्रतापी, महान चक्रवर्ती, उदार हृदय, महारथी, शक्तिशाली, बलशाली, प्रभावशाली, धैर्यशाली, सुंदर, सुशील, सहनशील, क्षमाशील, रूपवान, बलवान, ईमानदार, विद्वान, बुद्धिमान, गुणवान, महान, ऐश्वर्यवान, विचारवान, पराक्रमी, तेजस्वी, ओजस्वी, मनस्वी, महावीर, शूरवीर, धर्मवीर, कर्मवीर, सर्वज्ञाता, सर्वशक्तिमान, सर्वगुणसम्पन्न, सर्वेश्वर, सर्वाधार, सर्वोत्तम, सर्वज्ञ, कल्याणकारी, न्यायकारी, हितकारी, ब्रह्मचारी, सदाचारी, दयालु, अजन्मा, अनादि, अनन्त, अनुपम, आदर्श, अजर, अमर, अविनाशी, , शुद्ध, पवित्र, शांत, दयासागर, सुखदाता, सर्वतेजोमय, तपोमय, दुःख विनाशक, शत्रु संहारक, लंगोट के पक्के संयमी त्यागी महापुरुष , उत्सव आयोजन में सबसे अग्रणी को जन्मदिन की ताबड़तोड़ बधाई 💐💐💐💐
🎂🎂🎂 Happy Birthday 🎉🎂🎉

भारत' को गाली देने वाले सभी सूअरों को समर्पित

#सुअर ...
एक आदमी अपने सुअर के साथ नाव में यात्रा कर रहा था।
 उस नाव में अन्य यात्रियों के साथ एक दार्शनिक भी था।
 सुअर ने पहले कभी नाव में यात्रा नहीं की थी, इसलिए वह सहज महसूस नहीं कर रहा था।
 ऊपर और नीचे जा रहा था, किसी को चैन से बैठने नहीं दे रहा था।
 नाविक इससे परेशान था और चिंतित था कि यात्रियों की दहशत के कारण नाव डूब जाएगी।
 अगर सुअर शांत नहीं हुआ तो वह नाव को डुबो देगा।
 वह आदमी स्थिति से परेशान था, लेकिन सुअर को शांत करने का कोई उपाय नहीं खोज सका।
 दार्शनिक ने यह सब देखा और मदद करने का फैसला किया।
 उसने कहा: "यदि आप अनुमति दें, तो मैं इस सुअर को घर की बिल्ली की तरह शांत कर सकता हूँ।"
 वह आदमी तुरंत राजी हो गया।
 दार्शनिक ने दो यात्रियों की मदद से सुअर को उठाया और नदी में फेंक दिया।
 सुअर ने तैरते रहने के लिए ज़ोर-ज़ोर से तैरना शुरू कर दिया।
 यह अब मर रहा था और अपने जीवन के लिए संघर्ष कर रहा था।
 कुछ समय बाद, दार्शनिक ने सुअर को वापस नाव में खींच लिया।
 सुअर चुप था और एक कोने में जाकर बैठ गया।
 सुअर के बदले हुए व्यवहार से वह आदमी और सभी यात्री हैरान रह गए।
 उस आदमी ने दार्शनिक से पूछा: "पहले तो यह ऊपर और नीचे कूद रहा था। अब यह पालतू बिल्ली की तरह बैठा है। क्यों?"

 दार्शनिक ने कहा: "बिना स्वाद चखे किसी को दूसरे के दुर्भाग्य का एहसास नहीं होता है। जब मैंने इस सुअर को पानी में फेंक दिया, तो यह पानी की शक्ति और नाव की उपयोगिता को समझ गया।"

 भारत में ऊपर-नीचे कूदने वाले सूअरों को 6 महीने के लिए उत्तर कोरिया, अफगानिस्तान, सोमालिया, दक्षिण सूडान, सीरिया, इराक या पाकिस्तान या यहां तक ​​कि चीन में फेंक दिया जाना चाहिए, फिर भारत आने पर वे पालतू बिल्ली की तरह अपने आप शांत हो जाएंगे।  और एक कोने में पड़े रहेंगे।
 भारत' को गाली देने वाले सभी सूअरों को समर्पित

🙏 जय हिंद जय भारत 🙏

गया से आठ गुना फलदायी ब्रह्मकपाल है,शिवजी को भी यहीं मिली थी , पाप से मुक्ति

अंतिम मुक्तिदाता है ब्रह्मकपाल
●●●●●●●●●●●●●●●●●●●

गया से आठ गुना फलदायी ब्रह्मकपाल है,शिवजी को भी यहीं मिली थी , पाप से मुक्ति 

बद्रीनाथ धाम के तट पर बहती अलखनंदा में ब्रह्मकपाल के बाद मृत आत्माओं को मोक्ष मिल जाता है । इसके बाद कहीं भी कोई पितरों के लिए पिंडदान कराने की आवश्यकता नहीं होती है। सिर्फ श्राद्ध पक्ष में उनकी मृत्यु की तिथि पर किसी ब्राह्मण को भोजन कराना  होता है। पिंडदान के लिए भारतवर्ष क्या दुनियाँ भर से हिंदू भले ही प्रसिद्ध गया पहुँचते हों लेकिन  एक तीर्थ ऐसा भी है जहाँ पर किया पिंडदान गया से भी आठ गुणा फलदायी है। 

