बुधवार, 18 मई 2016

किसी मेले में एक स्टाल लगा था जिस पर लिखा था " बुद्धि विक्रय केंद्र " !लोगो की भीड उस स्टाल पर लगी थी !मै भी पहुंचा तो देखा कि उस स्टाल पर अलग अलग शीशे के जार में कुछ रखाहुआ था !एक जार पर लिखा था-वैश्य की बुद्धि-500 रुपये किलोदूसरे जार पर लिखा था - ब्राम्हण की बुद्धि-1000 रुपये किलोतीसरे जार पर लिखा था- क्षत्रिय की बुद्धि-2000 रुपये किलोचौथे जार पर लिखा था- यादव की बुद्धि- 50000 रुपये किलोऔर पांचवे जार पर लिखा था- दलित की बुद्धि-100000 रुपया किलो।मैं हैरान कि इस दुष्ट ने वैश्य की बुद्धि की इतनी कम कीमत क्यों लगाई?गुस्सा भी आया कि इसकी इतनी मजाल, अभी मजा चखाता हूँ।गुस्से से लाल मै भीड को चीरते हुआ दुकानदार के पास पहुंचा और उससे पूछा कि तेरी हिम्मत कैसे हुयी जोवैश्य की बुद्धि इतनी सस्ती बेचने की ?उसने मेरी तरफ देखा और मुस्कराया, हुजूर बाजार के नियमानुसार...जो चीज ज्यादा उत्पादित होती है, उसका रेट गिर जाता है !आपलोगो में इसी बहुतायत बुद्धि के कारण ही तो आपलोग दीनहीन पड़े हैं !कोई पूछने वाला भी नहीं है आपलोगों को..सब एक दूसरे की टांग खींचते हैं और सिर्फ अपना नाम बडा देखना चाहते हैं !किसी को सहयोग नहीं करते...काम करने वाले की आलोचना करते है और नीचा दिखाते हैं !जाइये साहब...पहले अपने समाज को समझाइये और मुकाम हासिल करि

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