गुरुवार, 26 मई 2016

Nice poemऐ   "सुख"  तू  कहाँ   मिलता   हैक्या  तेरा   कोई  स्थायी  पता हैक्यों   बन   बैठा   है अन्जानाआखिर   क्या   है   तेरा   ठिकाना।कहाँ   कहाँ    ढूंढा  तुझकोपर  तू  न  कहीं  मिला  मुझकोढूंढा  ऊँचे   मकानों  मेंबड़ी  बड़ी   दुकानों  मेंस्वादिस्ठ   पकवानों  मेंचोटी  के  धनवानों  मेंवो   भी   तुझको    ढूंढ  रहे   थेबल्कि   मुझको  ही   पूछ  रहे थेक्या   आपको   कुछ   पता    हैये  सुख  आखिर  कहाँ  रहता   है?मेरे  पास  तो  "दुःख"  का   पता   थाजो   सुबह   शाम   अक्सर  मिलता  थापरेशान   होके   रपट    लिखवाईपर   ये   कोशिश   भी   काम  न  आईउम्र   अब   ढलान  पे  हैहौसले    थकान  पे    हैहाँ   उसकी  तस्वीर   है   मेरे पासअब  भी बची   हुई  है    आसमैं  भी हार    नही    मानूंगासुख  के  रहस्य   को जानूंगाबचपन   में    मिला    करता    थामेरे    साथ   रहा    करता  थापर   जबसे   मैं    बड़ा   हो   गयामेरा  सुख   मुझसे   जुदा   हो  गया।मैं   फिर   भी   नही   हुआ    हताशजारी   रखी    उसकी    तलाशएक  दिन  जब   आवाज  ये    आईक्या   मुझको   ढूंढ  रहा  है   भाईमैं  तेरे  अन्दर   छुपा   हुआ    हूँतेरे  ही   घर  में  बसा   हुआ  हूँमेरा  नही  है   कुछ   भी    "मोल"सिक्कों   में   मुझको   न तोलमें समता सेवा शांति प्रग्या पंचशिल बंधुता में हूंमैं  बच्चों  की  मुस्कानों  में    हूँहारमोनियम   की  तानों   में हूँपत्नी  के साथ    चाय  पीने में"परिवार"    के  संग  जीने   मेंमाँ  बाप   के आशीर्वाद    मेंरसोई   घर   के  पकवानो  मेंबच्चों  की   सफलता  में   हूँमाँ   की  निश्छल  ममता  में  हूँहर  पल  तेरे  संग    रहता  हूँऔर   अक्सर  तुझसे   कहता  हूँमैं   तो   हूँ   बस एक    "अहसास"बंद  कर   दे   तु मेरी    तलाशजो   मिला   उसी  में  कर   "संतोष"आज  को  जी  ले  कल  की न सोचकल  के   लिए  आज  को  न   खोनामेरे   लिए   कभी   दुखी   न  होनामेरे  लिए   कभी  दुखी   न    होना

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