यही नहीं इसी तीर्थ स्थल पर भगवा‌न शिव को भी ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति मिली थी। चारों धामों में प्रमुख उत्तराखंड के बदरीनाथ के पास स्थित ब्रह्मकपाल के बारे में मान्यता है कि यहाँ पर पिंडदान करने से पितरों की आत्मा को नरकलोक से मुक्ति मिल जाती है। 

गया से अधिक महत्व है ब्रह्म कपाल का
●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●
स्कंद पुराण में ब्रह्मकपाल को गया से आठ गुणा अधिक फलदायी पितरकारक तीर्थ कहा गया है। 

सृष्टि की उत्पत्ति के समय जब तीन देवों में एक ब्रह्मा, माँ सरस्वती के रुप पर मोहित हो गए तो भोलेनाथ ने गुस्से में आकर ब्रह्मा के पांच सिरों में से एक को त्रिशूल के काट दिया। लेकिन ब्रह्या का सिर त्रिशूल पर ही चिपक गया। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि शिव पर ब्रह्म हत्या का पाप लग गया था। ब्रह्मा की हत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए जब भोलेनाथ पृथ्वी लोक के भ्रमण पर गए तो बदरीनाथ से पांच सौ मीटर की दूरी पर त्रिशूल से ब्रह्मा का सिर जमीन पर गिर गया तभी से यह स्थान ब्रह्मकपाल के रुप में प्रसिद्ध हुआ। शिव जी ने इस स्थान को वरदान दिया कि यहाँ पर जो व्यक्ति श्राद्ध करेगा उसे प्रेत योनी में नहीं जाना पड़ेगा एवं उनके कई पीढ़ियों के पितरों को मुक्ति मिल जाएगी।

भगवान श्री कृष्ण ने महाभारत युद्घ समाप्त होने के बाद पाण्डवों को ब्रह्मकपाल में आकर पितरों का श्राद्घ करने का निर्देश दिया था। इसका कारण यह था कि महाभारत युद्घ में लाखों की संख्या में लोगों की मृत्यु हुई थी। कई लोगों का विधि पूर्वक अंतिम संस्कार भी नहीं हो पाया था। ऐसे में अतृप्त आत्माओं को संतुष्ट करना आवश्यक हो गया था। इसलिए भगवान श्री कृष्ण की आज्ञा मानकर पाण्डव बद्रीनाथ की शरण में आए और ब्रह्मकपाल में पितरों एवं युद्घ में मारे गए व्यक्तियों के लिए श्राद्घ किया। 

कहाँ है ब्रह्म कपाल
●●●●●●●●●●●●●
पुराणों में बताया गया है कि उत्तराखंड की धरती पर भगवान बद्रीनाथ के चरणों में बसा है ब्रह्म कपाल। अलकनंदा नदी ब्रह्मकपाल को पवित्र करती हुई यहाँ से प्रवाहित होती है। इस स्थान के विषय में मान्यता है कि इस स्थान पर जिस व्यक्ति का श्राद्ध कर्म होता है उसे प्रेत योनी से तत्काल मुक्ति मिल जाती है और भगवान विष्णु के परमधाम में उसे स्थान प्राप्त हो जाता है। जिस व्यक्ति की अकाल मृत्यु होती है उसकी आत्मा व्याकुल होकर भटकती रहती है। ब्रह्म कपाल में अकाल मृत्यु प्राप्त व्यक्ति का श्राद्ध करने से आत्मा को तत्काल शांति और प्रेत योनी से मुक्ति मिल जाती है।

पितरों की मुक्ति हेतु किए जाने वाले कर्म तर्पण, भोज और पिंडदान को उचित रीति से नदी के किनारे किया जाता है। इसके लिए देश में कुछ खास स्थान नियुक्त हैं। देश में श्राद्ध पक्ष के लिए लगभग 55 स्थानों को महत्वपूर्ण माना गया है।

परंतु तर्पण पिंडदान हेतु उज्जैन (मध्यप्रदेश), लोहानगर (राजस्थान), प्रयाग (उत्तर प्रदेश), हरिद्वार (उत्तराखंड), पिण्डारक (गुजरात), नासिक (महाराष्ट्र), गया (बिहार), ब्रह्मकपाल (उत्तराखंड), मेघंकर (महाराष्ट्र), लक्ष्मण बाण (कर्नाटक), पुष्कर (राजस्थान), काशी (उत्तर प्रदेश) को प्रमुख माना जाता है। 

