मंगलवार, 19 अप्रैल 2016

तुलसी एक लड़की थी जिसका नामवृंदा था राक्षस कुल में उसका जन्म हुआ था बचपनसे ही भगवान विष्णुजी की भक्तथी.बड़े ही प्रेम से भगवानकी सेवा,पूजा किया करती थी.जबवे बड़ी हुई तो उनका विवाह राक्षसकुल में दानव राज जलंधर से हो गया,जलंधर समुद्रसे उत्पन्न हुआथा.वृंदा बड़ी ही पतिव्रता स्त्री थी सदा अपनेपति की सेवा किया करती थी.एक बार देवताओ और दानवों में युद्ध हुआ जबजलंधर युद्ध पर जाने लगे तो वृंदा ने कहा -स्वामी आप युध पर जा रहे है आपजब तक युद्ध में रहेगे में पूजा में बैठकरआपकी जीत के लियेअनुष्ठान करुगी,और जब तक आपवापस नहीं आ जाते में अपना संकल्पनही छोडूगी,जलंधरतो युद्ध में चले गये,और वृंदा व्रत का संकल्प लेकरपूजा में बैठ गयी,उनके व्रत के प्रभावसे देवता भी जलंधरको ना जीत सके सारे देवता जब हारनेलगे तो भगवान विष्णु जी के पास गये.सबने भगवान से प्रार्थना की तो भगवानकहने लगे कि – वृंदा मेरी परम भक्तहै में उसके साथ छल नहीं करसकता पर देवता बोले - भगवान दूसरा कोई उपायभी तो नहीं है अब आपही हमारी मदद कर सकतेहै.भगवान ने जलंधर का ही रूप रखा औरवृंदा के महल में पँहुच गये जैसेही वृंदा ने अपने पति को देखा,वे तुरंतपूजा मे से उठ गई और उनके चरणों को छू लिए,जैसेही उनका संकल्प टूटा,युद्ध में देवताओने जलंधर को मार दिया और उसका सिर काटकर अलगकर दिया,उनका सिर वृंदा के महल में गिरा जब वृंदा नेदेखा कि मेरे पति का सिर तो कटा पडा है तो फिर येजो मेरे सामने खड़े है ये कौन है?उन्होंने पूँछा - आप कौन हो जिसका स्पर्श मैनेकिया,तब भगवान अपने रूप में आ गये पर वे कुछना बोल सके,वृंदा सारी बात समझगई,उन्होंने भगवान को श्राप दे दिया आप पत्थर केहो जाओ,भगवान तुंरत पत्थर के हो गयेसबी देवता हाहाकार करने लगेलक्ष्मी जी रोने लगे औरप्राथना करने लगे यब वृंदा जी ने भगवानको वापस वैसा ही कर दिया और अपनेपति का सिर लेकर वेसती हो गयी.उनकी राख से एक पौधा निकला तबभगवान विष्णु जी ने कहा –आज सेइनका नाम तुलसी है,और मेरा एक रूपइस पत्थर के रूप में रहेगा जिसे शालिग्राम के नाम सेतुलसी जी के साथही पूजा जायेगा और मेंबिना तुलसी जी के भोगस्वीकार नहीं करुगा.तब सेतुलसी जी कि पूजा सभी करनेलगे.औरतुलसी जी का विवाहशालिग्राम जी के साथ कार्तिक मास मेंकिया जाता है.देवउठनी एकादशी केदिन इसे तुलसी विवाह के रूप मेंमनाया जाता है....इस कथा को कम से कम दो लोगों को अवशय सुनाए आप को पुण्य  अवश्य मिले गा।  

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