गुरुवार, 7 अप्रैल 2016

पिताजी के अचानक आ जाने  से मे सपत्नीक आशचर्य चकित हो उठे , लगा पिताजी को पैसों की ज़रूरत आ पड़ी है,  अपने पेट का गड्ढ़ा भरता नहीं,    घरवालों का कहाँ से भरेगे ? यह सोचकर मैं नज़रें बचाकर   दूसरी ओर देखने लगा। पिताजी नल पर हाथ-मुँह धोकर   सफ़र,, की थकान दूर कर रहे थे। इस बार मेरा हाथ    कुछ ज्यादा ही तंग हो गया।  बेटी के कपड़े फट चुके  है।वह स्कूल जाते वक्त रोज कपड़ों की कहती  है। पत्नी के इलाज के लिए  पूरी दवाइयाँ नहीं खरीदी जा सकीं। बाबूजी को भी अभी आना था।घर में बोझिल "चुप्पी" पसरी हुई थी खाना खा चुकने पर,, पिताजी ने मुझे पास बैठने का इशारा किया। मैं शंकित था कि कोई आर्थिक समस्या लेकर आये होंगे.पिताजी कुर्सी पर उठ कर बैठ गए।   सुनो ” कहकर उन्होंने मेरा ध्यान अपनी ओर खींचा।मैं सांस रोक कर   उनके मुँह की ओर देखने लगा।रोम-रोम कान बनकर,,अगला वाक्य सुनने के लिए चौकन्ना था।वे बोले..चोकीदार की नौकरी  से फुर्सत नहीं मिलती। रात की गाड़ी से वापस जाऊँगा। तीन महीने से तुम्हारी कोई खबर नहीं मिली...जब तुम परेशान होते हो, तभी ऐसा करते हो।उन्होंने जेब से सौ-सौ के पचास  नोट निकालकर मेरी तरफ बढ़ा दिए, “रख लो।तुम्हारे काम आएंगे। खाली समय मे मजदूरी करली  थी। घर में कोई दिक्कत नहीं है पर तुम बहुत कमजोर लग रहे हो।ढंग से खाया-पिया करो।    बहू का भी ध्यान रखो।मैं कुछ नहीं बोल पाया। शब्द जैसे मेरे हलक मे      फंस कर रह गये हों । मैं कुछ कहता इससे पूर्व ही पिताजी ने प्यारसे डांटा“ले लो, बहुत बड़े हो गये हो क्या ..?”“ नहीं तो।"   मैंने हाथ बढ़ाया। पिताजी ने नोट    मेरी हथेली पर रख दिए। बरसों पहले पिताजी मुझे स्कूल भेजने के लिए  इसी तरह हथेली पर अठन्नी टिका देते थे,पर तब मेरी नज़रें ..आजकी तरह झुकी नहीं होती थीं। दोस्तों एक बात हमेशा ध्यान रखे... माँ बाप अपने बच्चो पर     बोझ हो सकते हैं बच्चे उन पर बोझ कभी नही होते ।  मनुष्य का अपना क्या है..?- 
जन्म : दुसरो ने दिया,- 
नाम : दुसरो ने  रखा,- 
शिक्षा : दुसरो ने दी,- 
रोजगार : दुसरो ने दिया, और . . . - 
शमशान : दुसरे ले जाऐँगे.. . . 
तो व्यर्थ मेँ घमँड किस बात पर करते हो।

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