सार-संग्रह
●●●●●●●●
कहते हैं कि गया में श्राद्ध करने के उपरांत अंतिम श्राद्ध उत्तरखंड के बदरीकाश्रम क्षेत्र के 'ब्रह्मकपाली' में किया जाता है। गया के बाद सबसे महत्वपूर्ण स्थान है।
कहते हैं जिन पितरों को गया में मुक्ति नहीं मिलती या अन्य किसी और स्थान पर मुक्ति नहीं मिलती उनका यहां पर श्राद्ध करने से मुक्ति मिल जाती है। यह स्थान बद्रीनाथ धाम के पास अलकनंदा नदी के तट पर स्थित है।

पांडवों ने भी अपने परिजनों की आत्म शांति के लिए यहां पर पिंडदान किया था। श्रीमद् भागवत महापुराण अनुसार युद्ध अपने बंधु-बांधवों की हत्या करने पर पांडवों को गोत्र हत्या का पाप लगा था। गोत्र हत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए स्वर्गारोहिणी यात्रा पर जाते हुए पांडवों ने ब्रह्मकपाल में ही अपने पितरों को तर्पण किया था।

पुराणों के अनुसार यह स्थान महान तपस्वियों और पवित्र आत्माओं का है। श्रीमद्भागवत पुराण अनुसार यहां सूक्ष्म रूप में महान आत्माएं निवासरत हैं।
ब्रह्म कपाली में किया जाने वाला पिंडदान आखिरी माना जाता है। इसके बाद उक्त पूर्वज के निमित्त‍ किसी भी तरह का पिंडदान या श्राद्ध कर्म नहीं किया जाता है।
ऐसा माना जाता है कि भगवान ब्रह्मा, ब्रह्मा कपाल के रूप में निवास करते हैं। किसी काल में ब्रह्मा के पांच सिर थे उसमें से एक सिर कटकर यहीं गिरा था। अलकनंदा नदी के तट पर ब्रह्माजी के सिर के आकार की शिला आज भी विद्यमान है।

हर वर्ष पितृपक्ष में भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से लेकर आश्विन कृष्ण अमावस्या तक पितृपक्ष के दौरान यहां भीड़ रहती है।

ब्रह्मकपाल को पितरों की मोक्ष प्राप्ति का सर्वोच्च तीर्थ (महातीर्थ) कहा गया है। पुराणों में उल्लेख है कि ब्रह्मकपाल में पिंडदान करने के बाद फिर कहीं पिंडदान की आवश्यकता नहीं रह जाती।

स्कंद पुराण अनुसार पिंडदान के लिए गया, पुष्कर, हरिद्वार, प्रयागराज व काशी भी श्रेयस्कर हैं, लेकिन भू-वैकुंठ बदरीनाथ धाम स्थित ब्रह्मकपाल में किया गया पिंडदान इन सबसे आठ गुणा ज्यादा फलदायी है।
ब्रह्म कपाल पर ही शिव को ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति मिली थी, क्योंकि उन्होंने ही ब्रह्मा का पांचवां सिर काट दिया था।

पुराणों अनुसार ब्रह्मज्ञान, गयाश्राद्ध, गोशाला में मृत्यु तथा कुरुक्षेत्र में निवास- ये चारों मुक्ति के साधन हैं- गया में श्राद्ध करने से ब्रह्महत्या, सुरापान, स्वर्ण की चोरी, गुरुपत्नीगमन और उक्त संसर्ग-जनित सभी महापातक नष्ट हो जाते हैं।

