शुक्रवार, 20 मई 2016

➡एक डोली चली एक अर्थी चलीअर्थी ने डोली से कुछ यूँ कहा -तेरी  'डोली'  उठीमेरी  'मैय्यत'  उठी ,फ़ूल  तुझ  पर  भी  बरसेफ़ूल  मुझ  पर  भी  बरसे ,'फ़र्क'  सिर्फ  इतना  सा  था ,तू   सज   गईमुझे   सजाया   गया ....तू  भी  घर  को  चली ,मैं  भी  घर  को  चली  ,फ़र्क  सिर्फ  इतना  सा  थातू   उठ   के   गईमुझे   उठाया   गया ....'महफ़िल'  वहाँ  भी  थी'लोग'   यहाँ   भी   थे ,फ़र्क  सिर्फ  इतना  सा  था ,उनका  'हंसना'   वहाँइनका   'रोना'   यहाँ ....'काज़ी'  उधर  भी   था ,'मौलवी'   इधर   भी   था ,दो   बोल  'तेरे'   पढ़े ,दो   बोल   'मेरे'   पढ़े ,तेरा   'निकाह'  पढ़ा , मेरा    'ज़नाज़ा'   पढ़ा ,फ़र्क   सिर्फ   इतना   सा   था ,तुझे   'अपनाया'   गया ,मुझे   'दफ़नाया'   गया  ....

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें