बुधवार, 4 मई 2016

एक बेटी ने जिद पकड़ ली "पापा मुझेसाइकिल चाहिये !....पापा ने कहा अगले महीने दिवालीपर जरुर साईकललाउंगा ! प्रॉमिस !..एक महीने बाद... पापा , मुझेसाइकिल चाहिये , आपने प्रॉमिसकिया था ... !..वह चुप रहा ...शाम को दफ्तर से लौटा बेटीतितली की तरह खुश हुई व़ाह ! थॅंक्सपापा , मेरी साइकिल के लियेअगले दिन.... पापा ! आपकी उंगलीकी सोने की अंगूठी कहाँ गई .?..बेटा ! सच बोलूँगा ... कल ही बेच दीतुम्हारी साइकिल के लिये .....!..बेटी रोते हुए , पापा, ! पैसों कीइतनी दिक्कत थी तो मत लाते .......नहीं खरीदता तो मेरी प्रॉमिसटूटतीतुम्हे फिर मेरे किसी वादे पेविश्वास नहीं होता .तुम यही समझती कि "प्रॉमिसतोड़ने के लियेकिये जाते है !"..मेरी अंगूठी दूसरी आ जायेगीमगर "टूटा हुवा विश्वासछूटा हुवा बचपन दोबारा नहींलौटेंगे !"जाओ !साइकल चलाओ !....।अपने से ज्यादा अपनी बेटी कीख़ुशी चाहने वाले पिता के लिये।

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