रविवार, 24 अप्रैल 2016
दूध, पिलाया उसने छाती से निचोड़कर, मैं 'निकम्मा, कभी 1 ग्लास पानी पिला न सका ।
बुढापे का "सहारा,, हूँ 'अहसास' दिला न सका पेट पर सुलाने वाली को 'मखमल, पर सुला न सका ।
वो 'भूखी, सो गई 'बहू, के 'डर, से एक बार मांगकर, मैं "सुकुन,, के 'दो, निवाले उसे खिला न सका ।
नजरें उन 'बुढी, "आंखों,, से कभी मिला न सका वो 'दर्द, सहती रही में खटिया पर तिलमिला न सका ।
जो हर "जीवनभर" 'ममता, के रंग पहनाती रही मुझे,उसे "diwali" पर दो 'जोडे, कपडे सिला न सका । "बीमार बिस्तर से उसे 'शिफा, दिला न सका ।'खर्च के डर से उसे बडे़ अस्पताल, ले जा न सका ।
"माँ" के बेटा कह 'दम, तौडने बाद से अब तक सोच रहा हूँ,'दवाई, इतनी भी "महंगी,, न थी के मैं ला ना सका माँ तो माँ होती हे भाईयों माँ अगर कभी गुस्से मे गाली भी दे तो उसे उसका "ashirwad" समझकर भूला देना चाहिए|
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