सोमवार, 16 मई 2016

✳कदम रुक गए जब पहुंचे      हम रिश्तों के बाज़ार में...✳बिक रहे थे रिश्ते       खुले आम व्यापार में..✳कांपते होठों से मैंने पूँछा,       "क्या भाव है भाई       इन रिश्तों का..?"✳ दुकानदार बोला:✳ "कौन सा लोगे..?✳ बेटे का ..या बाप का..?✳ बहिन का..या भाई का..?✳ बोलो कौन सा चाहिए..?✳ इंसानियत का..या प्रेम का..?✳ माँ का..या विश्वास का..? ✳बाबूजी कुछ तो बोलो      कौन सा चाहिए✳चुपचाप खड़े हो       कुछ बोलो तो सही...✳मैंने डर कर पूँछ लिया      "दोस्त का.."✳दुकानदार नम आँखों से बोला: ✳"संसार इसी रिश्ते      पर ही तो टिका है..."✳माफ़ करना बाबूजी      ये रिश्ता बिकाऊ नहीं है..✳इसका कोई मोल       नहीं लगा पाओगे,✳और जिस दिन       ये बिक जायेगा...✳उस दिन ये संसार उजड़ जायेगा..."

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