गुरुवार, 9 जून 2016

भगवान् श्री राम की सामाजिक आभियान्त्रिकी (social engineering) ।। कम्ब रामायण में महाकवि कम्बन लिखते हैं कि जब श्री राम निषाद से मिले तो बोले कि हम चार भाई थे आज पाँच भाई हो गये, जब जटायु से मिले तो बोले कि हम पाँच भाई थे आज छः भाई होगये, जब सुग्रीव से मिले तो बोले कि हम छः भाई थे आज सात भाई हो गयेऔर जब विभीषण से मिले तो बोले कि हम सात भाई थे आज आठ भाई हो गये और महाराज दशरथ को इतने पुत्रों की प्राप्ति पर बधाई देता हूँ। भगवान श्री राम के इसी सोशल इंजिनियरिंग का प्रयोग हनुमान जी लंका में करते हैं जब वे विभीषण को अपना भाई बोलते हैं, - तब हनुमन्त कहा सुनु भ्राता। सुन कर विभीष्ण चौक गये। ये वानर, हम राक्षस, जहाँ आर्य आर्य को भाई मानना तो दूर, छूने तक को तैयार नही वहीँ यह व्यक्ति जातियों की खाँई लाँघ मुझे किस संबन्ध से भाई कह रहा है? हनुमान जी विभीषण की द्विधा समझ गये, फिर हनुमान जी की सोशल इंजिनियरिंग तो देखिये, तुरंत कहते हैं,- देखन चहहुँ जानकी माता।। हम दोनों भगवती सीता को अपनी माता मानते हैं तो आपस में भाई हुये कि नही। समाज जोड़ने वालों ने तो लंका में भी भाई ढूँढ लिया और समाज तोड़ने वाले अपने आर्यकुल (हिन्दू समाज) में बहुसंख्यक को अछूत बनाकर बैठे हैं। अब भगवान राम की एक और सोशल इंजीनियरिंग देखिये। खानपान के माध्यम से समाज को कैसे जोड़ा जाता है! भगवान राम अपने वनवास के समय जो भोजन वाल्मीक, अत्रि, अगस्त्य के यहाँ करते हैं वही भोजन अति उत्साह और अत्यधिक प्रेम से निषाद, कोल भील और शबरी के यहाँ करते हैं। कुछ उदाहरण देखिये,- वाल्मीक, मुनिबर अतिथि प्रानप्रिय पाये। कंद मूल फल मधुर मँगाये।। सिय सौमित्र राम फल खाये। तब मुनि आश्रम दिये सुहाये।। .अत्रि,- करि पूजा कहि बचन सुहाये। दिये मूल फल प्रभु मन भाये।। निषाद,- गुहँ सँवारि साँथरी डसाई। कुस किसलयमय मृदुल सुहाई।। सुचि फल मूल मधुर मृदु जानी। दोना भरि भरि राखेसि पानी। सिय सुमन्त्र भ्राता सहित कंद मूल फल खाइ। सयन कीन्ह रघुबंसमनि पाय पलोटत भाइ।। कोल- भील,- कंद मूल फल भरि भरि दोना। चले रंक लूटन जनु सोना।। करहिं जोहार भेट| धरि आगे। एकटक चितवहिं प्रभु अनुरागे।। रामहि केवल प्रेम पियारा। जानलेहु जो जाननि हारा।। शबरी, - कंद मूल फल सुरस अति दिए राम कहुँ आनि। प्रेम सहित प्रभु खाए बारंबार बखानि।। ध्यान रहे कि खाने का भाव जो प्रभु यहाँ प्रकट करते हैं और कहीं नहीं करते हैं। यहाँ तक कि माँ कौशल्या से, गुरु माता अरुन्धती से और सासु सुनयना से भी शबरी के बेर की ही प्रशंसा करते हैं, - गुरु गृह प्रिय सदन सासुरे भइ जब जहँ पहुनाई। तब तहँ कह शबरी के फलन की रुचि माधुरी न पाई।। मिलि मुनिबृंद फिरत दंडक बन सो चरचेहुँ न चलाई। केवट मीत कहे सुख मानत बानर बन्धु बड़ाई।। अभी यह प्रकरण पूरा नही हुआ है जब तक कि भरद्वाज जी की पहुनाई की चर्चा न हो जाय। भरद्वाज जी ने एक नया प्रयोग किया। पहुनाई में कंद, मूल के साथ अंकुर(sprouted seeds) भी परोस दिया तुरंत भगवान श्री राम ने अंकुर अलग कर दिया और केवल मूल फल खाये। अन्न अगर शबरी का नही खाया तो ऋषियों का भी नही खाया,- कंद मूल फल अंकुर नीके। दिये आनि मुनि मनहु अमी के।। सीय लखन जन सहित सुहाये। अति रुचि राम मूल फल खाये।। यहाँ जन शब्द निषाद के लिये आया है। भगवान उसे अपने साथ बिठा कर भोजन कर रहे हैं। क्या हिन्दू भाइयों अपने भगवान राम की यह सोशल इंजिनियरिंग अपनाने को तैयार हो? यदि अपना लो तो एक साथ अयोध्या, मथुरा, काशी अपनी धूल झाड़ कर उठ खड़ी होंगी। भारत गौओं का अभयारण्य हो जायेगा। गंगा कल कल नाँद करती हुयी अविकल निर्मल बहने लगेगी। गीता फिर से अपनी संस्कृति की साम्राज्ञी बन जाएगी। जंगल में रहो या बस्ती में, लहरों में रहो या कश्ती में, .राम नाम की मस्ती में...क्योंकिजो डूबे हैं "राम" की मस्ती में...चार चांद लग जाते हैं उनकी हस्ती में......!⛳🏹🚩जय श्री राम 🚩🏹⛳

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