शुक्रवार, 20 मई 2016

•पिता पडे है घर मे बेबस, और पडोसी प्यारा है।पाखंडी धर्म निरपेक्षवादियो की ऐसी ही धारा है।।•पूरब मे अधियारा ढूँढते, पश्चिम प्यारा लगता है।राम आँख का तिनका, बाबर राजदुलारा लगता है।।•मन्दिर लगता आडंबर, और मदिरालय मे खोए है।भूल गए कश्मीरी पंडित, और अफजल पे रोए है।।•इन्हे गोधरा नही दिखा, गुजरात दिखाई देता है।एक पक्ष के लोगो का, जज्बात दिखाई देता है।•हिन्दू को गाली देने का, मौसम बना रहे है ये।धर्म सनातन पर हँसने को, फैशन बना रहे है ये।•रसिक बताकर कृष्ण को सारे, गाली देते रहते है।सैक्सी राधा वाले गीत पर, ताली देते रहते है।•टीपू को सुल्तान मानकर, खुद को बेच कर फूल गए।और प्रताप की खुद्दारी की, घाँस की रोटी भूल गए।।•आतंकी की फाँसी इनको, अक्सर बहुत रुलाती है।गाय माँस के बिन भोजन की, थाली नही सुहाती है।।•होली आई तो पानी की, बर्बादी पर ये रोतेे है।रेन डाँस के नाम पर, बहते पानी से मुँह धोते है।•दीवाली की जगमग से ही, इनकी आँखे डरती है।थर्टी फस्ट की आतिशबाजी, इनको क्यो नही अखरती है।।•देश विरोधी नारो को, ये आजादी बतलाते है।राष्ट्रप्रेम के नायक संघी, इनको नही सुहाते है।।•सात जन्म के पावन बंधन, इनको बहुत अखरते है।लिव इन वाले बदन के, आकर्षण मे आहे भरते है।।•आज समय की धारा कहती, मर्यादा का भान रखो।मूल्यो वाला जीवन जी कर, दिल मे हिन्दूस्तान रखो।।•भूल गया जो संस्कार, वो जीवन खरा नही रहता।जड से अगर जुदा हो जाए, तो पत्ता हरा नही रहता।।🚩🚩🚩🚩🚩🚩

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