शनिवार, 11 जून 2016

Summer धूप सिपाही बन गई , सूरज थानेदार |गरम हवाएं बन गईं , जुल्मी साहूकार ||शीतलता शरमा रही , कर घूँघट की ओट |मुरझाई सी छांव है , पड़ रही लू की चोट ||चढ़ी दुपहरी हो गया , कर्फ़्यू जैसा हाल |घर भीतर सब बंद हैं , सूनी है चौपाल ||लगता है जैसे हुए , सूरज जी नाराज़ |आग बबूला हो रहे , गिरा रहे हैं गाज ||तापमान यूँ बढ़ रहा , ज्यों जंगल की आग |सूर्यदेव गाने लगे , फिर से दीपक राग ||कूलर हीटर सा लगे , पंखा उगले आग | कोयलिया कू-कू करे , उत अमवा के बाग़ ||लिए बीजना हाथ में , दादी करे बयार |कूलर और पंखा हुए , बिन बिजली बेकार ||कूए ग़ायब हो गये , सूखे पोखर - ताल |पशु - पक्षी और आदमी , सभी हुए बेहाल ||धरती व्याकुल हो रही , बढ़ती जाती प्यास |दूर अभी आषाढ़ है , रहने लगी उदास ||सूरज भी औकात में , आयेगा उस रोज |बरखा रानी आयगी , धरती पर जिस रोज ||✍

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