#बेटी ही असली वारिस :-

#बेटी ही असली वारिस :-

एक इलाके में एक भले आदमी का देहांत हो गया था, लोग अर्थी ले जाने को तैयार हुये और जब उठाकर श्मशान ले जाने लगे तो एक आदमी आगे आया और अर्थी का एक पाऊं पकड़ लिया और बोला की मरने वाले से मेरे 15 लाख लेने है,पहले मुझे पैसे दो फिर उसको जाने दूंगा जी। 
सब लोग खड़े तमाशा देख रहे थे,  बेटों ने कहा कि मरने से पहले पिता जी ने हमें तो पैसे लेने की कोई ऐसी बात  नहीं बताई कि वह कर्जदार है, इसलिए हम नही दे सकतें ।
इसके बाद मृतक के भाइयों ने कहा के जब बेटे को ही पता नहीं कर्ज का तो हम जिम्मेदार क्यों ? जब ये ही नही दे रहे तो हम क्यों दें। 
अब सभी लोग खड़े है और उसने अर्थी पकड़ी हुई है, जब काफ़ी देर गुज़र गई तो बात घर की औरतों तक भी पहुंच गई। मरने वाले कि एकलौती बेटी ने जब बात सुनी तो फौरन अपना सारा ज़ेवर उतारा और अपनी सारी नक़द रकम जमा करके उस आदमी के लिए दे दी और उससे कहा कि अभी मेरे पास ये ये ही तकड पैसे है और कुछ ज़ेवर है इनको रख लो बाद में मैं आपका सभी कर्ज  चुका दूँगी जी परन्तु अभी आप मेरे पिताजी की अंतिम यात्रा को ना रोको , जितना भी कर्ज हो तो वह उसे भी चुका देगी लेकिन इस समय उसके पिता जी की अर्थी को जाने दीजियेगा ऐसा बोली। 
मैं मरने से पहले सारा कर्ज़ अदा कर दूंगी और बाकी रकम का जल्दी बंदोबस्त कर दूंगी।
अब वह अर्थी पकड़ने वाला शख्स खड़ा हुआ और सारे लोगो से मुखातिब हो कर बोला कि  रुकावट के लिए सभी से माफी चाहता हूँ  असल बात ये है कि मरने वाले से 15 लाख लेने नहीं है बल्कि उनके देने है और उनके किसी वारिस को मैं नहीं जानता था तो मैंने ये खेल खेला,क्योंकि 15 लाख ₹ के लिए ना जाने कितने लोग खड़े जो जाते जी ये अब मुझे पता चल चुका है कि उसकी वारिस एक बेटी है और उसका कोई बेटा या भाई नही है जी।

मत मारो तुम कोख में इसको
इसे सुंदर जग में आने दो,
छोड़ो तुम अपनी सोच ये छोटी 
एक माँ को ख़ुशी मनाने दो,
बेटी के आने पर अब तुम
घी के दिये जलाओ,
आज ये संदेशा पूरे जग में फैलाओ
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ।

प्लीज़.....VOTE_for YOGI JI..

कल गर्लफ्रेंड की शादी थी,

रोते-रोते उसने कार्ड दिया था,

तो 

मैं रिसेप्शन में जा पहुँचा ! 

वहाँ गेट पर उसके पापा मिले! 

मुझे देख वो हीरोपंती फ़िल्म के प्रकाश राज के जैसे थोड़ा सकपका गए,

उन्हें लगा शायद मैं कुछ ऐसी-वैसी हरकत न कर दूँ,

कि उनकी बेटी की शादी में कुछ ख़लल पड़े! 

उनके चेहरे की रंगत देख मैं समझ गया 

और 

उनके पाँव छूकर कहा -"आप बेफ़िक्र रहें,मैं सिर्फ़ बधाई दे चला जाऊँगा!"
स्टेज़ पर जा कर मैंने बनावटी मुस्कान वाली शक़्ल बनाई,

गम छुपाया और अपनी गर्लफ्रेंड और उसके पति को विश किया,

फिर वापस जाने के लिए गेट की तरफ बढ़ गया! 

अचानक उसके पापा ने मेरा हाथ पकड़ा 
और मुझे वहाँ से साईड ले जा के बोले,
"तुमसे अच्छा लड़का नहीं मिलता बेटा, 
लेकिन क्या करें जात समाज के बंधन। 
तुम तो समझदार हो बेटा, 
तुम्हें खोने का दुःख मुझे, और मेरे परिवार को हमेशा रहेगा।।"

इतना कहते  हुए उनका गला भर आया,वो रोने लगे!

मैंने उन्हें कहा, "देखिए अंकल! 

जो हुआ,अब उसे बदल नहीं सकते,

फिर ये आँसू बहाने का क्या मतलब? 

तो जाने दीजिए इन बातों को!!! 

लेकिन ध्यान रखिए अगले छः महीनें में

हमारे यहाँ विधानसभा के लिए मतदान है, 

और एक बार फिर हमें योगीजी को दोबारा मुख्यमंत्री पद पर बैठने का मौका देना है। 

आपने जात पात के चक्कर में मुझ जैसे होनहार को खो दिया चलता है, लेकिन इस बार योगीजी को खो दोगे तो फिर जीवन भर पछताना पड़ेगा। 

सो प्लीज़.....

VOTE_for YOGI JI..
🚩🚩🙏🏼🙏🏼
दुल्हन विदाई का समय था ।
माहौल गमगीन था ।
🙄
पिता ने अपनी दुल्हन बेटी के सर पर हाथ फेरा ।
दुल्हन ने अपने पिता के हाथ में कुछ सामान रखा ।
😉
सब लोग अचंभित थे , ये क्या?
ये कैसा सामान है और
बेटी पिता को कुछ दे कर जा रही है ??
ये तो उल्टा रिवाज हो रहा है ।
🙄
पिता ने माहौल की गम्भीरता को भांप लिया ।
उन्होंने सब के सामने मुखातिब होते हुए कहा,
'आप लोग चौंकिये मत, आज मैं बहुत खुश हूँ , आख़िरकार आज मेरी बेटी मेरा
😘
"'क्रेडिट कार्ड" और "चैकबुक" लौटा रही है  ☺
😉
सभी लोग ठहाका मारकर जोरो से हंस पड़े ,
पर एक शख्स बिल्कुल "खामोश" खड़ा था .....
🙄
वह था "दूल्हा"...!!!

