शुक्रवार, 20 मई 2016

Heart touching Real story" टिकट कहाँ है ? " -- टी सी ने बर्थ के नीचे छिपी लगभग तेरह - चौदह साल की लडकी से पूछा ।" नहीं है साहब । "-- काँपती हुई हाथ जोड़े लडकी बोली ।"तो गाड़ी से उतरो ।" टी सी ने कहा ।" मै इसका टिकट दे रहीं हूँ । "-- पीछे से ऊषा भट्टाचार्य की आवाज आई जो पेशे से प्रोफेसर थी ।"तुम्हें कहाँ जाना है ?" लड़कीसे पूछा" पता नही मैम ! "" तब मेरे साथ चल बैंगलोर तक ! "" तुम्हारा नाम क्या है ? "" चित्रा ! "बैंगलोर पहुँच कर ऊषाजीने चित्रा को अपनी ऐक पहचान के स्वंयसेवी संस्थान को सौंप दिया ।जल्द ही ऊषा जी का ट्रांसफर दिल्ली होने की वजह से चित्रा से कभी कभार फोन पर बात हो जाया करती थी ।करीब बीस साल बाद ऊषाजी को एक लेक्चर के लिए सेन फ्रांसिस्को ( अमरीका) बुलाया गया । लेक्चर के बाद जब वह होटल का बिल देने रिसेप्सन पर गई तो पता चला पीछे खड़ी एक खूबसूरत दंपत्ति ने बिल भर दिया था ।"तुमने मेरा बिल क्यों भरा ? ? "" मैम साहब, यह बम्बई से बैंगलोर तक के रेल टिकट के सामने कुछ नहीं है । ""अरे चित्रा ! ! ? ? ? . . . .( चित्रा कोई और नहीं इंफोसिस फाउंडेशन की चेयरमैन सुधा मुर्ति जी है । यह उन्ही की लिखी पुस्तक "द डे आई स्टाॅप्ड ड्रिंकिंग " से लिया गया कुछ अंश )

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