मंगलवार, 10 मई 2016

किन्नरों से जुडें कुछ अद्भुत तथ्य किन्नर समुदाय को प्राय समाज अलग तरह से देखता है और खुद किन्नर भी मुख्य समाज से अलग रहना पसंद करते हैं। किन्नरों का अलग समाज होता है और यह लोग अलग रीति-रिवाजों को अपनाकर अपना जीवन काटते हैं। हमारे समाज में किन्नरों को जानने की जिज्ञासा हमेशा बनी रहती है, इसलिए लोग इनके बारे में जानने को उत्सुक रहते हैं, आज हम किन्नरो के बारे मे कुछ बेहद अद्भुत और रोचक तथ्य रखेंगे जिन्हें शायद ही कोई जानता है। यह सभी तथ्य हमने विभिन्न स्रोतों से लिए हैं –किन्नर समाज को भारत में अब तीसरे दर्जे का अधिकार प्राप्त है पहले सिर्फ दो ही कैटेगरी होती थी पर अब किन्नरों को भी तीसरा समाज मानकर उन्हें कई अधिकार सरकार ने दिए हैं।ज्योतिष के अनुसार वीर्य की अधिकता से पुरुष (पुत्र) उतपन्न होता है। रक्त (रज) की अधिकता से स्त्री (कन्या) उतपन्न होती है। वीर्य और राज़ समान हो तो किन्नर संतान उतपन्न होती है। पुराने समय में भी किन्नर राजा-महाराजाओं के यहां नाचना-गाना करके अपनी जीविका चलाते थे।  महाभारत में वृहन्नला (अर्जुन) ने उत्तरा को नृत्य और गायन की शिक्षा दी थी। किन्नरों का जिक्र हमारे पुराने शास्त्रों में भी मिलता है वहां पर हम उनके योगदान को जान सकते हैं, महाभारत में शिखंडी को भी किन्नर समझा जाता था औऱ महाभारत युद्ध को पाड़वो को जितवाने का योगदान शिंखडी को भी जाता है। महाभारत के अनुसार जब युधिष्ठर जुँआ हार गये थे तो उन्हें और उनके सभी भाईयों को वनबास में जाना पड़ा था तब एक वर्ष के आज्ञातवास को काटने के लिए अर्जुन एक किन्नर में बदल गया था , तब उसका नाम वृहन्नला था।किन्नर की दुआएं किसी भी व्यक्ति के बुरे समय को दूर कर सकती हैं। धन लाभ चाहते है तो किसी किन्नर से एक सिक्का लेकर पर्स में रखे। एक मान्यता है कि ब्रह्माजी की छाया से किन्नरों की उत्पत्ति हुई है। दूसरी मान्यता यह है कि अरिष्टा और कश्यप ऋषि से किन्नरों की उतपत्ति हुई है। यदि किसी नए वयक्ति को किन्नर समाज में शामिल होना होता है तो उसके भी कई नियम है। इसके लिए कई रीती-रिवाज़ है, जिनका पालन किया जाता है।  नए किन्नर को शामिल करने से पहले नाच-गाना और सामूहिक भोज होता है। कुंडली में बुध, शनि, शुक्र और केतु के अशुभ योगों से व्यक्ति किन्नर या नपुंसक हो सकता है। फिलहाल देश में किन्नरों की चार देवियां हैं।किसी किन्नर की मृत्यु के बाद उसका अंतिम संस्कार बहुत ही गुप्त तरीके से किया जाता है। किन्नरों की जब मौत होती है तो उसे किसी गैर किन्नर को नहीं दिखाया जाता। ऐसा माना जाता है कि ऐसा करने से मरने वाला अगले जन्म में भी किन्नर ही पैदा होगा। किन्नर मुर्दे को जलाते नहीं बल्कि दफनाते हैं।किन्नरों की शव यात्राएं रात्रि को निकाली जाती है। शव यात्रा को उठाने से पूर्व जूतों-चप्पलों से पीटा जाता है।किन्नर के मरने उपरांत पूरा हिंजड़ा समुदाय एक सप्ताह तक भूखा रहता है।किन्नर समाज कि सबसे बड़ी विशेषता है मरने के बाद यह मातम नहीं मनाते हैं। किन्नर समाज में मान्यता है कि मरने के बाद इस नर्क रूपी जीवन से छुटकारा मिल जाता है। इसीलिए मरने के बाद हम खुशी मानते हैं । ये लोग स्वंय के पैसो से कई दान कार्य भी करवाते है ताकि पुन: उन्हें इस रूप में पैदा ना होना पड़े।किन्नरों की दुनिया का एक खौफनाक सच यह भी है कि यह समाज ऐसे लड़कों की तलाश में रहता है जो खूबसूरत हो, जिसकी चाल-ढाल थोड़ी कोमल हो और जो ऊंचा उठने के ख्वाब देखता हो।  यह समुदाय उससे नजदीकी बढ़ाता है और फिर समय आते ही उसे बधिया कर दिया जाता है। बधिया, यानी उसके शरीर के हिस्से के उस अंग को काट देना, जिसके बाद वह कभी लड़का नहीं रहता। देश में हर साल किन्नरों की संख्या में 40-50 हजार की वृद्धि होती है। देशभर के तमाम किन्नरों में से 90 फीसद ऐसे होते हैं जिन्हें बनाया जाता है। समय के साथ किन्नर बिरादरी में वो लोग भी शामिल होते चले गए जो जनाना भाव रखते हैं।1871 से पहले तक भारत में किन्नरों को ट्रांसजेंडर का अधिकार मिला हुआ था।  मगर 1871 में अंग्रेजों ने किन्नरों को क्रिमिनल ट्राइब्स यानी जरायमपेशा जनजाति की श्रेणी में डाल दिया था। बाद में आजाद हिंदुस्तान का जब नया संविधान बना तो 1951 में किन्नरों को क्रिमिनल ट्राइब्स से निकाल दिया गया। अब देश में मौजूद पचास लाख से भी ज्यादा किन्नरों को तीसरे दर्जे में शामिल कर लिया गया है। अपने इस हक के लिए किन्नर बिरादरी वर्षों से लड़ाई लड़ रही थी। आमतौर पर सिंहस्थ में 13 अखाड़े शामिल होते हैं, लेकिन इस बार एक नया अखाड़ा और बना है। ये अखाड़ा है किन्नर अखाड़ा। किन्नर अखाड़े को लेकर समय-समय पर विवाद होते रहे हैं। इस अखाड़े का मुख्य उद्देश्य किन्नरों को भी समाज में समानता का अधिकार दिलवाना है। किन्नर अपने आराध्य देव अरावन से साल में एक बार विवाह करते है। हालांकि यह विवाह मात्र एक  दिन के लिए होता है। अगले दिन अरावन देवता की मौत के साथ ही उनका वैवाहिक जीवन खत्म हो जाता है। 

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