सबसे_बड़ा_सच_मौत

#सबसे_बड़ा_सच_मौत

माइकल जैक्सन डेढ़ सौ साल जीना चाहता था! किसी के साथ हाथ मिलाने से पहले दस्ताने पहनता था! लोगों के बीच में जाने से पहले मुंह पर मास्क लगाता था !उसकी देखरेख करने के लिए उसने अपने घर पर 12 डॉक्टर्स नियुक्त किए हुए थे !

जो उसके सर के बाल से लेकर पांव के नाखून तक की जांच प्रतिदिन किया करते थे! उसका खाना लैबोरेट्री में चेक होने के बाद उसे खिलाया जाता था! उसको व्यायाम करवाने के लिए 15 लोगों को रखा हुआ था! माइकल जैकसन अश्वेत था उसने 1987 में प्लास्टिक सर्जरी करवा कर अपनी त्वचा को गोरा बनवा लिया था!

अपने काले मां-बाप और काले दोस्तों को भी छोड़ दिया गोरा होने के बाद उसने गोरे मां-बाप को किराए पर लिया! और अपने दोस्त भी गोरे बनाए शादी भी गोरी औरतों के साथ की!

नवम्बर 15 को माइकल ने अपनी नर्स डेबी रो से विवाह किया, जिसने प्रिंस माइकल जैक्सन जूनियर (1997) तथा पेरिस माइकल केथरीन (3 अपैल 1998) को जन्म दिया।

18 मई 1995 में किंग ऑफ पॉप ने रॉक के शहजादे एल्विस प्रेस्ली की बेटी लिसा प्रेस्ली से शादी कर ली। एमटीवी वीडियो म्यूजिक अवॉर्ड्स में इस जोड़ी के ऑनस्टेज किस ने बहुत सुर्खियाँ बटोरी! हालाँकि यह जोडी सिर्फ दो साल तक ही साथ रह पाई और 18 जून 1996 में माइकल और लिसा ने तलाक ले लिया।

वो डेढ़ सौ साल तक जीने के लक्ष्य को लेकर चल रहा था! हमेशा ऑक्सीजन वाले बेड पर सोता था,उसने अपने लिए अंगदान करने वाले डोनर भी तैयार कर रखे थे! जिन्हें वह खर्चा देता था,ताकि समय आने पर उसे किडनी, फेफड़े, आंखें या किसी भी शरीर के अन्य अंग की जरूरत पड़ने पर वह आकर दे दे।

उसको लगता था वह पैसे और अपने रसूख की बदौलत मौत को भी चकमा दे सकता है लेकिन वह गलत साबित हुआ 25 जून 2009 को उसके दिल की धड़कन रुकने लगी उसके घर पर 12 डॉक्टर की मौजूदगी मैं हालत काबू में नहीं आए, सारे शहर के डाक्टर उसके घर पर जमा हो गए वह भी उसे नहीं बचा पाए।

उसने 25 साल तक बिना डॉक्टर से पूछे कुछ नहीं खाया! अंत समय में उसकी हालत बहुत खराब हो गई थी 50 साल तक आते-आते वह पतन के करीब ही पहुंच गया था! लगभग उसने बच्चों का यौन शोषण किया वह घटिया हरकतों पर उतर आया था! और 25 जून 2009 को वह इस दुनिया से चला गया जिसने जिसने अपने लिए डेढ़ सौ साल जीने इंतजाम कर रखा था!उसका इंतजाम धरा का धरा रह गया!

जब उसकी बॉडी का पोस्टमार्टम हुआ तो डॉक्टर ने बताया! कि उसका शरीर हड्डियों का ढांचा बन चुका था! उसका सिर गंजा था उसकी पसलियां कंधे हड्डियां टूट चुके थे! उसके शरीर पर अनगिनत सुई के निशान थे प्लास्टिक सर्जरी के कारण होने वाले दर्द से छुटकारा पाने के लिए एंटीबायोटिक वाले दर्जनों इंजेक्शन उसे दिन में लेने पड़ते थे!

माइकल जैक्सन की अंतिम यात्रा को 2.5 अरब लोगो ने लाइव देखा था। यह अब तक की सबसे ज़्यादा देखे जाने वाली लाइव ब्रॉडकास्ट हैं।

माइकल जैक्सन की मृत्यु के दिन यानी 25 जून 2009 को 3:15 PM पर, Wikipedia,Twitter और AOL’s instant messenger यह सभी क्रैश हो गए थे।

उसकी मौत की खबर का पता चलता है गूगल पर 8 लाख लोगों ने माइकल जैकसन को सर्च किया! ज्यादा सर्च होने के कारण गूगल पर सबसे बड़ा ट्रैफिक जाम हुआ था! और गूगल क्रैश हो गया ढाई घंटे तक गूगल काम नहीं कर पाया!

