सोमवार, 30 मई 2016

कुंभ खत्म होते रातों-रात गायब होते हैं नागा साधु, जानें, इनकी यात्रा का रहस्य उज्जैन। सिंहस्थ की पहचान बने नागा साधु आखरी शाही स्नान कर रात में ही उज्जैन से रवाना हो गए। एक महीने तक सिंहस्थ की शान नागा साधुओं के एकाएक गायब होने से लोग हैरान हैं। हैरानी का कारण ये भी है कि किसी भी कुम्भ में नागा साधुओं को आते और जाते कभी कोई नहीं देख पाता। सिंहस्थ में हजारों की संख्या में नागा साधु आए और चले भी गए, लेकिन किसी ने भी ना तो उन्हें आते हुए देखा और ना ही जाते हुए।- वे कहां से आए, कैसे आए और कहां गायब हो गए, इसकी चर्चा अब शहर में हर कोई कर रहा है।- दैनिक भास्कर डॉट कॉम ने जब नागा साधुओं की इस यात्रा के बारे में जानकारी हासिल की तो कई रहस्य सामने आए।- राष्ट्रीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष नरेंद्र गिरी जी महाराज के मुताबिक, नागा साधु जंगल के रास्तों से यात्रा करते हैं। आमतौर पर ये लोग देर रात में चलना शुरू करते हैं।- यात्रा के दौरान ये लोग किसी गांव या शहर में नहीं जाते, बल्कि जंगल और वीरान रास्तों में डेरा डालते हैं।- रात में यात्रा और दिन में जंगल में विश्राम करने के कारण सिंहस्थ में आते या जाते हुए ये किसी को नजर नहीं आते।- कुछ नागा साधु झुंड में निकलते है तो कुछ अकेले ही यात्रा करते हैं। ये लोग यात्रा में कंदमूल फल, फूल और पत्तियों का सेवन करते हैं।- यात्रा के दौरान नागा साधु जमीन पर ही सोते हैं।ऐसे मिलती है कुंभ या सिंहस्थ में शामिल होने की सूचना ...- नरेंद्र गिरी महाराज के अनुसार, हर अखाड़े में एक कोतवाल होता है। ये कोतवाल नागा साधुओं और अखाड़ों के बीच की कड़ी का काम करता है।- दीक्षा पूरी होने के बाद जब साधु अखाड़ा छोड़कर साधना करने जंगल या कंदराओं में चले जाते हैं तो ये कोतवाल उन्हें अखाड़ों की सूचनाएं पहुंचाता है।-सिंहस्थ, कुंभ और अर्ध कुंभ जैसे महापर्वों में ये लोग कोतवाल की सूचना पर पहुंचते हैं।ऐसी है नागाओं की रहस्यमयी दुनिया ...- महाराज जी ने बताया कि अखाड़ों के ज्यादातर नागा साधु हिमालय, काशी, गुजरात और उत्तराखंड में रहते हैं।- ये सभी गांव या शहर से दूर पहाड़ों, गुफाओं और कन्दराओं में साधना करते हैं।- नागा संन्यासी एक गुफा में कुछ साल रहने के बाद अपनी जगह बदल देते हैं।- आमतौर पर नागा सन्यासी अपनी पहचान छिपा कर रखते हैं।[@@@@@@------------- भारतीय इतिहास मे कयी युद्ध जो लडे है नागा साधुओं ने!---आपको अगर ऐसा लगता है कि हमारे संत समाज ने भारत माता के लिए कोई लड़ाई नहीं लड़ी है तो आपकी यह बहुत बड़ी भूल है.वैसे इसमें आपकी कोई गलती नहीं है क्योकि भारतीय इतिहास से ना जाने क्यों नागा साधुओं का युद्ध हटा दिया गया.कुछ लेखक बताते हैं कि तब नागा साधुओं के एक हाथ में तलवार थी और दूजे हाथ में शास्त्र (धार्मिक किताबें) थीं. संतों को धर्म भी बचाना था और देश भी. ये था नागा साधुओं का युद्ध ! उस वक़्त अफगानी शासक अगर आगे बढ़ जाते तो लाखों लोगों का कत्लेआम हो सकता था. हिन्दू मंदिर तोड़ दिए जाते, लेकिन हर साधू ने अपनी बहादुरी का परिचय दिया और मरने से पहले एक-एक साधू ने सैंकड़ों दुश्मनों को धूल में मिला दिया था.जोधपुर को बचाया था सन्यासियों नेजब काबुल और बिलोचिस्तान की और से आक्रमण कर मुसलमान जोधपुर पर आये तो चारों तरफ हाहाकार था. मंदिर तोड़े जा रहे थे और कत्लेआम हो रहा था. मुस्लिम शासकों ने हर व्यक्ति पर भारी कर लगा दिया था. तब अटल सन्यासियों ने मुस्लिमों को परास्त किया था.वैसे यह नागा साधुओं का युद्ध इतना छोटा था कि किसीकी भी इस पर नजर नहीं पड़ती है. इसके बाद क्रूर अहमदशाह अब्दाली से साधू संतों और वह भी नागा साधुओं ने जो युद्ध लड़ा है वह युद्ध हर भारतीय को मालूम होना चाहिए.सबसे पहले तो आपको बता दें कि आप इस युद्ध की विश्वसनीयता को जांचने के लिए कुछ पुस्तकें पढ़ सकते हैं. इनमें सर्वप्रमुख पुस्तक है- भारतीय संघर्ष का इतिहास, लेखक डा. नित्यानंद.जब क्रूर अहमदशाह अब्दाली ने किया था भारत पर आक्रमणवैसे आपको बता दें कि दशनामी अखाड़ों का जन्म ही धर्म और देश की रक्षा करने के लिए हुआ था. मुस्लिम शासक एक के बाद एक भारत पर आक्रमण कर रहे थे और लोगों पर जुल्म कर रहे थे. तब साधू संतों ने हथियार उठा लिए थे.ऐसा ही कुछ तब हुआ था जब अहमदशाह अब्दाली दिल्ली और मथुरा पर आक्रमण करता हुआ गोकुल तक आ गया था. लोगों को काटा जा रहा था. महिलाओं के साथ बलात्कार हो रहे थे और बच्चे देश के बाहर बेचे जा रहे थे. तभी गोकुल में अहमदशाह अब्दाली का सामना नागा साधुओं से हो जाता है. कुछ 5 हजार साधुओं की सेना कई हजार सैनिकों से लड़ गयी थी. पहले तो अब्दाली साधुओं को मजाक में ले रहा था किन्तु तभी अब्दाली को एहसास हो गया था कि यह साधू अपनी भारत माता के लिए जान तक दे सकते हैं. लेखक लिखत

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