मौत को चकमा देने की सोचने वाले हमेशा मौत से चकमा खा ही जाते हैं! सार यही है,बनावटी दुनिया के बनावटी लोग कुदरती मौत की बजाय बनावटी मौत ही मरते हैं!

-क्यों करते हो गुरुर अपने चार दिन के ठाठ पर ,

-मुठ्ठी भी खाली रहेंगी जब पहुँचोगे घाट पर✍

upyog karne se pahle vaidh se salai jaroor le

*पीपल*

💚अकेला ऐसा पौधा जो दिन और रात दोनो समय आक्सीजन देता है

💛पीपल के ताजा 6-7 पत्ते लेकर 400 ग्राम पानी मे डालकर 100 ग्राम रहने तक उबाले,ठंडा होने पर पिए ब्रर्तन स्टील और एल्युमिनियम का नहीं हो, आपका ह्रदय एक ही दिन में ठीक होना शुरू हो जाएगा

💛पीपल के पत्तो पर भोजन करे, लीवर ठीक हो जाता है

💛पीपल के सूखे पत्तों का पाउडर बनाकर आधा चम्मच गुड़ में मिलाकर सुबह दोपहर शाम खायेँ, किंतना भी पुराना दमा ठीक कर देता है

💛पीपल के ताजा 4-5 पत्ते लेकर पीसकर पानी मे मिलाकर पिलाये,1- 2 बार मे ही पीलिया में आराम देना शुरू कर देता है

💛पीपल की छाल को गंगाजल में घिसकर घाव में लगाये तुरंत आराम देता है

💛पीपल की छाल को खांड (चीनी )मिलाकर दिन में 5-6 बार चूसे, कोई भी नशा छूट जाता है

💛पीपल के पत्तों का काढ़ा पिये, फेफड़ो, दिल ,अमाशय और लीवर के सभी रोग ठीक कर देता है

💛पीपल के पत्तों का काढ़ा बनाकर पिये, किडनी के रोग ठीक कर देता है व पथरी को तोड़कर बाहर करता है

💛किंतना भी डिप्रेशन हो, पीपल के पेड़ के नीचे जाकर रोज 30 मिनट बैठिए डिप्रेशन खत्म कर देता है

💛पीपल की फल और ताजा कोपले लेकर बराबर मात्रा में लेकर पीसकर सुखाकर खांड मिलाकर दिन में 2 बार ले, महिलाओ के गर्भशाय और मासिक समय के सभी रोग ठीक करता है

💛पीपल का फल और ताजा कोपले लेकर बराबर मात्रा में लेकर पीसकर सुखाकर खांड मिलाकर दिन में 2 बार ले, बच्चो का तुतलाना ठीक कर देता है और दिमाग बहुत तेज करता है

💛जिन बच्चो में हाइपर एक्टिविटी होती है, जो बच्चे दिनभर रातभर दौड़ते भागते है सोते कम है, पीपल के पेड़ के नीचे बैठाइए सब ठीक कर देता है

💛किंतना भी पुराना घुटनो का दर्द हो, पीपल के नीचे बैठे 30-45 दिन में सब खत्म हो जाएगा

💛शरीर मे कही से भी खून आये, महिलाओ को मासिक समय मे रक्त अधिक आता हो, बाबासीर में रक्त आता हो, दांत निकलवाने पर रक्त आये ,चोट लग जाये, 8-10 पत्ते पीसकर,छानकर पी जाएं, तुंरत रक्त का बहना बंद कर देता है

💛शरीर मे कही भी सूजन हो, दर्द हो, पीपल के पत्तों को गर्म करके बांध दे, ठीक हो जायेगे

Gazal likhane Wale Ko Dil Se Salam

एक ग़ज़ल
-------
ख़ुश रहे वो भी, जो कहते हैं दुआ कुछ भी नहीं

बूंद में  अटकी  हवा  है, बुलबुला कुछ भी नहीं
किस क़दर मग़रूर है, जैसे ख़ुदा कुछ भी नहीं

हम  किसी  के ऐब  का  सागर खंगालें किसलिए
आज तक इन ग़ोताखोरों को मिला कुछ भी नहीं

मुठ्ठी  बांधे  आए  थे  हम,  मुठ्ठी  खोले  जाएंगे
ये समझ लो तो समझने को बचा कुछ भी नहीं

हौसला,   पक्का,   इरादा और मंज़िल   का   जुनूँ
इनके आगे मुश्किलों का सिलसिला कुछ भी नहीं

आपको जाना है आगे अपनी मंज़िल की तरफ
पीछे  मुड़  कर  देखने से फायदा कुछ भी नहीं

व्यक्ति पूजा की बदौलत कुछ फ़रिश्ते बन गए 
असलियत में आदमियत से बड़ा कुछ भी नहीं

होने   को  लुकमान  जैसे  हो  गए  कितने हक़ीम
मग़रुरियत के मर्ज़ की लेकिन दवा कुछ भी नहीं

*बहुत बड़ा फर्क हैं "अहंकार" और "संस्कार" में,**"अहंकार" में हम दूसरों को झुकाकर खुश होते हैं* *और संस्कार"में हम झुककर खुश होते हैं.. .......*

भारत के महानतम शाषकों में चन्द्रगुप्त मौर्य का नाम लिया जा सकता है । चन्द्रगुप्त मौर्य के काल में ही यूनानी यात्री मेगास्थनीज ने भारत की यात्रा की थी और यूनानी इतिहास में चन्द्रगुप्त मौर्य का वर्णन महानतम राजा के रूप में किया गया है । मौर्य किस जाति के थे मतभेद हो सकता है लेकिन अंतिम समय जैन संत के रूप में समाधि पूर्वक मरण हुआ,जैन तीर्थ श्रवणबेलगोला कर्नाटक में समाधि स्थित है । और जिस पहाड़ी पर समाधिमरण हुआ उस पहाड़ी का नाम चंद्रगिरी पर्वत है । इतिहास की किताबें लुटेरो, आक्रांतओं से भरी पङी हैं ।अपने महानतम पूर्वजों के लिए किताबों में स्थान कम ही है। श्रवणबेलगोला चन्द्रगुप्त मौर्य का समाधिस्थल

सोमवार, 18 अक्तूबर 2021

केदारनाथ को क्यों कहते हैं ‘जागृत महादेव’ ?,


*" केदारनाथ को क्यों कहते हैं ‘जागृत महादेव’ ?, दो मिनट की ये कहानी रौंगटे खड़े कर देगी "*
*एक बार एक शिव-भक्त अपने गांव से केदारनाथ धाम की यात्रा पर निकला। पहले यातायात की सुविधाएँ तो थी नहीं, वह पैदल ही निकल पड़ा। रास्ते में जो भी मिलता केदारनाथ का मार्ग पूछ लेता। मन में भगवान शिव का ध्यान करता रहता। चलते चलते उसको महीनो बीत गए।* *आखिरकार एक दिन वह केदार धाम पहुच ही गया। केदारनाथ में मंदिर के द्वार 6 महीने खुलते है और 6 महीने बंद रहते है। वह उस समय पर पहुचा जब मन्दिर के द्वार बंद हो रहे थे। पंडित जी को उसने बताया वह बहुत दूर से महीनो की यात्रा करके आया है। पंडित जी से प्रार्थना की - कृपा कर के दरवाजे खोलकर प्रभु के दर्शन करवा दीजिये । लेकिन वहां का तो नियम है एक बार बंद तो बंद। नियम तो नियम होता है। वह बहुत रोया। बार-बार भगवन शिव को याद किया कि प्रभु बस एक बार दर्शन करा दो। वह प्रार्थना कर रहा था सभी से, लेकिन किसी ने भी नही सुनी।*
 *पंडित जी बोले अब यहाँ 6 महीने बाद आना, 6 महीने बाद यहा के दरवाजे खुलेंगे। यहाँ 6 महीने बर्फ और ढंड पड़ती है। और सभी जन वहा से चले गये। वह वही पर रोता रहा। रोते-रोते रात होने लगी चारो तरफ अँधेरा हो गया। लेकिन उसे विस्वास था अपने शिव पर कि वो जरुर कृपा करेगे। उसे बहुत भुख और प्यास भी लग रही थी। उसने किसी की आने की आहट सुनी। देखा एक सन्यासी बाबा उसकी ओर आ रहा है। वह सन्यासी बाबा उस के पास आया और पास में बैठ गया। पूछा - बेटा कहाँ से आये हो ?* *उस ने सारा हाल सुना दिया और बोला मेरा आना यहाँ पर व्यर्थ हो गया बाबा जी। बाबा जी ने उसे समझाया और खाना भी दिया। और फिर बहुत देर तक बाबा उससे बाते करते रहे। बाबा जी को उस पर दया आ गयी। वह बोले, बेटा मुझे लगता है, सुबह मन्दिर जरुर खुलेगा। तुम दर्शन जरुर करोगे।*
 *बातों-बातों में इस भक्त को ना जाने कब नींद आ गयी। सूर्य के मद्धिम प्रकाश के साथ भक्त की आँख खुली। उसने इधर उधर बाबा को देखा, किन्तु वह कहीं नहीं थे । इससे पहले कि वह कुछ समझ पाता उसने देखा पंडित जी आ रहे है अपनी पूरी मंडली के साथ। उस ने पंडित को प्रणाम किया और बोला - कल आप ने तो कहा था मन्दिर 6 महीने बाद खुलेगा ? और इस बीच कोई नहीं आएगा यहाँ, लेकिन आप तो सुबह ही आ गये। पंडित जी ने उसे गौर से देखा, पहचानने की कोशिश की और पुछा - तुम वही हो जो मंदिर का द्वार बंद होने पर आये थे ? जो मुझे मिले थे। 6 महीने होते ही वापस आ गए ! उस आदमी ने आश्चर्य से कहा - नही, मैं कहीं नहीं गया। कल ही तो आप मिले थे, रात में मैं यहीं सो गया था। मैं कहीं नहीं गया। पंडित जी के आश्चर्य का ठिकाना नहीं था।*
*उन्होंने कहा - लेकिन मैं तो 6 महीने पहले मंदिर बन्द करके गया था और आज 6 महीने बाद आया हूँ। तुम छः महीने तक यहाँ पर जिन्दा कैसे रह सकते हो ? पंडित जी और सारी मंडली हैरान थी। इतनी सर्दी में एक अकेला व्यक्ति कैसे छः महीने तक जिन्दा रह सकता है। तब उस भक्त ने उनको सन्यासी बाबा के मिलने और उसके साथ की गयी सारी बाते बता दी। कि एक सन्यासी आया था - लम्बा था, बढ़ी-बढ़ी जटाये, एक हाथ में त्रिशुल और एक हाथ में डमरू लिए, मृग-शाला पहने हुआ था। पंडित जी और सब लोग उसके चरणों में गिर गये। बोले, हमने तो जिंदगी लगा दी किन्तु प्रभु के दर्शन ना पा सके, सच्चे भक्त तो तुम हो। तुमने तो साक्षात भगवान शिव के दर्शन किये है। उन्होंने ही अपनी योग-माया से तुम्हारे 6 महीने को एक रात में परिवर्तित कर दिया। काल-खंड को छोटा कर दिया। यह सब तुम्हारे पवित्र मन, तुम्हारी श्रद्वा और विश्वास के कारण ही हुआ है।  आपकी भक्ति को प्रणाम

देश की मजबूती के लिए देश के नागरिकों को चाहिए कि घर परिवार में सुई से लेकर बड़ी से बड़ी चीजें जो भी आप स्तेमाल करते हैं, केवल भारत में निर्मित ही खरीदें, जिससे भारत की आर्थिक स्थिति मजबूत रहे, और भारत को तरक्की करने में आपकी सहायता मिलेजै हिंद 🚩

*एक बच्चा पैदा कर के आप उसे सरकारी नौकर बनाना चाहते हैं* 
*और वो 10 बच्चे पैदा कर* *सरकार ही बनाना चाहते है।*

*कुछ  तो सीखो  !?!?*

आर्यन खान की रेवपार्टी में सभी लडकीयां हिंदू थी ।
मजाल है एक भी मुसलमान लडकी ऐसी हिम्मत/हिमाकत कर सकें !
उन के परीवारों में  ऐसा लाड-प्यार नहीं होता !?!?😢

*आपके घर में करोड़ों की संपत्ति है और उनके घर में 40_वोटर🙄*

*सरकार वोट से बनती है अगर नोट से बनती तो टाटा/बिड़ला/अंबानी PM होते!!*
         
**उन्होंने धर्म पूछकर सीने में गोलियां उतार दी..और फिर वो परिचय पत्र देखकर गो  ली मारते हैं..!** 
*और हम कहते रह गए.. आतंकी का धर्म नहीं होता..* 

*हमने नाम पूछकर सब्जी क्या खरीदी*
*कि शहर भर में भारी कोहराम मच गया*
*उन्होंने धर्म पूछकर गोलियां भी मारीं तो आहट न हुई*
      ⛳‼️ ‼️⛳
*हम आज से  त्योहारों में परिचयपत्र देखकर खरीददारी करेगे, तो गोली से भी ज़्यादा असर होगा.🙏🏻*
          🚩🚩🚩🚩🚩
      🚩 *निर्भय विचार* 🚩
*मुझे आतंकियो का भय नहीं, मुसलमानों का तो बिल्कुल भी नहीं। मुझे केवल उन हिन्दुओं से भय लगता है जो अपने ही धर्म को हानि पहुंचाते हैं और धर्म की रक्षा हेतु खड़े नहीं होते, उल्टे देशद्रोहियों के साथ मिलकर उनकी ही भाषा बोलने लगते हैं।*
    
*⛳हिंदुत्व को अपने व्यवहार में लाइये। धर्म, कर्म,राष्ट्र और आने वाली पीढ़ियों का अस्तित्व, सब सुरक्षित हो जाएगा।_*🚩
🇮🇳सर्वे भवन्तु सुखिनः🇮🇳